मर्मान्तक चोट – बालेश्वर गुप्ता  : Moral stories in hindi

अबे लड्डन इधर आ,हरामखोर अपने शर्मा जी का लौटा चुराते तुझे शर्म नही आयी।तूने हमे कही मुँह दिखाने लायक नही छोड़ा।

     गलती हो गयी बापू माफ कर दे।

    माफी मांगनी है तो शर्मा जी से मांग।उन्होंने माफ कर दिया तो ठीक,नही तो तेरा खाना पीना बंद।

      शर्मा जी बोले अरे छोड़ो गिरधारी,बच्चा है।माफी मांग रहा है तो माफ कर देते हैं।

      शर्माजी वापस आते आते सोच रहे थे,बच्चा है,माफ कर दिया, पर अपना इतना पुराना महंगा लौटा तो वापस मिला नही।अनमने से शर्मा जी करे तो क्या करे,गिरधारी ने स्थिति ही ऐसी बना दी थी कि लौटा तो मांग ही नही पाये।

    उधर गिरधारी लड्डन पर भड़क रहा था,अबे आज तो मुहल्ले में नाक कटवा दी थी।अरे कर्मजात तुझे अपना ही मुहल्ला मिला था।कितनी बार समझाया है, बेटा अपने आस पास इज्जत बना कर रखो।पर समझ आवे तब ना।

       बापू लौटा महंगा था,और बिल्कुल बाहर चबूतरे पर रखा था,जी ललचा गया, इसलिये उठा लिया था।अब मुझे क्या पता था,उनका वो छोटा सा पिल्ला जैसा मोनू देख रहा है।

     बेटे चारो ओर देख कर तब उठाना था ना,मुहल्ले में साख बनी रहनी चाहिये,आगे ध्यान रखना।लौटे की तारीफ कर रहा है, बता कितने में बिका।

    लड्डन ने जेब से 500 रुपये निकाल कर दे दिये।दुकानदार कह रहा था एंटीक है,ऐसे ही आइटम लाया कर।

      गिरधारी अपने पिता के भरसक प्रयासो के बाद भी आठवी कक्षा से आगे बढ़ नही सके।संगत अलग से बिगड़ गयी।बचपन से ही बीड़ी पीना शुरू किया जो बाद में शुल्फे तक शौक में पहुंच गया।घर मे ही चोरी होने लगी तो गिरधारी के पिता ने मार पिटाई भी की,कई कई दिनों तक खाना भी नही दिया गया,पर गिरधारी पर कोई असर नही पड़ा।

शायद शादी करने पर जिम्मेदारी समझ सुधर जाये उन्होंने गिरधारी की शादी भी 21 वर्ष की उम्र में ही कर दी।गिरधारी के पिता रईस तो नही थे,पर समाज मे इज्जत करवाना और करना वे जानते थे।पर गिरधारी ने उन्हें कही का नही छोड़ा।इसी गम में गिरधारी के पिता दुनिया से कूच कर गये।शादी हो चुकी थी सो पत्नी सुधा का भरण तो करना था,सो जुए की लत भी पाल ली।

चोरी चकारी, उठाईगिरी चल ही रही थी।इधर सुधा ने गिरधारी को बाप बना दिया और एक बेटा उसकी गोद मे डाल दिया।गिरधारी की शक्ल पायी थी।प्यार में गिरधारी ने अपने नवजात बेटे को लड्डन पुकारना प्रारम्भ कर दिया। ज्यो ज्यो लड्डन बड़ा होता जा रहा था,गिरधारी के ही गुण अपनाता जा रहा था।

     अब तो बाप बेटा मिलकर योजना बना कर चोरी करते।मुहल्ले में सब गिरधारी और लड्डन के बारे में जान चुके थे।कोई उनके सामने तो कुछ नही कह पाता, पर पीछे खूब चर्चा करते।उनकी वजह से मुहल्ले की बदनामी भी हो रही थी।अब तो कभी भी पुलिस भी आ जाती।

      मुहल्ले वालो के लिये शर्म से मरने की बात तो तब होती जब उनके मुहल्ले की पहचान लड्डन चोर वाली गली के रूप में होने लगी।लड्डन के कृत्यो की लिस्ट बढ़ती जा रही थी,मुहल्ले में दबदबा कायम हो गया था,कोई चूँ  तक नही कर सकता था,हौसले बढ़ते जा रहे थे,पुलिस से भी सेटिंग हो गयी थी,इसलिये वहां से भी अब कोई खतरा नही रह गया था।इस बीच गिरधारी के लकवा मार गया,और उसने बिस्तर पकड़ लिया।अब सब चोरी चकारी अकेले लड्डन ही करने लगा।

     एक दिन पड़ौस से मास्टर रजनीश अपनी बिटिया सुहासिनी के साथ गिरधारी के घर आये,लड्डन भी घर मे ही मौजूद था,उन्हें आश्चर्य था कि मास्टर जी उनके यहाँ?अपने होशोहवास में लड्डन ने मुहल्ले से किसी को भी अपने यहां आते नही देखा था।उसने तो मुहल्ले वालो की निगाहों में हिकारत ही देखी थी।उसे अच्छा लगा।

दौड़ कर कुर्सी लाकर उसने गिरधारी की चारपाई के पास डाल दी,जिस पर मास्टर जी बैठ गये, गिरधारी की चारपाई पर उनकी बेटी बैठ गयी।गिरधारी भी मास्टरजी को देख आश्चर्यचकित था,उसने हाथ जोड़ मास्टरजी का अभिवादन किया।मास्टरजी ने उसके ठीक होने की कामना प्रकट की।फिर हाथ जोड़ कर बोले गिरधारी जीवन भर तुमने पाप ही पाप किये है,अपने बेटे को भी अपने पापकर्म में शामिल कर लिया।शायद भगवान तुम्हे सजा दे रहा है,पर हमारा क्या कसूर?गिरधारी प्रश्नवाचक दृष्टि दे मास्टरजी को देख रहा था।

सुहासिनी के रिश्ते की बात चल रही थी,लड़का सुहासिनी को पहले से जानता था,पर आज उनके यहां से मना हो गयी,जानते हो मना का कारण क्या बताया,उन्होंने कहला भेजा कि आप लोग घर बदल लो हम लड्डन चोर वाली गली के पते पर अपने बेटे का विवाह नही करेंगे।मैं गरीब मास्टर,जैसे तैसे ये छोटा सा घर जिंदगी में बना पाया,कहाँ दूसरी जगह जा सकता हूँ।

गिरधारी क्या कभी तुम्हे अपने कृत्यों पर शर्म नही आयी, भला मुहल्ले वालो को भी शर्मशार करने का हक तुम्हे किसने दिया था।भगवान के लिये अब ये बंद कर दो।मेरी बेटी तो अन्य से शादी करेगी नही,वह तो बर्बाद हो ही गयी,अन्यो को तो बक्श दो भाई।कहते कहते मास्टरजी की घिघ्घी बंध गयी,गिरधारी की आंखों से भी पानी बह रहा था,उसने पास बैठी सुहासिनी के सिर पर हाथ रख दिया।लड्डन भी यह दृश्य देख रहा था,उसे भी अपने पर ग्लानि हुई।

      उसी दिन लड्डन सुहासिनी की होने वाली ससुराल गया,और अपना परिचय देते हुए उनसे प्रार्थना की कि वे रिश्ता न तोड़े,अब कभी आपको शर्मिंदा नही होना पड़ेगा।लड्डन ने सब दुष्कृत्य बंद कर दिये, सामाजिक संस्था से जुड़कर समाज सेवा में लग गया।अब उसे लोग लड्डन न कह कर लाडली मोहन जी कहने लगे थे।मुहल्ले वाले पुराने लड्डन को भूल चुके थे,क्योकि अब उनका पता हो गया था लाडली मोहन जी वाली गली।

  बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित

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