कुछ खास है तुझमे – नीरजा नामदेव  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नमन रोते-रोते अपनी दादी के पास आया और उनकी गोदी में सिर रखकर फफक- फफक कर रोने लगा ।दादी उसका रोना देखकर घबरा गई ।प्यार से उसका सिर सहलाते हुए उसके आँसू पोंछे और  पूछने लगी “क्या हो गया बेटा? क्यों रो रहा है? बता तो।”

 नमन सिसकियां लेने लगा उसके मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी। दादी ने उसे थोड़ा शांत होने दिया ।वह  धीरे-धीरे उसका सिर सहलाती रहीं।थोड़ी देर बाद नमन का रोना कम हुआ ।दादी ने उसे बिठाया। पानी का गिलास ला कर दिया और कहा “पहले पानी पी उसके बाद बता क्या हुआ।”

 नमन ने पानी पिया। उसकी आंखों से अभी भी आंसू बहे रहे थे ।उसने दादी से कहा “सच में दादी मैं किसी काम का नहीं हूँ।” दादी ने उसकी बात सुनकर स्नेह से कहा “ऐसा क्यों कह रहा है। तू तो मेरा राजा बेटा है।” नमन ने उदास स्वर में कहा” दादी बस आप ही ऐसा कहती हो ।सब तो मुझे हमेशा कहते हैं तू किसी काम का नहीं है। तुझसे कोई काम  ढँग से नहीं होता ।

दादी ने नमन के हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा” बता तो क्या हुआ है।”

आज नमन ने अपने मन में छुपी हुई सारी बातें  दादी को धीरे-धीरे बतानी शुरू की  “घर में पापा- मम्मी,  नीति दीदी हमेशा मुझे यही कहते रहते हैं कि तू कोई काम ढंग से नहीं कर सकता ।तू किसी काम का नहीं है ।”

      नमन कोई भी काम करता था तो बहुत धीमी गति से करता था  वह जल्दी करने की कोशिश भी करता था तो नहीं कर पाता था ।उस दिन पापा ने उसे शर्ट प्रेस करने के लिए कहा ।नमन शर्ट प्रेस कर रहा था लेकिन पापा उससे जल्दी-जल्दी करने को कह रहे थे। जल्दी जल्दी करने के कारण नमन और हड़बड़ा जा रहा था।

पापा के ऑफिस जाने का टाइम हो गया तो उन्होंने आकर नमन को डांटते हुए कहा” इससे अच्छा तो मैं यह काम खुद कर लेता ।तुझसे तो कोई काम कहना ही बेकार है। तू किसी काम का नहीं है।” यह आज की बात नहीं थी अक्सर पापा उससे  ऐसा ही कहते थे। मम्मी जब कभी बाजार से सामान मंगवाती तो चार सामान का नाम बताती। नमन उसमें से तीन ही सामान याद कर ला पाता था ।हमेशा कुछ न कुछ भूल जाता था। तब मम्मी भी हमेशा उसे यही कहती तू किसी काम का नहीं है। कभी तो सही ढंग से काम किया कर।

 मम्मी -पापा के जैसे कि उसकी दीदी नीति भी उसे कोई काम करने कहती तो नमन धीरे-धीरे करता। कभी पढ़ाई में उसकी सहायता करती तो नमन धीरे-धीरे लिखता था। इस कारण नीति भी हमेशा उससे यही बात कहती थी।

     स्कूल में भी हमेशा उसे अपने बारे में यही सुनने को मिलता था। उसके सभी सर मैडम भी उससे यही कहते थे। क्लास में जब कुछ लिखवाया जाता तो वह सबके साथ लिख नहीं पाता था। सबसे पीछे रह जाता था। प्रश्न के उत्तर उसे याद रहते थे लेकिन जब बोलता था तो अटक अटक कर बोलता था।         आज भी कक्षा में सर ने उसे प्रश्न का उत्तर  जल्दी से न बोल पाने के कारण बहुत डांटा और कहा  तुम किसी काम के नहीं हो।

 उसके दोस्त भी सब से यही सुन सुनकर उसे चिढ़ाते थे ।उसके खाने की स्पीड भी कम थी। लंच टाइम में वह टिफिन करता था तो धीरे-धीरे खाता था ।उसके बाकी दोस्त  जल्दी खाकर खेलने लग जाते ।सब उसका मजाक उड़ाते थे।

 रोज-रोज यही बातें सुन सुनकर वह बहुत दुखी होता  था।वह जल्दी काम करने की कोशिश करता ,सभी चीजों को अच्छे से करने की कोशिश करता लेकिन नहीं कर पाता था ।

बस घर में दादी ही उसकी बात समझती थी। कभी उससे कोई शिकायत नहीं करती थी ।

आज सुबह घर में पापा की डांट से और स्कूल में सर और उसके दोस्तों के वही बात कहने से उसका मन बहुत आहत हो गया था। इसलिए वह आकर दादी के पास रोने लगा था।

दादी ने नमन की सारी बातें धैर्य से सुनीं। दादी ने उसे समझाया “भगवान ने किसी को भी ऐसे ही नहीं बनाया है। सबका कोई ना कोई काम है ।सबकी किसी न किसी को जरूरत है। सब का महत्व है ।आ तुझे एक चीज दिखाती हूं ।”कहते हुए

दादी उसे पीछे आँगन में लेकर गई। वहां एक सूखा हुआ कद्दू रखा हुआ था उसके अंदर कद्दू के छोटे-छोटे पौधे उगे हुए थे। दादी ने कद्दू को दिखाकर नमन से  कहा “तुझे याद है  न ये कद्दू ।” नमन को याद आया की कुछ महीने पहले पापा यह साबुत कद्दू लेकर आए थे। फिर वह लोग गर्मी की छुट्टियों में बाहर चले गए थे ।

कद्दू घर में  ऐसा ही रखा रह गया था। जब वे छुट्टियों से वापस आए तो कद्दू पूरी तरह सूख गया था। मम्मी ने उसे बुलाकर कहा था कि यह कद्दू किसी काम का नहीं है ।इसे  आँगन के कोने में रख दे। और मैं कद्दू को ले जाकर आंगन के कोने में  रख दिया था।

दादी ने कहा “देख तेरी मम्मी ने कहा था ना यह कद्दू किसी काम का नहीं है। लेकिन आज इस सूखे हुए कद्दू के बीजों से छोटे-छोटे पौधे उग गए हैं। यह बड़े बेल बनेंगे फिर इसमें कई सारे कद्दू लगेंगे। जब यह छोटा सा कद्दू भी आज काम का है तो तू कैसे नहीं है। तेरा भी समय आएगा। तू किसी की बातों की दिल से मत लगा।

आगे बढ़ने की कोशिश कर। सबको धीरे-धीरे तेरा महत्व पता चल जाएगा। किसी के लिए हो ना हो मेरे लिए तो तेरा बहुत महत्व है ।तू रोज मेरे पास आकर अपनी सारी बातें बताता है।मुझसे कहानियां सुनता है ।मेरा ध्यान रखता है।तेरी मम्मी- पापा, दीदी तो अपने-अपने काम में व्यस्त रहते हैं ।तेरे साथ रहकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब मैं बीमार हो जाती हूं तो तू मुझे समय पर दवाई देता है। मेरा ध्यान रखता है। तो बता तेरा महत्व है कि नहीं।”

  दादी की बातें सुनकर नमन का मन हल्का हो गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा “हाँ दादी, अब मैं कभी इस बात को सोच कर दुखी नहीं होऊंगा। अपना काम अच्छे से करूंगा। अब मुझे भी समझ आ गया है कि मुझ में भी कुछ खास है जो कभी ना कभी सबको मालूम हो जाएगा ।” और वह दादी से लिपट गया।

 दादी पोता दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे।

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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