नीरजा अपने पति धीरज के साथ जिस शहर में रहती थी,उस मोहल्ले में बहुत सारे अच्छे परिवार रहते थे। उन्हीं में से एक मिश्रा जी का परिवार भी रहता था। वो उसी गांव के पास के रहने वाले थे जहां नीरजा और धीरज का भी गांव था।
इसलिए दोनों परिवारों में बहुत आना जाना लगा रहता था। मिश्रा जी की पत्नी नहीं थीं। उनके तीन बेटियां और एक छोटा बेटा था। बड़ी बेटी नीरा नौकरी करती थी। नीरा और नीरजा में बहुत प्रेम था और नीरा नीरजा को दीदी और धीरज को जीजा जी कह कर बुलाती थी। अक्सर दोनों को नीरा के पापा अपने घर खाने पर बुलाते रहते। दोनों परिवारों की दोस्ती सबके लिए एक मिसाल बन गई थी। लगता ही नहीं था कि दो अलग-अलग परिवार हैं।
नीरजा गर्भवती थी, डाक्टर ने उसे बेडरेस्ट के लिए सख्त हिदायत दी थी। इस कारण नीरा सुबह-शाम आकर नाश्ता खाना बनाने लगी।उसका अधिकांश समय अब नीरजा की देखभाल में बीतता।
कुछ दिनों से नीरजा ने गौर किया कि उसका पति नीरा पर ज्यादा ही निर्भर रहने लगा है। नीरा धीरज को नाश्ता खाना परोसती। उसके कपड़े, पर्स, घड़ी रूमाल वगैरह देती। जीजा जी, जीजा जी कहते नीरा का मुंह नहीं थकता था। धीरज के मुंह पर बस नीरा का ही नाम रहता। दोनों आपस में खूब हंसी मजाक करते।
ये सब देखकर नीरजा के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा।
उसे लगता दोनों उसकी मजबूरी का गलत फायदा उठा रहे हैं। पर वो कुछ बोल नहीं पाती थी क्यों कि उसे नीरा की बहुत जरूरत थी।
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समय आने पर नीरजा ने अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया। उसे अस्पताल में कई दिन रहना पड़ा। नीरा ने नौकरी से अवकाश ले लिया और अस्पताल में उसकी और उसके बच्ची की देखभाल करने लगी। कुछ समय के लिए नीरा और धीरज एक साथ खाने पीने के लिए घर भी चले जाते। इससे नीरजा का शक और भी बढ़ने लगा। दोनों अकेले हैं पता नहीं क्या कर रहे होंगे।
कुछ दिन बाद वह घर आ गई और उसकी नजर हमेशा उन दोनों पर ही रहती।
एक दिन नीरा आकर खाना बनाने जैसे ही रसोई में गई वैसे ही नीरजा ने कठोर शब्दों में कहा, मैं अब अपना काम स्वयं कर सकतीं हूं तुम अब जाकर अपना घर संभालो। उसकी मुख मुद्रा देखकर नीरा स्तब्ध रह गई। वह चुपचाप उठ कर चली गई ।
अब नीरा तो घर नहीं आती थी पर जब भी मौका मिलता धीरज वहां चला जाता और खा पीकर समय बिता कर वापस अपने घर आ जाता।
एक दिन नीरजा के सब्र का बांध टूट गया और वो धीरज पर चिल्ला पड़ी। नीरा और धीरज पर उसने लांछन लगा कर दोनों को खूब अपमानित किया। वह गुस्से में पागल हो गई थी। नीरजा ने नीरा को फोन करके फौरन आने के लिए कहा और उसे भी जलील करते हुए चिल्ला कर बोली,
मेरे पति पर सिर्फ मेरा अधिकार है,समझी तुम। और पति की तरफ मुखातिब होते हुए गरजी,
” तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है”
मैं हरगिज सहन नहीं करूंगी कि तुम्हें कोई मेरे साथ बांटे।
अब तक नीरा खामोश हो कर सब कुछ सुन रही थी। वह अपने ऊपर लगाए गए दोषारोपण से बहुत दुखी हुई। उसने रोते हुए नीरजा से कहा, दीदी,आप ग़लत सोच रहीं हैं। मैं पहले ही आपकी रुखाई और व्यवहार से कुछ कुछ समझने लगी थी,पर मैंने सोचा कि यह मेरा भ्रम है। दीदी, आप नाहक परेशान हो रहीं हैं।
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आप और जीजा जी मेरे लिए हमेशा से ही पूज्यनीय रहें हैं। हां,हम मानते हैं कि एक ही गांव के रहने के कारण हम सब ज्यादा ही पारिवारिक हो गए थे। पर हमारा यकीन मानिए,हम दोनों में ऐसा कोई ग़लत रिश्ता नहीं है।
दीदी, आप जीजा जी की राधा हैं।
“आपके पति पर मीरा का नहीं केवल राधा का अधिकार है।”
मैं आज से अभी से आप सबसे अपना संबंध तोड़तीं हूं,यह कहकर रोते हुए नीरा अपने घर चली गई। नीरजा को यह सुनकर बहुत पछतावा हुआ।पर धीरज ने कुछ दिनों बाद उस जगह से दूर दूसरी कालोनी में मकान ले लिया।वह नीरजा को दुखी नहीं देख सकता था। उसके बाद नीरा कभी उनके घर नहीं आई और ना ही नीरजा धीरज से दुबारा मुलाकात ही हुई। फ़ालतू के शक से नीरजा ने एक प्यारे परिवार को खो दिया।
सुषमा यादव पेरिस से
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित