आज भी अंशू के सामने निया और निमित्त जिद करते तो उसे गुस्सा आता, कितना भी मन का बनाओ तब पर भी बच्चों का मन नहीं भरता !रोज नये डिश की फरमाइश होती।सुबह नाश्ता फिर दोपहर का लंच , फिर शाम को स्नैक्स की डिमांड और उसके बाद ये भी पूछा जाता कि रात के खाने में क्या है?
उसे याद आ रहा था••• वो भी क्या दिन थे।जब सब मिलकर एक साथ सब काम करते थे।न तो मेरी मम्मी को, न ही ताई और चाची को इतनी उन दिनों झुंझलाहट होती थी, न ही नयापन लाने के लिए हर हफ्ते कहीं घूमने जाना पड़ता था। पहले तो जबकि सब काम हाथ से ही मम्मी और ताई जी और चाची वगैरह सब मिलकर करते थे।न पहले न मिक्सी , न ओवन , न ही फ्रीज हुआ करते थे। कितना काम होने के बाद मम्मी खुश रहती थी।अब तो सारा वक्त काम- काम•••••
आज जब अंशू ने झुंझलाकर खाना परोसा तो अमन से न रहा गया ।वह अंशू पर ही भड़क गया ” तुम क्या दो बच्चों को नहीं संभाल पा रही हो। पहले देखो हमारी नानी के घर में कितने सारे लोग थे। मेरे पांच मामा और पांच मौसी थी। मेरी नानी ने कैसे संभाला होगा । तुम तो दो बच्चों में ही हताश हो गई हो।”
इस तरह अमन अंशू को सुनाकर दूसरे कमरे में चला गया। फिर क्या था उसे भी एहसास हो रहा था कि मैंने ही बच्चों की आदतें बिगाड़ी है।वह बहुत दुखी होकर बैठ गई।तो उसकी दस साल की बेटी निया आई बोली-” मम्मी आप दुखी क्यों हो रही हो।” तभी निमित्त जो कि मोबाइल देख रहा था वह भी आया बोला “मम्मी हम लोग सब आपको बहुत परेशान करते हैं। “
फिर अंशू ने अपनी बेटी को बोला कि “यदि सब अपना – अपना थोड़ा काम करें तो मैं भी परेशान न होंगी ,पर तुम और तुम्हारे भैया ने तो परेशान करके रख दिया।”
निया पूछने लगी- “मम्मी पहले बड़े परिवार होते थे। तो पापा की नानी सबको कैसे संभालती रहीं होगी।” धीरे-धीरे अंशू के अंदर तूफान शांत हुआ वह बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बताने लगी-
“हम लोग दादी के यहां बचपन में इतने नये- नये नाश्ता की डिमांड नहीं करते थे।जो एक के लिए बनता था। वही सब लोग खाते थे।हम लोग जब छोटे थे ,तो मेरी दादी रोटी में घी लगाकर नमक छिड़क कर रोटी की पुंगी बना कर दे देती थी।हम लोग सब खा लेते थे।”
फिर कौतूहल वश निया पूछने लगी “डिफरेंट डिश खाने का मन नहीं करता था।रोज ही पुंगी रोटी आप सब खाती थी!”
“हमारी दादी लोगों के पास काम बहुत सारा होता था । कभी अचार का मसाला लगाकर,कभी सूखी सब्जी लगाकर भी रोल करके देती थी।”
“पहले देशी नाश्ता हुआ करता था जैसे पुरन पुरी, महेरी, खींच हुआ करता था।अब सब्जी के चक्कर में और पौष्टिक विटामिन के लिए तुम लोग के लिए क्या नहीं करती ।तुम लोग जैसे हम लोगों के नखरे नहीं होते थे।दादा जी के डर से सब खाते थे।
फिर अंशू ने बताया कि ऐसा नहीं है कि कुछ बनता नहीं था , त्योहार आते तो ढेरों पकवान बनते, जन्मदिन आता तो केक नहीं बल्कि पहले हलवा और खीर बनती थी। सब चाची लोग मिलकर काम करते थे। तो कोई अकेला काम नहीं करता था इसी कारण कोई नहीं थकता था।
अंशू की बातें भी निया के मन को बहुत प्रभावित कर गई। फिर उसने कहा- ” अच्छा मम्मी जो पापा खाया करेंगे वो मैं और भैया भी खाया करेंगे। तो आप अलग- अलग डिश बनाने में परेशान नहीं होगी।
इस तरह की बात सुनकर अमन ने भी कहा – ” चलो हम सब मम्मी की परेशानी जरूर कम कर सकते हैं ।अब सब के लिए अलग -अलग डिश नहीं बनेगी।और मम्मी की सब हेल्प किया करेंगे।”
इस तरह आज अंशू उन दिनों की याद करके खुश हो गई।इस तरह कुछ हद उसकी परेशानी कम हो गई।
दोस्तों – उन दिनों संयुक्त परिवार के कारण बच्चों के पालन-पोषण में कोई परेशानी नहीं होती थी, आज कल एकल परिवार की वजह से गृहणी पर काम का दायित्व बढ़ गया है। और तो और बच्चों को इच्छा पूर्ति के चक्कर में हम डिफरेंट डिश बनाकर खिलाते रहते हैं और ज्यादातर जंक फूड ही बच्चों को ज्यादा भाता है। जबकि पौष्टिकता देशी शुद्ध खाने में होती है।
दोस्तों – मेरे विचारों से सहमत हो तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें। और रचना पसंद आए तो लाइक और शेयर भी करें।
और भी रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फालो भी अवश्य करें।
धन्यवाद
आपकी अपनी दोस्त
अमिता कुचया