मेरी बेटियों पर गर्व है मुझे -कविता झा’काव्य’  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : दयमंती अपने बिस्तर पर बैठी अपने बेटे के आने का इंतजार कर रही थी। खिड़की पर पानी के छींटों की टिप टिप से मन में उम्मीद जग रही थी कि इस सावन उनकी दोनों बेटी अपने मायके आने वाली हैं। 

जब से दयमंती की आँखों की रोशनी गई है तब से यह बिस्तर ही उनकी पूरी दुनिया है। कुछ भी हो जाए वो बेटे के पास ही रहेंगी जैसा उनकी दादी और माँ ने किया उसके विरले वो कैसे अपनी बेटियों के घर में रह सकती हैं।

शादी के बाद बेटियां पराई हो जाती हैं यही बात तो उन्होंने बचपन से गांठ बांध रखी थी।

उनकी दोनों बेटियां हमेशा मां को अपने साथ रखने को तैयार थीं।

छोटी बेटी रुक्मा कहती, ” माँ भाभी के जाने के बाद तो आप बिल्कुल अकेली ही हो गई हैं, भाई को दिनभर काम के सिलसिले में बाहर रहना पड़ता है। कामवाली बाई तो काम करके चली जाती है फिर आप दिन भर अकेले ही रहती हो । हमेशा आपकी चिंता लगी रहती है । आपके जमाई जी भी यही कहते हैं आप यहाँ आ जाओ हमारे पास । माँजी और बच्चों के साथ आपका मन लगा रहेगा।”

बड़ी बेटी श्यामा भी कई बार माँ को अपने साथ अपने  घर ले जाने के  लिए आई। पर हर बार दयमंती मना कर देती।

इस बार रक्षाबंधन पर दोनों बहनों ने आने का वायदा करते हुए कहा था,” ठीक है मांँ आप हमारे घर नहीं आ सकती पर हम तो अपने घर आ ही सकते हैं। सावन शुरू होते ही आ जाएंगे और रक्षाबंधन के बाद  ही जाएंगे। बहुत समय हो गया दोनों बहनों को एक साथ समय बिताए और आपके पास रुके हुए। “

दयमंती का बेटा रमेश अपने दोस्तों के बहकावे में आ गया था कि माँ बाप की सम्पत्ति पर बेटियों का भी उतना ही हक है जितना एक बेटे का। उसके मन में शक घर कर गया था कि कहीं मेरी बहनें भी सम्पत्ति में अपना हिस्सा न माँग लें। शक के इस बीज ने जो उसके दोस्तों ने उसके दिमाग में बोया था वह दिन पर दिन विस्तृत आकार ले रहा था उसके मन-मस्तिष्क में। जब उसने अपने दोस्तों को बताया कि दोनों बहनें इस बार महीने भर यहांँ रुकेंगी तो उन्होंने यह बात उसके मन में डाल दी कि देखना फिर तो जरूर तुम्हारी मांँ से किसी कागज में अंगूठा ना लगवा लें और सारी सम्पत्ति अपने नाम कर लें। 

रमेश अपनी दोनों बहनों को बहुत प्यार करता था । दोनों से उम्र में बड़ा था और पिता के जाने के बाद घर और माँ को संभालने के साथ-साथ बहनों के ससुराल और रिश्तेदारी भी अच्छे से निभा रहा था। पर अचानक ही उसके व्यवहार में परिवर्तन आना शुरू हो गया जब से कुछ दोस्तों ने भड़काना शुरू किया।

दरवाजे पर दस्तक हुई तो दयमंती ने शांति को आवाज दी ,जो उनके यहांँ झाड़ू पोंछा करती और दो समय का खाना बनाती थी। 

” शांति जाकर गेट खोल दे, रमेश आया होगा।”

” मांँजी आप कैसे जान जातीं हैं, हाँ भईया ही आएं हैं मैंने अभी बालकनी से देखा।”

रमेश कमरे में आकर सोफे पर बैठ जाता है।

“बेटा आ गया तू, तेरी बहनों का फोन आया था दोनों एक ही ट्रेन से आ रहीं हैं। रसोईघर के समान की लिस्ट मैंने शांति से बनवा ली है मंगवा लेना। दोनों अब खूब तरह तरह का खाना बना बनाकर खिलाएंगी हम दोनों को।”

“ठीक है मांँ मंगवा लूंगा ।”बुझे मन से रमेश ने कहा।

रात को जब रुक्मा और श्यामा अपनी मांँ के पास बैठी बातें कर रहीं थीं और भाई को चुपचाप एक कोने में बैठे देखा तो कई बार बात करने की कोशिश की पर वो हूं हां भर करता।

पता नहीं भाई को हमारा इस तरह आना पसंद नहीं आया या दोनों बहनों को यही लगा।

अगले दिन रमेश जब अपने दफ्तर जा रहा था कि उसकी बाइक को एक तेज रफ्तार से आती ट्रक ने धक्का दिया और वो वहीं सड़क पर खून से लथपथ हो गया।किसी ने उसके मोबाइल से उसकी मांँ का नम्बर लगाया तो छोटी बहन ने उठाया। जब उसे भाई की दुर्घटना की खबर पता चली, मांँ को बिना कुछ बताए दोनों बहनें उस स्थान पर पहुंँची जहां रमेश का एक्सीडेंट हुआ था।वो उसे हस्पताल ले गई और वहांँ डॉक्टरों ने बताया इलाज में काफी खर्च आएगा।

पैसों की चिंता मत कीजिए डॉक्टर साहब, आप बस हमारे भाई का इलाज शुरू कीजिए।

महीने भर बाद रमेश अस्पताल से व्हील चेयर में बैठ अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ रहा था। उसके इलाज में लाखों रुपए खर्च हुए।

राखी बंधवाते वक्त उसकी आंँखों से आंँसू छलक कर अपनी छोटी बहन के हाथ पर गिरे तो वो बोली भाई आप अकेले नहीं हो माँ और आपका पूरा ध्यान हम दोनों बहनें रखेंगी।

रमेश की आँखों से पश्चाताप के आँसू गिर रहे थे, अपनी बहनों पर अपने दोस्तों के बहकावे में आकर व्यर्थ में ही शक कर रहा था।

दयमंती को अपनी बेटियों पर गर्व हो उठा, आज अपने भाई की जान बचाने के लिए इन्होंने अपने गहने जेवर तक बेच दिए। ऐसे ही भाई बहनों का प्यार बना रहे। रमेश ने अपने पिता की संपत्ति वाले कागजों पर दोनों बहनों के भी हस्ताक्षर करवा लिए इतना कहकर कि हम तीनों का समान अधिकार है पापा की जोड़ी सम्पत्ति पर। रमेश ने दोस्तों द्वारा बोया शक का बीज जो अंकुरित हो गया था उसे हमेशा के लिए अपने दिलोदिमाग से दूर कर दिया।

कविता झा’काव्य’

#शक

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