मेरा परिवार – माता प्रसाद दुबे

विकास! तुम हमेशा देर से आते हो.तुम्हें यह ख्याल ही नहीं रहता..कि कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा है?”गीता विकास को देखकर शिकायत करते हुए बोली। गीता! तुम्हारी बात जायज है..मगर क्या करूं आफिस से लौटकर मैं जल्दी घर जाता हूं..मम्मी मेरी राह तकती रहती है..जब तक मैं घर नहीं पहुंच जाता मम्मी परेशान होती है?”विकास गीता को समझाते हुए बोला। विकास! मेरे पापा मम्मी तुमसे मिलना चाहते है..मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है?”गीता रेस्टोरेंट की टेबल पर विकास के साथ बैठते हुए बोली। ठीक है..लेकिन तुम्हारे पापा मेरी मम्मी से बात करे तो ज्यादा अच्छा होगा?

“विकास गीता की तरफ देखते हुए बोला। मैंने पापा को तुम्हारी फैमिली के बारे में सब कुछ बता दिया है.. उन्हें तुम्हीं से बात करनी है?”गीता विकास के हाथों पर अपने हाथ रखते हुए बोली। ठीक है..पहले कुछ खा लेते है.. फिर जिस दिन तुम कहोगी..मैं तुम्हारे पापा मम्मी से मिलने आ जाऊंगा?”विकास गीता की आंखों में झांकते हुए बोला। ओके..थैंक्स?”गीता मुस्कुराते हुए बोली। कुछ देर रेस्टोरेंट में खाने पीने और बातें करने के पश्चात विकास और गीता अपने घर की ओर निकल पड़े।

 

गीता और विकास कालेज में साथ पढ़ते थे..दोनों पहले अच्छे दोस्त थे..दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे..दोस्ती प्रेम में बदल चुकी थी। विकास के परिवार में उसकी मां छोटी बहन रश्मि व छोटा भाई प्रकाश था..उसके पिता का देहांत हो चुका था..उसकी मां व छोटे भाई बहन उसे बहुत प्यार करते थे..विकास भी उनके बगैर नहीं रह सकता था..वह एक अच्छा बड़ा भाई और अपनी मां को ईश्वर का रूप समझने वाला आदर्श बेटा था। जबकि गीता अपने मां बाप की इकलौती संतान थी..गीता के पापा बहुत ही प्रतिष्ठित व्यापारी थे..उनका करोड़ों रुपए का व्यापार था। विकास सरकारी विभाग में प्रतिष्ठा वाले पद पर कार्यरत था।

 



रविवार का दिन था.. विकास गीता के पापा से मिलने उनके घर पहुंच चुका था..गीता उत्सुकता से अपने पापा मम्मी के साथ विकास के आने की राह देख रही थी। विकास को देखकर गीता खुशी से झूम रही थी।

पापा!यह विकास है?”गीता विकास से अपने पापा का परिचय कराते हुए बोली।”नमस्ते अंकल!” विकास गीता के पापा का अभिनंदन करते हुए बोला।”बैठ जाओ बेटा?” गीता के पापा विकास की तरफ देखते हुए बोले। विकास सोफे पर बैठ गया। गीता के घर का नौकर मेज पर नाश्ता लगा रहा था। विकास के मन में घबराहट हो रही थी..वह गीता की ओर देख रहा था।

“देखो बेटा गीता मेरी इकलौती बेटी है..जो कुछ मेरे पास है,सब मेरी बेटी का ही है..तुम्हें मेरी बेटी पसंद करती है..मुझे दामाद नहीं एक बेटा चाहिए जो मेरी बेटी और मेरे कारोबार की देखरेख कर सकें?”गीता के पापा विकास की ओर देखते हुए बोले।”क्या मतलब है आपका..जो भी कहना चाहते है आप स्पष्ट रूप से कहें?”विकास हैरानी से गीता के पापा और गीता की तरफ देखते हुए बोला। “मेरे कहने का मतलब तुम समझ गये होगे.. 

मुझे अपनी बेटी के लिए घर जमाई चाहिए..जो हमारे साथ हमारे परिवार का हिस्सा बनकर हमारे साथ रहें?”गीता के पापा विकास और गीता की तरफ देखते हुए बोले। गीता विकास की ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। विकास खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा था। कुछ देर शांत रहने के बाद विकास बोला।”माफी चाहूंगा..मेरा परिवार मेरी मां है..जिसने मुझे जन्म दिया.. कठोर परिश्रम करके मुझे इस काबिल बनाया..मेरे छोटे भाई बहन है.. जो मेरे परिवार का हिस्सा है.. मैं जिससे शादी करूंगा वह हमारे परिवार का हिस्सा बनेगी.. मैं किसी अन्य परिवार का हिस्सा कैसे बन सकता हूं?”विकास गीता और उसके पापा की ओर देखते हुए बोला। विकास! तुम यह क्या कह रहे हो..क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते?”गीता विकास के करीब आकर बोली।”गीता! मैं तुमसे प्यार करता हूं..इसमें कोई संदेह नहीं है..मगर तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं अपनी मां,भाई बहन को छोड़कर तुम्हारे पापा का गुलाम बनकर घर जमाई बन जाऊंगा..तुम्हें समझने में शायद मुझसे भूल हो गई है?”विकास गीता से गुस्साते हुए बोला।”तुम हमें गलत समझ रहे हो बेटा..हमारी मजबूरी है?” गीता के पापा विकास को समझाते हुए बोले।”कोई मजबूरी नहीं है आपकी..बेटी की शादी के बाद वह पराई नहीं हो जाती.. दुनिया बदल चुकी है..शादी के बाद भी वह आपकी ही बेटी रहेगी..मैं कभी उसमें बांधा उत्पन्न नहीं करूंगा..यदि आपकी बेटी मुझसे सच्चा प्रेम करती है,तो उसे मेरे परिवार में शामिल होना पड़ेगा?” विकास गीता के पापा को समझाते हुए बोला। विकास! क्या तुम मेरे लिए अपनी जिद नहीं छोड सकते?”गीता विकास की आंखों में झांकते हुए बोली। गीता!शायद मैं तुम्हें समझ नहीं पाया..मैं तुम्हारे लिए अपना परिवार नहीं छोड़ सकता..अगर तुम मेरे परिवार में शामिल होना चाहो तो मेरे दिल के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले हुए है.. मैं इंतजार करूंगा?” कहते हुए विकास गीता के घर से बाहर निकल गया।

 

माता प्रसाद दुबे

स्वरचित लखनऊ

 

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