मानवीयता –   बालेश्वर गुप्ता

पापा, प्लीज जरा दो किलो आलू और एक किलो प्याज सब्जी मंडी से ला दीजिये।ये बैग और पैसे मैं रखे जा रही हूँ और हाँ पापा 4 पैकेट दूध भी ले आना।हो सके तो मुन्ना के लिये बिस्किट भी डाल लेना।

    ठीक है बहु, सुबह मैं घूमने जाता ही हूँ, तभी बता देती तो उधर से ले आता,अब दुबारा जाना पड़ेगा।

    पापा, खाली ही तो बैठे रहते हो, अगर कुछ घर का काम कर दिया तो क्या हो गया?

    अरे बेटा, मैंने मना थोड़े किया है, जा रहा हूं।वो बेटा उम्र हो जाने के कारण थक जाता हूँ ना,इसलिये कहा था,कि सुबह बता दिया करो तो ठीक रहता है।कोई नही, मैं जा रहा हूँ।

     घर के काम में भी कोई थकता है क्या,बस आपको काम करने में जोर पड़ता है।

     नही-नही, मैं जा रहा हूँ।

     ऐसा सप्ताह में एक दो बार रमेश के साथ होता ही है।75 वर्ष का रमेश नौकरी से रिटायर्ड होकर बेटे के साथ ही रह रहा है।बेटा रमेश का पूरा ध्यान रखता है।बहू बेटे के सामने तो बिल्कुल चासनी में घुली जबान में बात करती, पर बेटे की अनुपस्थिति में अपने व्यंग्य भरे बाणों से रमेश को घायल करती रहती।रमेश बेटे से भी कुछ कह नही पाता, वो उनमे कलह का कारण बनना नही चाहता था, इसलिये चुप रहता।

    रमेश ऑफिसर रैंक से निवृत हुआ था,अच्छी खासी पेन्शन भी मिलती थी।अपने नौकरी कॉल में नौकर चाकर रहते सब काम करते।खुद कोई काम किया हो, उसे याद नही पड़ता।रिटायर्ड होने पर रमेश ने अपनी पत्नि के साथ अपने कस्बे में बने अपने बंगले में रहने का निर्णय लिया।सब कुछ ठीक चल रहा था।अचानक एक दिन हार्ट अटैक में पत्नी ने साथ छोड़ दिया।अकेला रह गया रमेश।



  एक दिन बेटा आया बोला अब मै आपको यहाँ अकेले नहीं रहने दूंगा।आप मेरे साथ रहेंगे और रमेश को बेटा साथ ले गया।

     रमेश को गर्व हुआ कि उसका बेटा उसे साथ ले जा रहा है, उपेक्षित नही छोड़ रहा। बेटा था  तो उसने रमेश की पीड़ा समझी, अकेलापन समझा और उसे साथ ले गया,पर बहू नही समझ सकी और अपने मन की बात अपने पति से कह भी ना सकी।यही कारण था बेटे के जाने के बाद कुछ ना कुछ व्यंग्य बाण रमेश को घायल करते।

     रमेश समझ ही नही पा रहा था कि वो करे तो क्या करे?जो काम उसने अपने जीवन मे किये नही वो भी बहू मिठा बोलकर या ताना देकर कराने लगी थी।एक दिन तो अपमान की हद ही हो गयी, बहू ने कहा,बाबूजी आज मेड नही आयेगी, अपने बरतन साफ करके रखना।रमेश धक से रह गया,पूरे जीवन पहले माँ ने तो बाद में पत्नी ने कभी बर्तन तो नहीं माझने दिये थे और अब बुढ़ापे में ये भी सही।

      रमेश घूमने गया था, चक्कर आने के कारण बीच रास्ते से वापस आ अपने बिस्तर पर लेट गया।तभी बहु ने सब्जी लाने का फरमान सुना दिया।रमेश ने अपनी तबियत खराब होने की बात बताई तो बहू बोली अरे पापा सब्जी नही लानी तो बीमारी का बहाना बना दिया।घर में कुछ तो करना पड़ता है।

      ठीक है, कह रमेश थैला उठा उसी हालत में चल दिया।किसी प्रकार सब्जी लाकर दी और पस्त हो अपने बिस्तर पर पसर गया।अपमान की टीस ने 75 वर्षीय रमेश को फफकने को मजबूर कर दिया।पत्नी के फ़ोटो को सीने से लगा वो चिल्ला उठा क्यों अकेला छोड़ गयी?

     अपमान का दंश ना सह पाने के कारण आखिर रमेश ने चुपचाप बेटे का घर छोड़ अपने कस्बे के बंगले में वापस आ गया।जहाँ उसके असंख्य हित चिन्तक थे।उनसे रिश्तेदारी नहीं थी, पर एक मानवीय नाता तो था।

            बालेश्वर गुप्ता

                        पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक और अप्रकाशित

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