मेरे दुख किसके ..!! – अंजना ठाकुर : Moral stories in hindi

ललिता अपने कमरे मै उदास बैठी थी !सोच रही थी

की क्या कभी कोई उसके भी दर्द को समझेगा पूरी जिंदगी अपने कर्तव्य निभाने मैं ही निकल गई !

ललिता जब शादी हो कर आई तो उसकी उम्र अठारह साल थी !और उस कम उम्र मैं पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधो पर आ गई !तीन ननद ,दो देवर, पति ब्रजेश ने साफ कह दिया की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए मेरा परिवार पहले है किसी को दुख न पहुंचे तुम्हारे कारण ।

एक आज्ञा करी पत्नी की तरह उसने हर बात 

मान ली सबकी जिम्मेदारी मैं किसी ने उसका दर्द जानने की कोशिश नही करी, न कभी ब्रजेश ने कोशिश करी की – उसके मन की बात जान कभी उसके साथ कहीं घूमने जाएं ,या इतना समय और अपनापन दे की वो अपनी बात कह पाए।

सबकी जिम्मेदारी के कारण मायके भी तभी जा पाती जब जरूरी काम हो उस पर साथ मैं या तो ननद या देवर को भेजा जाता जो उसके साथ ही चिपके रहते ।ललिता को लगता शायद मेरे बच्चे मेरा ख्याल रखेंगे  जैसे मेरे पति रखते है और जल्दी ही ललिता दो बच्चों की मां बन गई और कब जवानी से बुढ़ापा आ गया उसे पता ही नही चला जिंदगी एक मशीन की तरह चली जा रही थी जहां उसकी भावनाएं मर सी गई थी ।

ललिता की बेटी की शादी थी तीनों ननद सात दिन पहले ही आ धमकी शादी के घर मैं पचास काम होते है लेकिन,अपनी आदत से मजबूर वो आज भी

हर चीज जगह पर मिल जाए उसी उम्मीद मैं थी ।

ललिता भी कोशिश कर रही थी ब्रजेश से उसने कहा भी एक मेड रख लेते है शादी का घर है जरूरत पड़ेगी !ब्रजेश ने बोला ऐसा भी क्या काम है

मेरी बहने ही तो आई है बाकी सब तो शादी मैं ही आएंगे तुम उनका भी ध्यान नहीं रख सकती।

ललिता चुप हो गई बेटा बाहर के काम देख रहा था !और बेटी गुंजन अपनी तैयारी मैं।

आज ललिता का सर भारी हो रहा था तो उसने बड़ी ननद से कहा की आज का खाना आप लोग बना लो मैं दवाई खा कर थोड़ी देर लेट लेती हूं तो जल्दी ठीक हो जाएगा।

इतना सुनते ही ननद बरस पड़ी लो हमारा आना तुम्हे अखर रहा है अब हम नौकरानी बन कर इस घर मैं काम करे पहले ही कह देती तो हम शादी मैं ही आते ।

शोर सुनकर ब्रजेश भी आ गए और बात जानकर ललिता को चिल्लाने लगे तुमसे इतना सा काम नहीं होता मैने कहा था तुम्हारी वजह से किसी को दुख नहीं होना चाहिए तुम्हे समझ नहीं आता।

आज ललिता का सब्र भी जवाब दे गया मैंने इतने सालों तक इस बात का ध्यान रखा !लेकिन तुमने कभी मेरे दर्द को जानने की कोशिश करी,मुझे क्या जरूरत है ,मेरा मन काम करने का है की नहीं तुमने तो शादी करके अपनी जिम्मेदारी दे दी  पर मेरी कभी किसी ने नहीं ली मेरे दर्द किसके हुए ।।

और एक बात और सुन लो अब मैं अपने दर्द का इंतजाम भी खुद कर लूंगी बहुत सेवा कर दी सबकी क्या फल मिला उसका !अब तुम देख लो कैसे इंतजाम करना है कहती हुई ललिता अपने कमरे मै चली गई ।

ब्रजेश और तीनों ननद खड़ी देखती रही।।

अक्सर ऐसा ही होता है किसी के सीधेपन का इतना फायदा उठाया जाता है की फिर इक्कठा लावा निकलता है ! सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की परिवार मैं सबकी जिम्मेदारी बराबर होनी चाहिए एक इंसान से सारी उम्मीद करना अक्सर परिवार टूटने का कारण बनती है

ऐसे मेरे विचार है !आपकी क्या राय है जरूर बताएं।।

#6 जन्मोत्सव प्रतियोगिता

स्वरचित

अंजना ठाकुर

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