Moral stories in hindi : कालेज में सांस्कृतिक समारोह का आयोजन था। विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रहीं थीं। सभी छात्र छात्राऐं अपनी योग्यतानुसार उनमें भाग ले रहे थे। बडा ही गहमा गहमी का माहौल था। तभी अनाउंस हुआ कि कुछ ही समय में बादविवाद प्रतियोगिता शुरु होने वाली है सो सभी सम्भागी नियत स्थान पर पहुँच जाऐं। मुख्य अतिथी पहुँचने ही वाले हैं। उनके आते ही प्रतियोगिता शुरू हो जाएगी।
यह प्रतियोगिता अन्तर कालेज प्रतियोगिता थी सो दूसरे कालेज से भी प्रतिभागी आए हुए थे। स्थानीय कालेज से पक्ष में शचि बोलने वाली थी। वह एक आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थी। साथ ही उसका चेहराआत्म विश्वास से लवरेज था। वह सहज ही सबसे घुल मिल जाने वाली लड़की थी। इसीलिए वह मित्र मंडली में सबकी चहेती थी। वह एक प्रखर बुद्धि की छात्रा थी। वह बहुत ही सक्रिय थी अत: कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती।
तभी घोषणा हुई की मुख्य अतिथी पधार चुके हैं। निर्णायक गण एवं प्रतिभागी छात्र छात्राएं अपना स्थान ग्रहण कर लें । प्रतिभागियों ने पक्ष- विपक्ष में बोलना शुरू किया। विभिन्न तर्कों से वे अपने अपने विचार रख रहे थे। अब शची की बारी थी। उसने मुख्य अतिथी , प्राचार्य, निर्णायाकगण , एवं सभी उपस्थित अन्य लोगों को एवं सहपाठी छात्र छात्राओं को सम्बोधित करते हुए धारा प्रवाह बोलते हुए अपने पूर्व विपक्षी वक्ताओं के कथन को अपने अकाट्य तर्कों से काटना शुरू किया।
वह इतने आत्म विश्वास से अपने र्तकों को रख रही थी कि श्रोता सांस रोके उसे सुन रहे थे। उसके बोलना बन्द करते ही तालीयों की गडगडाहट से पूरा हाल गूँज उठा ।इस सारी प्रक्रिया के दौरान मुख्य अतिथी अपलक उसे निहारे जा रहे थे। और मन ही मन एक निश्चय कर चुके थे।
मुख्य अतिथी और कोई नहीं शहर के नामी उद्योगाली सेठ गोविन्द दास जी बिरला थे उन्होने अपने इकलौते पुत्र अनिश के लिए उसे पंसद कर लिया।
शचि प्रतियोगिता जीत चुकी थी और ट्रॉफी को अपने कालेज के लिए ही जीत लिया। कार्य क्रम खत्म होने के बाद उन्होंने शचि के बारे मे जानकारी ली। माता-पिता के बारे में पता लगाया। वो एक मध्यमगर्गीय परिवार के थे। शचि के अलावा उनके एक पुत्र रचित भी था जो स्कूल में पढ़ रहा था।
घर आकर गोविन्द जी ने पत्नी से शचि की इतनी तारीफ करी और यह भी बताया कि उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का निर्णय कर लिया है।
उनका बेटा इंजीनियर था। और एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत था।एक पुत्री मोनिशा थी जो इंजीनीयरिंग कर रही थी। वे आगे से शचि के घर उसके परिवार से मिलने गए और अपनी मंशा उन्हें बता दी।
पहले तो शचि के माता- पिता इतने बड़े व्यक्ति के आगमन से हैरान परेशान थे कारण एकदम उनके स्वागत की समुचित व्यवस्था करना उनके लिए मुश्किल था। दूसरे उनकी इच्छा जान कर वे सोच नहीं पा रहे थे कि क्या करें। इतने बड़े घर से रिश्ता जोडने में वे अपने को अक्षम मान रहे थे ।
हम आपके साथ रिश्ता कैसे जोड सकते हैं। हमारी आपकी स्थिती में जमीन आसमान का अन्तर है। हमारे पास तो आप लोगों की खातिरदारी करने के लिए भी पर्याप्त साधन नहीं है। आप लोगो के तौर तरीकों से हमारी बेटी अनभिज्ञ है,वह कैसे आप लोगों के साथ निवाह पायेगी । हमें सोचने का कुछ समय दें।
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