दिए की लौ – नीरजा कृष्णा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : घर में औरतों का जमघट लगा है।  सुहासिनी एक  तरफ़ चुपचाप सिर झुकाए बैठी हैं।  रात में वीरेंद्र बाबू की ह्रदयाघात से मृत्यु हो गई है… सब इतना अकस्मात हो गया कि उन्हें कुछ सोचने संभलने का भी मौका ही कहाँ मिला।बेटे बहू को पड़ोसियों ने खबर कर दी है… वो लोग आने ही वाले है।

वो इतनी चुप्पी साधे बैठी हैं। आस पड़ोस की औरतें खुसुर पुसुर कर रही हैं”हे भगवान… कैसा घोर कलियुग आ गया है…. पति मर गया पर मजाल है एक बूँद आँसू आया हो…कैसी सती साध्वी बनी सिर झुकाए बैठी है।”

“सच्ची जिज्जी, ठीक कह रही हो। मुझे सब पता है… इन दोनों में जरा भी नही पटती थी। माना बीरू बाबू का हिसाब किताब ठीक नही था, थोड़ा नशा वगैरह भी करते थे पर मर्दों का ये सब तो झेलना ही पड़ता है।  सुहासिनी भाभी तो…अब छोड़ो ..अभी इन सब बातों का मौका नही है… बाद में सब बताऊँगी।”

बाकी सब जो खूब कान लगा कर सुन रही थी। वो निर्विकार भाव से बैठी थी। उनके मन में पिछली सब बातें चलचित्र की तरह घूम रही थी….कैसी जिंदगी उनको मिली…. कभी चैन से नही रह पाई…बचपन में डिक्टेटर पिता का भीषण रौबदाब…पूरा घर सहमा सहमा पर सोचती थी…चलो विवाह होगा तो पति के साथ तो सुख से बीतेगी पर ये भी मृगतृष्णा साबित हुआ..घोर शराबी और अय्याश पति

को झेलना दूभर होने लगा था पर इधर खाई तो उधर कुआँ…बस बेटे की ममता ने मरने भी नहीं दिया।  आज लग रहा है… घोर कष्टों से मुक्ति मिली है पर ये औरतें????उफ्फ़।

अचानक वो धरातल पर आ गई।  बाहर चहलपहल..विवेक और बहू आ गए थे। अपने बच्चों से लिपट कर बेसाख्ता रो पड़ी…सुख दुख का मिश्रित भाव था…धीरे से उसने माँ को थपथपाया और वंदना को इशारा किया।

अंतिम संस्कार के पश्चात् शाम को सब बैठे। धीरे से बेटे ने उनको साथ ले जाने की बात उठाई पर वो नहीं मान रही थी,” नही बेटा, मुझे यही रहने दो। जीवन भर तो सहती आई हूँ…बचपन में पिता जी…जवानी में तेरे पापा…अब बेटा बहू के राज में रहना होगा… ना बेटा …अब कुछ दिन मुझे अपने ढंग से अपने राज में रहने दो।”

वंदना खामोश बैठी सुन रही थी, अचानक बोल पड़ी,”अरे मम्मी जी! ये क्या कह रही हैं। विवेक से मुझे सब पता चल चुका है। अब आपके कष्ट के दिन समाप्त हो गए।  अब तक आप सबके राज में रहीं पर अब आपके राज करने के दिन हैं… आपकी ये नटखट बहू और पोता …सब आपके राज में रहेगें।”

वो उसे गले लगा कर फूट फूट कर रो पड़ी।

नीरजा कृष्णा

पटना

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