मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती…. रश्मि प्रकाश

गरिमा की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह रही थी…. उसका इस तरह अपमान होगा वो सोच ही नहीं पा रही थी…. बड़ी भाभी ने जो अपमान किया वो तो वो बर्दाश्त भी कर लेती पर क्या माँ को भी मुझ पर भरोसा नहीं रहा….सालों से इस घर में अपनी सेवा के परिणामस्वरूप ऐसा इनाम मिलेगा वो सोच भी नहीं सकती थी।आज वो भी उसको कटघरे में खड़ा कर सवाल करने लगे थे जो कल तक उसपर जान छिड़कते थें।

गरिमा भाग कर बूढ़ी दादी के कमरे में गई और उनके पैरों पर अपना सिर रखकर रोती जा रही थी और कह रही थी,‘‘ दादी आप तो सब जानती है ना, मैं कभी भूलकर भी ऐसा नहीं सोच सकती जो इल्जाम बड़ी भाभी ने मुझ पर लगाया है …माँ बाबूजी भी बड़ी भाभी की बात पर भरोसा कर रहे मैं किसके पास जाकर अपना दुखड़ा सुनाऊं आप सुन तो लेंगी पर मुझे समझाएगी कैसे,आप भी बस बिस्तर पर पड़ी हो दादी कुछ तो बोलो?’’एक उम्मीद की नजर से वो दादी की ओर देख रही थी।

दादी जो छःमहीने से बिस्तर पर पड़ी है, ना कुछ बोलती ना कुछ कर सकती ।

गरिमा रोती जा रही थी और इस घर में अपनी जगह के बारे में सोच रही थी।

वो इस घर में बचपन से आती जाती रहती थी। उसकी माँ घर की रसोई संभालती और पिता बाग बगीचे की सफाई का काम करते।गरिमा इस घर के मालिक विमल जी को बाबूजी और मालकिन अचला जी को माँ ही कहती आई। उनके तीन बच्चों में दो बेटे एक बेटी। अभी दो साल पहले एक एक कर के बड़े बेटे महेश और बेटी माही की शादी किए थे।छोटे मानव की शादी बाकी थी।जो गरिमा के हमउम्र ही था।

बचपन से ही अचला जी गरिमा को बहुत लाड करती और अपनी बेटी मान कर उसको भी अपनी बेटी के जैसी ही शिक्षा दीक्षा दिलवाई।

गरिमा के माता पिता वर्षों तक उस घर में अपनी सेवा देते रहे।पर ज्यादा दिन गरिमा का साथ ना दे सके। उनके जाने के बाद विमल जी और अचला जी ने ही गरिमा की पूरी जिम्मेदारी उठा ली। अब तो वो एक कम्पनी में नौकरी करने लगी थी।

विमल जी के बड़े बेटे बहू दूसरे शहर में रहते थे। वो बस यहाँ कभी कभी ही आते थे…..पता नही क्यों बड़ी बहू तनु को गरिमा एक आँख ना सुहाती थी। उसको हमेशा लगा रहता कि घर में तीन नहीं चार बच्चे हैं और जो भी जमीन जायदाद का हिस्सा तीनों में बँटना चाहिए वो चार हिस्सों में ना बँट जाए क्योंकि विमल और अचला जी का स्नेह ही उसके साथ इतना था।

दूसरा बेटा भी दूसरे शहर में ही नौकरी करता था, घर में एक बड़ी पूजा का आयोजन था इसलिए सब आए हुए थे।



पूजा वाले दिन सब कामों में व्यस्त थे।

गरिमा अचला जी के आगे पीछे घूम रही थी। तभी बड़ी बहू के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। सब भाग कर उधर इकट्ठे हुए पता चला उसके हीरे की अंगूठी नहीं मिल रही। पूरे घर में खोजबीन शुरू हो गई पर अँगूठी ना मिली।

‘‘गरिमा तुने तो नही लिया है ना…..कल तू बोल रही थी ना बहुत खुबसूरत अँगूठी है भाभी …बहुत जँच रही आप पर…..पक्का तुने ही लिया है तुझे लालच आ गया होगा…..नहीं तो आजतक कोई चीज गायब ना हुई फिर आज गायब हुई मतलब तुम्हें अच्छी लगी तो ले लिया।’’बडी़ भाभी ने खड़े खड़े सीधे उसपे निशाना साध दिया

विमल जी और अचला जी ने बहुत कहा ,‘‘ बड़ी बहू तुमने ही कही रख दिया होगा एक बार देख तो लो …..बेकार इस पर इल्ज़ाम लगा रही हो, इतने सालों से ये हमारे साथ है मजाल है जो कुछ बिना पूछे हाथ लगा दें।’’

पर बड़ी भाभी अपनी बात पर ऐसे अड़ गई कि सच में गरिमा ने ही अँगूठी लिया होगा….,“पता नहीं क्या क्या लेकर जाएगी यहां से.. ऐसा लगता है घर की सगी हो, जमीन जायदाद पर भी अपना हिस्सा मांगने लगेगी….आप दोनों इसको कुछ ज़्यादा ही सिर पर चढ़ा कर रखे हुए है ….मुझे तो लगता ये इस घर की बहू बनने के सपने देख रही है….. और भी ना जाने क्या क्या.. ।”

‘‘ देख बेटा अगर तुम्हें पसंद आ गई और तुने ले लिया तो बता हम तुम्हें दूसरी बनवा देंगे पर चोरी करना सही नहीं।’’अचला जी प्यार से बोली

अचला जी की बात सुनकर गरिमा का दर्द आँखो में अब और ना सिमट सका और आँसू बन कर बाहर बह निकला। बड़ी भाभी तो अभी की आई है वो बोल भी रही तो वो मन में कुछ ना रख रही थी ये अपमान वो बर्दाश्त कर लेगी पर जैसे ही माँ स्वरूपा अचला जी ने कहा वो खुद को रोक ना पाई….ये अपमान बड़ी भाभी के इलज़ाम से कहीं ज़्यादा तकलीफ़ देने लगा और भाग कर दादी के पास आ गई थी।

अपने आपको समझाते हुए गरिमा कुछ सोच कर उठी और अपने कमरे में जाकर सामान बाँधने लगी।

घर से निकलने से पहले वो माँ बाबूजी को मिलने गई , वो भी पनीली आँखो से बस उसे जाते देख रहे थे….क्योंकि बड़ी बहू ने लांछन ही ऐसे लगा दिए थे जो कोई स्वाभिमानी व्यक्ति बर्दाश्त नहीं कर सकता था फिर दोनों बहू के आगे उसको तरजीह दे कर घर का माहौल बिगाड़ना नहीं चाहते थे… गरिमा को इस क़ाबिल बना चुके थे कि वो जो फ़ैसला करेगी सोच समझ कर सही ही करेंगी ।

गरिमा अपना सामान ले घर से निकल गई।

कुछ देर बाद विमल जी का बड़ा बेटा घर आया तो बोला,‘‘ तनु कहाँ हो…..तुम अपनी किसी चीज को संभाल के नहीं रख सकती हो क्या…..वो तो भला हो उस धोबी का जिसने तुम्हारे कपड़ों में लिपटी ये अँगूठी मुझे दे दी।’’

‘‘ मैं कह रही थी तुम एक बार देख लो, पर तुमने तो कसम खा रखी थी ना गरिमा को जलील करने की। अब खुश रहो चली गईं वो अब यहां से, जाने अब आएगी भी और नहीं।’’दुखी स्वर में अचला जी बोली

तनु अपने किए पर शर्मिंदा हो कर बोली,‘‘मुझे माफ कर दीजिए माँ, मैं शायद गरिमा को समझ नहीं पाई।’’



‘‘माफी माँगने की कोई जरूरत नहीं है भाभी, देखो ले आया गरिमा को।‘‘ सामने अपने देवर की आवाज सुन कर चौंक गई।

गरिमा के आँसूओ से भरे चेहरे को देख तनु उससे भी माफी माँग ली।

‘‘ माँ तुम बिन मेरा कोई ना दूजा फिर ये सालों का भरोसा क्यों टूटा….. क्या अपनी बेटी पर जरा भी भरोसा नहीं था …।”कहकर गरिमा अचला जी को पकड़ कर रोने लगी।

‘‘ मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची, आज मैंने अपनी बच्ची का अपमान किया है पता नहीं मेरा भगवान मुझे माफ करेंगा और नहीं पर तू कर देना मेरी बच्ची…. कई बार इंसान विवश हो जाता….अब ऐसा कभी ना होगा।‘‘ कहकर अचला जी गरिमा को गले से लगा ली।

गरिमा का इस घर के अलावा कोई और आसरा ना था।

अचला जी का छोटा बेटा पहले से ही गरिमा को पसंद करता था पर कभी इज़हार नहीं कर पाया था… आज उसका जो अपमान हुआ उससे बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था वो जाकर अचला जी से अपने मन की बात कह बैठा…. अचला जी जो एक साल से अपने छोटे बेटे के लिए लड़की तलाश रही थी वो ये सुन कर पहले तो आश्चर्य की और ज़ोर देते हुए पूछी,“ तू सोच समझ कर ये कह रहा है ना …. उसपर दया कर के तो नहीं….बेटा हम गरिमा का ब्याह कहीं और करवा देंगे तू चिन्ता मत कर।”

“ नहीं माँ मैं सच कह रहा हूँ बस डरता था मेरी बात सुनकर तुम लोग मुझे डाँटोगे… बस एक बार गरिमा से ज़रूर पूछ लेना क्या पता मैं उसे नापसंद हूँ फिर…?” छोटे बेटे ने कहा

अचला जी गरिमा से अपनी छोटी बहू बनने के लिए जब पूछने गई तो वो पहले तो घबरा गई… ऐसे कैसे इस घर की बहूँ बन सकती हूँ….उसको असमंजस में देख कर अचला जी ने कहा,“ बेटा ये प्रस्ताव छोटे ने रखा है…. मैं तो पहले भी तेरी माँ थी बाद में भी माँ ही रहूँगी…. बस बहू बन कर तू मत बदल जाना..।” कह हँसने लगी

“ माँ आप लोग जैसा चाहे कर सकते हैं…. आप लोगों के सिवा मेरा है ही कौन जो कुछ सोच सकता है…. मैं हमेशा आपकी बेटी बन कर रहूँगी चाहे रिश्ता कोई भी हो….।” गरिमा ने कहा

दरवाज़े पर खड़े छोटे ने गरिमा की सहमति मिलते चट मँगनी पट ब्याह रचा लिया ।

गरिमा को एक प्यार भरा घर मिल गया ।

दोस्तों आप सोच रहे होंगे अपमान होने के बाद गरिमा को यहाँ नहीं आना चाहिए था पर सालों के प्यार को एक छोटे से अपमान के लिए तिरस्कृत कर चले जाना भी तो सही नहीं था….. परिवार में कई बार इस तरह की विषम परिस्थितियाँ आ जाती हैं जब बड़े भी लाचार हो जाते है पर जब कोई अपना आगे बढ़ कर हाथ थाम लें या गले लगा ले उसके आगे वो अपमान छोटा पड़ जाता है ।

 

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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