मेरी भी कुछ अहमियत है या नहीं – ऋतु अग्रवाल   : Moral stories in hindi

   ” मोहित कहाँ हो बेटा? उठो, स्कूल नहीं जाना है क्या?जल्दी से तैयार हो जाओ। फिर मुझे भी दफ्तर जाना है।”मंजरी ने अपने आठ वर्षीय बेटे मोहित की चादर खींची तो कुनमुना कर आँख मसलते हुए मोहित उठ तो गया पर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ।

       “क्या बात है? उठो, फटाफट!”बिस्तर समेटते हुए मंजरी ने बाथरूम की ओर रुख किया और गीजर खोलकर मोहित की स्कूल यूनिफॉर्म निकालने लगी। मोहित को अब भी उठता न देख मंजरी ने  उसका हाथ पकड़ कर खींचा तो मोहित की रुलाई फूट पड़ी।

       “क्या बात है? रो क्यों रहे हो?” मंजरी चौंक गई।

      “मम्मा!क्या हम अपने घर वापस नहीं जा सकते? मुझे यहाँ अच्छा नहीं लगता। पापा की बहुत याद आती है।” मोहित की आँखे आँसुओं से भर गईं।

           ” मोहित ! एक बार में समझ लो। अब हम वहाँ कभी नहीं जाएँगे। भूल जाओ उस घर को।अब हम नानी के घर ही रहेंगे।” मंजरी सख़्त स्वर में बोली और मोहित का हाथ पकड़ कर बाथरूम में ले गई। मोहित को स्कूल बस में बैठा कर मंजरी घर आ गई।” माँ! मैं क्या करूँ? मोहित को कैसे समझाऊं? उस घर में मेरी कोई अहमियत नहीं है। विनीत सिर्फ अपने घर वालों की ही बात सुनते हैं। मैं तो वहाँ एक अनचाही मेहमान हूँ। आप ही बताओ, जिस घर में मेरी अहमियत ही नहीं, वहाँ रहकर मैं क्या करूँ?”मंजरी की बात सुनकर भी विनीताजी कुछ नहीं बोली और। वो जानती थीं कि इस समय मंजरी और विनीत अहम् से भरे हैं। दोनों एक-दूसरे को समझना ही नहीं चाह रहे थे पर इन दोनों की टकराव के मध्य मोहित पिस रहा था पर अपने अहंकार के चलते दोनों ही मोहित की पीड़ा व उदासी को देख नहीं पा रहे थे ।

        “मिस्टर विनीत! आपसे कुछ बात करनी है। आप स्कूल आइए। मोहित को लेकर कुछ समस्या है।” मोहित के स्कूल की प्रिंसिपल ने विनीत को फोन किया।” पर,मैडम! मैं इस समय ऑफिस में बहुत व्यस्त हूँ। आप अंजलि को कॉल कर दीजिए।वैसे भी उसका ऑफिस स्कूल के काफी नजदीक है।” विनीत बोला।

      “आप शायद समझ नहीं रहे हैं। यह कोई पीटीएम नहीं है। आपको आकस्मिक कारणों से बुलाया जा रहा है। वैसे मंजरी जी भी आ रही हैं। हम मोहित को तब तक घर नहीं भेजेंगे जब तक आप दोनों व्यक्तिगत रूप से मुझसे मिलने नहीं आते हैं।” यह कहकर प्रिंसिपल महोदया ने फोन रख दिया।

           आधे घंटे के भीतर ही विनीत और मंजरी, मोहित   के स्कूल पहुँच गए। मोहित , प्रिंसिपल मैडम के केबिन में ही था।बिखरे बाल, धूल से लथपथ स्कूल यूनिफॉर्म व जूते,माथे पर बहकर रुका हुआ ख़ून, मोहित की हालत देखकर दोनों दंग रह गए। दोनों मोहित की तरफ भागे।”रुक जाइए आप दोनों वहीं ।”प्रिंसिपल मैडम चिल्लाईं ।,”आप जानते हैं इस बच्चे की यह हालत आप दोनों की वजह से ही हुई है। इसने मुझे सब बताया।जानते हैं, पिछले कुछ समय से न तो यह क्लासवर्क करता है, न लंच खाता है और न ही अन्य बच्चों के साथ खेलता है और आज इसे स्वयं को चोट पहुँचाने की कोशिश की।”

         “यह सारी गलती मंजरी की है। यह न मोहित का ख़्याल रख पाई न मेरे घर का।” विनीत ने आरोप मढ़ा।

          ” हाँ! तुम्हारा घर। तुम्हारा ही तो घर है वह।सही कह रहे हो तुम और तुम्हारे घर में मेरा कोई अस्तित्व नहीं इसलिए मैंने तुम्हारा घर छोड़ दिया।” मंजरी ने पलटवार किया।

       “नहीं! तुम्हारी ज़िंदगी में मेरा कोई अस्तित्व नहीं। तुम्हारे लिए तुम्हारा अहंकार ही मायने रखता है इसलिए तुम घर छोड़ आई और मोहित को भी ले गई पर अब तुमसे मोहित को भी नहीं सँभाला जा रहा।”विनीत और मंजरी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे।

      “पापा!मम्मी! आप दोनों अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं पर क्या आप लोगों के लिए मेरा कोई अस्तित्व नहीं। अगर नहीं तो आप मुझे इस दुनिया में लाए ही क्यों?” मोहित के प्रश्न से वहाँ मौन पसर गया।

 

मौलिक सृजन ✍️

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ,उत्तर प्रदेश

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