खंडहर  रेड लाइट एरिया – रीमा महेंद्र ठाकुर

आकाशी निस्तेज आंखों से बस दीवार को घूरे जा रही थी, दीवार पर चिपकी छिपकली कब से शिकार पर नजर रखे हुए थी! आकाशी उठना चाहती थी, पर जिस्म टूट रहा था’अचानक से छिपकली ने झपट कर शिकार को अपने मुंह मे डाल लिया, वो एक छोटा सा कीट था जो खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रहा था,! 

आकाशी का मन विचलित हो गया, उसे छिपकली से घिन थी, और धीरे धीरे उसे खुद से घिनआने लगी, उसे भी तो दबोचा गया था, जब वो पांच साल की थी, कुछ धुधंला सा याद है, कोई महिला थी जिसने उसे शहर की बस मे बैठा दिया था, एक बिस्किट का पैकेट देकर, उसे याद है उसके माँ बाप रईस थे गाडी बडा घर कुछ चेहरे पर आज तक उसे वो चेहरे कही नजर न आये, जो उसके अपने थे! 

वो बच्ची भटक रही थी सडक पर भूखी प्यासी, एक अधेड़ अपने साथ ले गया, झोपड़ी थी, उसने रोटी दी फिर वो सो गयी, रात मे दर्द से तडप गयी, उसके साथ क्या हुआ कुछ न समझ पायी, अगले दिन सरकारी हास्पिटल मे थी, सब उसकी बाते कर रहे थे! 

बस इतना ही समझ आया, कुछ दिनों बाद उसे एक घर मिल गया, वहाँ बहुत सारे बच्चे थे उस जैसे, वहाँ सभी की एक माँ थी! पूरा समय उन्ही के साथ निकल जाता, बारह बरस निकल गये थे उसी घर मे, फिर एक दिन, कुछ समाज सेवक आये और पांच लडकियों को उनके साथ भेजा गया उसमे एक आकाशी भी थी, माँ का स्नेह आकाशी पर था, वो नही चाहती थी कि आकाशी जाये, अगले दिन जाना था, माँ रात में आयी और आकाशी को गले लगा लिया, उनके चेहरे पर चोट के निशान थे, माँ क्या हुआ आपको, कुछ नही बेटा, और वो रोती हुई अपने कमरे की ओर भाग गयी, आकाशी सुबह तक इंतजार करती रही पर माँ ने किवाड़ न खोला, 

जाने का समय हो गया पर माँ न आयी’  वो बडी गाडी मे बैठ गयी, उसने एक नजर उस घर की ओर देखा, माँ नजर न आयी, उसकी आँखों से आंसू बहने लगे, लगा जैसे कुछ टूट रहा है, इस घर ने उसे ग्यारह साल शरण दी, जो अब उसके लिए मात्र अनाथालय नजर आ रहा था, गाडी जब मुडी तो खिडकी पर नजर पडी दो आंखे जो उसे बेबसी से देख रही थी! वो माँ की थी! वो माँ जो सबको स्नेह ममता देती हैं, पर कुछ दिनों मे उससे उसका कोई न कोई बच्चा छिन जाता है! 



आकाशी ने गरदन झटकी, वापस वर्तमान मे आ गयी, आकाशी उठ कब तक गम मनाऐगी, इतने बरस हो गये, हमे यही इसी एरिया मे रहना है, और अपने जिस्म की कमाई ही खानी है, कुसुम बोली, कोई हिरो नही आऐगा, 

ये सच बता वो राज तुझे पंसद करता है न, कुसुम ने चुटकी ली, उसके पंसद से क्या होता है हम तो समाज के लिए गंदगी है, आकाशी बोली, उसके साथ घर बसा ले,,,, नही मै उसे समाज परिवार से दूर नही करना चाहती, आकाशी बोली, ले वो आ गया तेरा चाहने वाला, कुसुम हंस पडी, आकाशी की आंखों मे चमक आ गयी, कुछ देर, वो नवयुवक वही बैठा आकाशी को देखता रहा, फिर उठा  कुछ रूपये आकाशी की हथेली पर रख दिये, और दरवाजे की ओर बढ गया, आकाशी ने उसकी कलाई पकड ली, सुनो,,, वो पलटा आकाशी की धडकने बढ गयी, उसके अंदर कुछ नया अहसास था! अब तुम यहा मत आया करो, क्यू पैसे कम है, मेरे पास इतने ही थे! अरे नही वो बात नही है, ये बदनाम गली है, वो बात पूरी न कर पायी, ये आकाशी तेरा ग्राहक आया है, 

कुछ देर आप रूकिए, बस इस ग्राहक को निपटा कर आती हूँ, नही तो धंधा खोटा होगा, आने वाला अधेड़ था उस नवयुवक की गर्दन झुक गयी, वो भाग जाना चाहता था, की आकाशी ने रूकने की विनती, आप रूकना, वो पैसे वाला है उसे कुछ चहिये नही बस टाइम पास के लिए आया है! बस कुछ मिनट चहिये, नवयुवक कुछ न बोला, 

आकाशी उसे लेकर एक छोटे से कमरे में चली गयी, जो उसी कमरे से अटैच था! कुछ देर मे उसकी चीखे सुनाई देने लगी, फिर कुछ अजीब आवाजें, नवयुवक को सहन न हुआ वो आकाशी के कमरे की ओर बढ गया! 

पंलग पर आकाशी निवस्त्र पडी थी, उसके जिस्म पर खून रिस रहा था, उस प्रोढ के हाथ मे छोटा चाबुक था वो उसी से आकाशी पर वार कर रहा था! 

बस अब नही , उसने उस प्रोढ ग्राहक का हाथ पकड़ लिया, उसका मूड खराब हो चुका था! कौन है तू वो गुस्से से बोला, और कुछ नोट उसपर फेककर बाहर चला गया! 

आकाशी उठी पर दर्द से कराह उठी, नवयुवक ने उसे थाम लिया, करवा दिया न नुकसान, तुम पागल हो वो तुम्हें मार रहा था! एक वार के दो हजार दे रहा था, बाबू, तुम्है पैसे की इतनी भूख है, तो आज के बाद मै कभी नहीं आऊंगा, मै तुम्है ऐसे नही देख सकता, और वो नवयुवक उठकर आंसू पोछते हुए बाहर चला गया, कभी न आने के लिए, आकाशी फिर से निढाल हो बिस्तर पर गिर गयी, उसका सच्चा प्यार जा चुका था! 

वो खडहर बन चुकी उसके पास बोलने के लिए कुछ न था! उसकी सुदंरता उसके लिए अभिशाप थी!!! 

श्रीमती रीमा महेंद्र ठाकुर लेखिका

रानापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत

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