मैं ही क्यों * –  मधु शुक्ला

सुबह नम्रता जैसे ही बिस्तर त्यागती, उसकी पाँच महीने की बेटी रोने लगती। वह उसको गोद में लेकर घर के काम निवटाया करती थी। लेकिन फ्रेश तो उसको लेकर नहीं हो सकती थी। यह बात। कोई नहीं सोचता था। बल्कि जब वह अकेले होने पर रोती तो उसकी ननद और पति दोनों ही उसको खरी खोटी सुनाते और उसको कोसते थे। नम्रता मौन रह कर रोज सुबह यह अपमान बर्दाश्त किया करती थी। लेकिन एक दिन नम्रता तब आपे से बाहर हो गई जब उसके पति  पाँच महीने की लड़की को पीटने लगे। वह बेटी को उठाकर घर के बाहर निकल गई, और घर से कुछ ही दूरी पर स्थित रेलवे फाटक की ओर बढ़ गई। क्रोध में वह विवेक शून्य हो गई थी। इसलिए बेटी सहित आत्महत्या की डगर पर चल पड़ी थी। लेकिन वह सफल नहीं हो सकी थी अपने प्रयास में। क्यों कि रेलवे लाइन के आसपास मौजूद लोगों ने उसके इरादे को भांप लिया था। और उसके पति भी वहाँ पहुँच गए थे। अतः वह घर लौट आई थी। उसको देखते ही उसकी ननद ने तुरंत सवाल दागा भाभी आपने एक बार भी नहीं सोचा कि लोग क्या कहेंगे। आपको घर की मर्यादा के बारे में सोचना चाहिए था। हमेशा चुप रहकर सुनने वाली नम्रता ने भी ननद से पूछ लिया “मैं ही क्यों मर्यादा की पहरेदार बनूँ।” आप लोग तो हमारा अपमान करते समय अपनी मर्यादा का ख्याल नहीं रखते। और हमसे उम्मीद रखते हैं। कि हम आपकी गलतियों पर पर्दा डाल कर आपकी इज्जत में चार चाँद लगायें। घर की मर्यादा किसी एक के बल पर सुरक्षित नहीं रह सकती। उसके लिए सबको अपनी हद में रहना पड़ता है। और कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है। आप लोग अगर सुबह आधा घंटे बच्ची को कोसने और पीटने की बजाय गोद ले लें तो ऐसी नौबत ही क्यों आये। पर नहीं आप लोगों को मनमानी करना है। और बहू के कंधे पर मर्यादा लादना है। ऐसी स्थिति मुझे स्वीकार नहीं है। अगर सम्मान की चाहत है तो सम्मान देना सीखो। ” नम्रता की बातों का किसी के पास कोई जवाब नहीं था। इसलिये  सभी ने तय किया कि जब तक नम्रता व्यस्त रहती है। बच्ची को सभी लोग मिलकर संभालेंगे। अगर आप अन्याय का विरोध नहीं करते हैं तो आपकी गलती है। जहाँ धृतराष्ट्र बसते हों, वहाँ कुरुक्षेत्र में उतरना ही पड़ता है। हमारी कहानी यही कहना चाहती है।पाठक अपनी राय से हमें अवश्य अवगत करायें। 

 

स्वरचित — मधु शुक्ला . 

सतना , मध्यप्रदेश .

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