मायका – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in hindi

नई नवेली दुल्हन मानसी शादी के दो हफ्ते बाद अपने मायके रहने आई , वो मायका जहाँ उसने जिंदगी के पच्चीस साल बिताये , वो मायका जहाँ उसका बचपन बसता है । मानसी कुछ पल को रुक कर भरी आँखों से पूरा घर देखने लगी । सच मे बेटी के लिए कितना मुश्किल होता है अपना मायका छोड़ना क्योकि कितनी ही खूबसूरत यादे जुड़ी होती है उस घर से पर संसार की रीत उसे वहाँ से ससुराल जाने को और वही का हो जाने को मजबूर करती है । जैसे एक पौधे को उखाड़ कर दूसरी जगह लगा दिया जाता है ठीक वैसे।

” क्या देख रही है बेटा ये तेरा ही घर है चल अंदर !” पिता संजय जी ने उसे यूँ खड़ा देख कहा। 

” पापा अपना घर है फिर भी पंद्रह दिन बाद देख रही हूँ इसे ।” नम आँखों से मानसी बोली। 

” चल पगली अंदर , तेरी माँ ने तेरे लिए जाने क्या क्या तैयारी की है !” उसके चेहरे पर प्यार भरी चपत लगाते संजय जी बोले हालाँकि उनकी आँखे भी भीग गई थी बेटी की बात सुन ।

मानसी भाग कर माँ रीता जी के पास आई और ऐसे गले लग गई मानो बरसो की बिछड़ी है । इतने मे भाई तुषार डिग्गी से सामान ले अंदर आया । 

” अब भरत मिलाप खत्म हुआ हो तो ये अपना सूट केस पकड़ दी पता नही क्या भर कर लाई है इसमे !” तुषार उसे छेड़ते हुए बोला जवाब मे मानसी ने उसे जीभ दिखा दी। 

हंसी खुशी और बातो के बीच रीता जी ने बेटी के पसंद के नाश्ते से मेज भर दी मानो पंद्रह दिन की कसर पूरी करना चाह रही हो । तभी तुषार और मानसी की बुआ सीमा ने घर मे प्रवेश किया जिसे देख रीता जी के माथे पर त्यौरिया पड़ गई जिसे देख संजय जी ने भी बहन का ठंडा स्वागत किया और बहन को भी नाश्ते के लिए बुला लिया। रीता जी ने उन्हे नाश्ता परोसा और बेटी को खिलाने लगी।

” खा ले खा ले मोटी दो दिन की चांदनी है फिर तो पराई ही हो जाएगी तू । तब तो घर पर बस मेरा राज होगा !” तुषार बुआ की तरफ देखते हुए कुछ सोच बहन से बोला। 

” मम्मा देखो ना इसे कैसे छेड़े जा रहा है मैं जबसे आई हूँ तबसे !” मानसी रुआंसी हो बोली।

” क्यो पराई होगी ये घर इसका भी उतना ही रहेगा जितना तेरा समझा तू । वैसे भी बेटियां तो माँ बाप के जिगर का टुकड़ा होती है और भाई की जान !” रीता जी बेटी को दुलारते हुए बेटे को मीठी झिड़क देने लगी। 

सीमा जी बड़ी हसरत से ये सब देख रही थी क्योकि ऐसा ही जीवन कभी उन्होंने भी जिया है । ऐसे ही माँ बाप का लाड उसे भी मिला था बड़ा भाई संजय भी जान छिड़कता था पर माता पिता के जाने के बाद बहुत कुछ बदल गया। अमीर घर से ताल्लुक रखने वाली रीता को मध्यम वर्गीय परिवार मे ब्याही ननद पहले ही पसंद नही थी पर सास ससुर के ना रहने पर वो उन्हे नज़रअंदाज़ करने लगी सीमा जी सब समझती थी पर फिर भी भाई और बच्चों के मोह मे खिंची आती थी मायके क्योकि बच्चे भी बुआ को पसंद करते थे बस माँ को समझा नही पा रहे थे। 

” मम्मा शादी के बाद बेटियों का घर बस ससुराल होता है ना !” तुषार अभी भी बुआ को देखते हुए बोला।

” क्यो हो जाता है मायका तो उसका अपना रहता ही है बस ससुराल भी उसका हो जाता है । और तू ये क्या अपना पराया लेकर बैठा है तेरी तो जान है मानसी । जबसे वो गई है कितना उदास हो गया था तू भी फिर अब ऐसी बाते क्यो ?” रीता जी हैरानी से बोली।

” मम्मा अगर आप चाहती है दी मेरी जान हमेशा रहे और ये घर इसका भी रहे तो आप कभी मेरी शादी मत करना वरना बुआ की तरह इसे भी कभी कोई नही कहेगा ये घर तेरा भी है !” अचानक तुषार बोला ये बोलते हुए उसका गला भर्रा गया था। तुषार की बात सुनते ही रीता जी , संजय जी और सीमा जी तीनो हैरानी से तुषार को देखने लगे । कितनी बड़ी बात बोल गया वो यूँही बात बात मे जिसे आज तक कोई नही समझा था। 

” ये क्या कह रहा है बेटा तू , मैं तो कबसे अपने भतीजे के सिर पर सेहरा देखने की आस लगाए बैठी हूँ । और ये कहना जरूरी थोड़ी की ये घर मेरा भी है । मुझे तुम सबसे प्यार मिलता है , ये घर अपना लगता है तभी तो मैं यहाँ खिंची आती हूँ !” सीमा जी भी नम आँखों से भतीजे के सिर पर हाथ फेरती बोली। 

” देखा है बुआ हमने जबसे होश संभाला तबसे आपको इस घर मे नज़रअंदाज़ होते हुए । पापा भी कुछ नही बोल पाते कल को मैं भी नही बोल पाया तो ? मैं नही चाहता मेरी दी कभी यहां नज़रअंदाज़ की जाये ।” तुषार बुआ के गले लगते हुए बोला। 

” नही बेटा ये घर जितना मानसी का है उतना ही सीमा का भी है । ये बात आज तूने मुझे बहुत अच्छे से समझा दी । सीमा मैं तुमसे माफ़ी मांगती हूँ अब तक के व्यवहार के लिए आज बेटी पर बात आई तब मुझे समझ आया मैं कितनी गलत थी !” रीता जी अचानक अपनी जगह से उठकर सीमा के पास आ बोली। सब हैरान थे रीता जी के इस व्यवहार से पर साथ ही खुश भी।

” नही नही भाभी आप माफ़ी मत मांगिये आप तो मुझसे बड़ी है मेरी माँ की जगह है !” सीमा भाभी का हाथ पकड़ते हुए बोली। तो रीता जी ने उन्हे गले लगा लिया । सीमा जी की आँखों से आँसुओ की धार निकल पड़ी क्योकि माँ के बाद आज पहली बार उन्हे मायके का एहसास मिला था। संजय जी भी अपना चश्मा उतार आँखे पोंछने लगे। फिर खड़े होकर उन्होंने बहन और बेटे को गले लगा लिया। 

” अरे दी की विदाई आज नही दो दिन बाद है !” अचानक तुषार चिल्ला पड़ा । उसका मतलब समझते ही सभी हंस पड़े । फिर से नाश्ते की मेज पर हंसी खुशी का मोहोल था । इस बार रीता जी बेटी के साथ साथ ननद को भी बड़े प्यार से नाश्ता खिला रही थी और सीमा जी भी भाई के ठीक बराबर मे बैठी खुद को पुरानी वाली सीमा समझ रही थी । संजय जी बार बार बहन के सिर पर हाथ फेर रहे थे । तभी तुषार अपने फोन से सबकी फोटो खींचने उठ गया क्योकि ऐसे खूबसूरत पल को सहेजना तो बनता था । 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

4 thoughts on “मायका – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in hindi”

  1. New generation सच में सब की भावना समझते उन की अच्छी बात यह है कि वो सच कहने से झिझकते नही है।

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