Moral stories in hindi : नीतू और विवेक के विवाह को 5 वर्ष हो गए। नीतू रंग से सांवली, बदन में भी थोड़ी भारी। वैसे नाक नक्श खिलता है।अपने रूप रंग को लेकर नीतू हमेशा हीन भावना से ग्रस्त रहती।
उसके पापा ने उसके विवाह में अच्छा पैसा लगाया। विवेक नौकरी पेशा है, और उसकी अच्छी तनख्वाह है। रूप रंग में भी विवेक आकर्षक व्यक्तित्व का है। विवेक का परिवार भी सही है। विवेक का परिवार नीतू को खूब स्वीकार कर लेता है।
लेकिन नीतू अपने रूप रंग की हीन भावना से ग्रस्त के चलते परिवार में उपेक्षित व्यवहार करती है। विवेक उसको समझाता कि उसे उसके रूप रंग से कोई परेशानी नहीं है वैसे भी जिंदगी तो गुणों से ही चलती है।
उन के दो बच्चे भी हो गए। नीतू अब उनमें और अधिक व्यस्त रहने लगी। अपने पर समय कम दे पाती। शरीर और अधिक फैल गया ।
नीतू कुछ चिड़चिड़ी सी भी हो गई। मोबाइल के अधिक प्रयोग से उसकी मानसिकता पर भी फर्क पड़ने लगा। इंस्टाग्राम पर उजूल- फिजूल रील्स को देख देख कर उसके मन में वहम पड़ जाता है ।वह विवेक पर#शक की निगाह रखने लगी। ऑफिस में वीडियो कॉल कर देती। विवेक को किसी लड़की से बात करते देख उसका माथा ठनक जाता। पूरे घर में कोहराम मचा देती। विवेक पर गलत इल्जाम लगाती।
विवेक बर्दाश्त कर रहा था। एक दिन नीतू ने पूरा घर सर पर उठा रखा था, इतने में विवेक का हाथ उस पर छूट जाता है।
फिर क्या नीतू अपना बोरिया बिस्तर बांध अपने बच्चों को लेकर मायके आ धमकती हैं।
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उसके मम्मी पापा उसे बहुत समझाते हैं,”बेटा गुस्सा तो थोड़ी देर का ही अच्छा होता है। कोई ऐसे अपना घर छोड़ कर थोड़े आता है।”
पर नीतू को किसी की बात समझ में नहीं आती। धीरे-धीरे 6 महीने बीत जाते हैं। बच्चे भी उखड़े से हो गये। लेकिन नीतू अपने अहम के आगे सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थी।
अब उसके भाई के विवाह की तैयारी होने लगी। कई रिश्ते वाले तो नीतू के मायके में रहने की वजह से कन्नी काट गए। बड़ी मुश्किल से उसके भाई का रिश्ता तय हुआ।
विवाह के दिन नजदीक आ गए। उसका परिवार भाई के विवाह की तैयारियों में जोर-शोर से लगा था। खूब शॉपिंग हो रही थी। उसे भी पूछा जाता लेकिन उसका मन अंदर से अशांत था।
उसे किसी काम में दिलचस्पी महसूस नहीं होती। कभी-कभी तो वह अपनी भाभी की शॉपिंग देखकर जलन भी महसूस कर जाती।
एक दिन उसने अपनी मम्मी से कह भी दिया,”मम्मी आपने मेरी शादी पर तो इतना जेवर नहीं चढ़ाया था। साड़ियाँ भी कुछ हल्की थी।”
उसकी मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा,”देख बेटा तेरे समय पर जो बना, वो हमने कर दिया। ऐसे कोई होड़ नहीं होती। और वैसे भी बहू तो घर की लक्ष्मी होती है।”
इतना सुनते ही हो नीतू सोचने पर विवश हो गई। क्या अब घर पर मेरा कोई हक नहीं?
उसके पापा ने उसे समझाया,”बेटा तुम्हारा यह घर हमेशा है। जितना मन चाहे रहो। पर इन बच्चों को इनके घर से तो मत दूर करो। अपने अहंकार की वजह से तुम इनका जीवन क्यों खराब कर रही हो?”
अब तो मानो नीतू पर घड़ों पानी गिर पड़ा। वह वास्तविकता की दुनियाँ में आई।वह सोचने पर मजबूर हो गई कि बहू के आने का उसके परिवार के लोग कितना इंतजार कर रहे हैं। तो शायद मेरे ससुराल वाले भी मेरा इंतजार करते होंगे।
ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं था। अपने कमरे में जाकर नीतू रात भर तकिया भिगोती रही। बड़ी मुश्किल से उसने विवेक को फोन मिलाया। फोन सुनते ही विवेक चहक कर बोला”नीतू अब घर आ जाओ। तुम्हारे बिना यह घर बिल्कुल सूना हो गया है।”
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इतना सुनते ही नीतू की रुलाई फूट गई। सारे गिले शिकवे रो-रो कर वयाँ कर दिए।
सुबह होते ही विवेक गाड़ी लेकर नीतू और बच्चों को लेने आ गया। विवेक को देखकर उसके घर परिवार के लोग बहुत खुश हुए। नाश्ता करा कर व टीका कर उसके मायके वालों ने सबको विदा किया। नीतू खुशी- खुशी अपने घर लौट गई।
आज उसके मन में कोई मैंल नहीं था। ना ही अपने रूप रंग को लेकर कोई हीन भावना। ना विवेक पर सन्देह। उसे जीवन की वास्तविकता समझ में आ गई कि रूप रंग तो बाहरी आवरण है जो खासतौर पर रिश्ते कराने में काम आता है। रिश्तो में निभाव तो गुणों से ही होता है।
नीतू के मायके वाले भी खुश।उनकी बेटी का घर टूटने से बच गया। और वैसे भी भैया के ब्याह में नीतू अपने ससुराल वालों के संग इज्जत से आएगी तो उनका भी मान बड़ा होगा।
ससुराल पहुंचते ही उसकी सास उसे एकदम गले से चिपटा लेती हैं। बच्चे भी अपने घर को देखकर एकदम खिल जाते हैं। पूरा घर खुशियों से भर जाता है।
आज इस घर की खुशियाँ फिर से लौट आती हैं। सच बात है कि रिश्ते बड़ी समझदारी से निभाए जाते हैं। अगर बड़े लोग सही राय दें तो बहुत रिश्ते टूटने से बच जाए। रिश्तो को निभाने के लिए प्रेम और विश्वास की बड़ी आवश्यकता होती है।
और जिस घर में लोग सेतु बन जाए तो शायद ही कोई रिश्ता टूटे।
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