“मेरे आंगन की लक्ष्मी” – कविता भड़ाना : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : प्रिया का रोते रोते गला सूख चुका था और आंखें पथरा गई थी , उसे यकीन ही नहीं आ रहा था की ये वही भाई है जो उसे थोड़े से भी कष्ट में देखकर बैचेन हो जाता था। 

दो साल पहले बहुत ही धूमधाम से प्रिया की शादी राजीव से हुई थी, सास ससुर और एक छोटा देवर बस यही छोटा सा परिवार था ससुराल में, बहुत ही लाड प्यार से पली बढ़ी प्रिया को ससुराल में घर का काम करना बहुत अखरता था

वैसे तो दूसरे कामों के लिए एक नौकरानी लगी हुई थी परंतु खाना बनाने का काम प्रिया की सास ही देखती और एक दिन उन्होंने बड़े प्यार से प्रिया को रसोई संभालने के लिए कहा तो वह भड़क उठी और बोली मेरे पापा ने करोड़ों की शादी और दान दहेज इसलिए नही दिया की मैं यहां नौकरों की तरह काम करू, मेरी मम्मी ने तो कभी मुझ से कोई काम नही कराया तो यहां भी क्यों करूं??.. सास ने बात बिगड़ती देख चुप्पी साध ली और अपने काम में लग गई, करीब दो घंटे बाद उन्होंने देखा कि प्रिया की मम्मी, पापा और भाई चले आ रहे है, उन्हें यू अचानक आया देख प्रिया की सास का माथा ठनका पर उन्होंने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया और प्रिया को आवाज लगाई। 

“बस समधन जी रहने दे आप अपना ये दिखावा, अरे हमारी फूल सी बेटी को क्या हमने यहां काम करने के लिए भेजा है, आजकल तो सबके घरों में खाना बनाने के लिए कुक होते है तो आप क्यों हमारी बेटी के पीछे पड़ी है की वही खाना बनाएं? आपके हमारे जमाने और थे, जब घर का काम करना मजबूरी होती थी पर आजकल ऐसा नहीं है तो आप भी प्रिया को मजबूर मत कीजिए.. प्रिया की मम्मी ने अपनी बात रखते हुए कहा तो बहुत देर से चुपचाप उनकी बात सुनकर प्रिया की सास बोली.. बहनजी पहली बात प्रिया बिल्कुल मेरी बेटी की तरह है और किसी भी लड़के या लड़की को रसोई के काम आने ही चाहिए ताकि भविष्य में कभी कोई दिक्कत ना हो, वैसे तो बेटी की मां होने के नाते ये आपका फर्ज बनता था की आप अपनी बेटी को खाना बनाना सिखा कर भेजती पर अगर मैं ये कर रही हूं तो आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। 

जब ये बातें चल रहीं थी तब राजीव और उसके पापा भी दरवाज़े पर खड़े सारी बात सुन रहे थे ,राजीव ने प्रिया को घर की छोटी सी बात के लिए अपने पीहर वालो को बुलाने के लिए डांटा तो प्रिया बिफर पड़ी और साथ ना रहने का बोल कर अपने मम्मी पापा और भाई के साथ पीहर लौट आई, प्रिया की सास ने उसे खूब मनाने की कोशिश की और घर लौट आने के लिए कहा पर प्रिया ने साफ इंकार कर दिया, कुछ वक्त गुजरा पर प्रिया वापस नहीं आई।

एक साल बाद प्रिया के भाई की भी शादी हो गई पर अब भाभी के आ जाने से चीज़े बदलने लगी,  कल तक जो काम उस से पूछ कर होते थे अब प्राथमिकता उसकी भाभी को दी जाती, यही बात प्रिया को बुरी लगने लगी….

एक दिन भाई भाभी को खिलखिलाते हुए बाहर घूमने जाते देख प्रिया ने मारे जलन के अपनी भाभी का फोन गुस्से से नीचे पटक दिया, उसकी इसी बात से खफा होकर बड़े भाई ने एक थप्पड़ प्रिया को लगा दिया, ये सब प्रिया के मम्मी पापा ने भी देखा पर किसी ने कुछ नहीं कहा… प्रिया गुस्से और अपमान की आग से जल उठी उसने अपने मम्मी पापा को सुनाना शुरू कर दिया की आपने पराई लड़की के लिए अपनी बेटी का साथ तक नहीं दिया, क्यों नही आपने भाई को डांटा, तब प्रिया की मम्मी बोली क्योंकि

 “ये घर पहले मेरी बहू का है” तू तो अपनी नादानियों से अपना घर आंगन छोड़ आई, अब क्या मैं अपनी बहू को भी अपना आंगन सूना करने दू”… अपनी मम्मी के ऐसे कड़वे बोल सुनकर प्रिया ने एक फैसला किया और थोड़ी देर में ही अपनी ससुराल के चौखट पर जा खड़ी हुईं।

 राजीव और उसके मम्मी पापा बदहवास सी प्रिया को देख द्रवित हो उठे और बिना प्रिया के कुछ कहे मानो सब कुछ समझ गए थे।

 प्रिया की सास जल्दी से पूजा की थाली लाई और आरती उतार कर बोली, आखिर “मेरे आंगन की लक्ष्मी” लौट आई है और प्रिया को गले लगाकर अंदर ले आई।

 आज प्रिया को एहसास हो गया था की शादी के बाद एक बेटी का असली घर आंगन उसका ससुराल ही होता है। 

 स्वरचित, मौलिक रचना

 #घर-आंगन

 कविता भड़ाना

 

(V)

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