घर की मर्यादा – सविता गोयल

मिनाक्षी की शादी एक सम्पन्न परिवार में हुई थी। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी ससुराल में| शहर में बहुत इज्जत और नाम था उसके ससुर जी का| घर में एक जेठ-जेठानी और एक कुंवारा देवर था जो बाहर पढ़ता था| मिनाक्षी की जेठानी बहुत ही सीधी-साधी सी थी, बस अपने काम से मतलब रखती थी| मिनाक्षी ने कभी उसे ज्यादा बोलते या बाहर आते जाते नहीं देखा था। उसके विपरीत मिनाक्षी बहुत ही चंचल स्वभाव की थी| वो आजकल की लड़कियों की तरह हर वक्त अपडेट ही रहती थी।

सगाई के वक्त तो मिनाक्षी की सासु माँ ने कहा था कि हमारे घर में किसी चीज की रोक टोक नहीं है। हमारे घर की बहुएं तो बेटियों की तरह रहती हैं। लेकिन शादी के बाद मिनाक्षी ने देखा की बात- बात पर सासु माँ टोकती रहती हैं| साड़ी के अलावा और कुछ पहनने की इजाजत नहीं थी| ससुर और जेठ के सामने सर पर पल्लू होना जरूरी है| जोर से हंसने पर भी पाबंदी थी| मिनाक्षी के पति विवेक का काम ऐसा था कि उन्हें कई बार शहर से बाहर जाना पड़ता था| ऐसे में जब मिनाक्षी घर पर रहती उसे अजीब तरह की इनसिक्योरिटी महसूस होती थी| उसे लगता जैसे किसी की नजरें उस पर हैं| लेकिन साथ हीं लगता कि शायद यह उसका वहम है|

 

एक दिन जब वो रसोई में काम कर रही थी तो उसके जेठजी रसोई में आए और मिनाक्षी से पानी मांगा। मिनाक्षी ने जैसे हीं पानी का गिलास उनकी ओर बढ़ाया उन्होंने मिनाक्षी के हाथ को कुछ इस तरह छुआ की मिनाक्षी सिहर गई| उसे बहुत अजीब सा महसूस हुआ| वो फटाफट रसोई से निकलकर अपने कमरे में चली गई|

जब मिनाक्षी के पति विवेक टूर से वापस आए तो मिनाक्षी ने उनसे कहा, “मुझे आपसे कुछ कहना है।

“हाँ कहो, कुछ चाहिए क्या तुम्हें?

“नहीं कुछ चाहिए नहीं। मुझे बड़े भईया का व्यवहार कुछ अजीब सा लगता है। मिनाक्षी ने हिचकिचाते हुए कहा|



“क्या मतलब है तुम्हारा?” विवेक को समझ में नहीं आया कि मिनाक्षी क्या कहना चाहती है|

“मेरा मतलब वो मुझे अजीब तरह से देखते हैं| मिनाक्षी हो सकता है ये तुम्हारा वहम हो। वो तो बहुत सीधे साधे हैं| अगर गुस्से-गुस्से में कुछ गलत मुंह से निकल गया तो बेवजह रिश्ते बिगड़ जाएंगे।

विवेक मैं ऐसे हीं नहीं बोल रही हूँ| एक औरत में इतनी समझ तो होती है कि वो किसी के देखने के नजरिये को समझ सकती है| फिर भी अगर आप कह रहे हैं तो मैं भी इतनी जल्दी कोई इल्जाम नहीं लगाऊंगी। लेकिन हां यदि मुझे फिर मुझे कभी ऐसा लगा तो मैं चुप भी नहीं रहूंगी।

विवेक भी बहुत परेशान था क्योंकि वो मिनाक्षी को जानता था कि वो कभी इतनी बड़ी बात यूँ हीं नहीं बोलेगी| लेकिन अपने बडे़ भाई पर बिना किसी सबूत के इल्जाम कैसे लगा दे।

एक सप्ताह बाद फिर विवेक को बाहर जाना था| उसने मिनाक्षी को समझा दिया कि बेवजह ऐसी कोई प्रतिक्रिया ना  दे  जिससे घर में तनाव का माहौल बने। मिनाक्षी उस वक्त चुपचाप रह गई| मिनाक्षी की जेठानी अपने मायके किसी पारिवारिक समारोह में चली गई थी। घर पर सास- ससुर और जेठ हीं थे।  शाम को जब वो सभी को खाना खिलाकर रसोई साफ कर रही थी तो उसे अपनी कमर पर सरसराहट सी महसूस हुई। वो यकायक झटक कर पलटी तो देखा उसके जेठ हैं| वो चिल्लाते हुए सास के कमरे की तरफ भाग गई|    सास  ने उसे इस तरह देखा तो पूछा,” क्या हुआ बहु, इस तरह क्यों भागी आई हो और तुम्हारे सर पर पल्लू भी नहीं है| पता नहीं यहाँ तुम्हारे ससुर जी भी बैठे हैं।




“माँ जी…… वो… वो…..बड़े भईया मेरे साथ बद्तमीजी कर रहे हैं|

“ये क्या बोल रही हो बहु! ये सरीफों का घर है। तुमने क्या सारी तमीज बेच खाई जो मेरे बेटे पर ऐसा इल्जाम लगा रही हो| बहू हमारे घर की कुछ मान मर्यादा है । इस तरह झूठ बोलकर इस मर्यादा को मिट्टी में मत मिलाओ।

ससुर जी ने उसी वक्त अपने बड़े बेटे को बुला कर पूछा तो उसने बड़ी सफाई से मिनाक्षी को हीं गलत बता दिया। मिनाक्षी ने विवेक को फोन करके दूसरे हीं दिन बुला लिया| जब वो घर आया तो मिनाक्षी ने सबके सामने कहा, “मैं अब इस घर में एक दिन भी और नहीं रह सकती|

सास ने बात को वहीं दबाने के लिए कहा, “बहु घर की मर्यादा का तो ख्याल करो| लोग क्या कहेंगे   सब के सामने हमारे घर की इज्जत को इस तरह मत उछालो| हम बड़े को समझा देंगे| और तुम्हें भी तो कितनी बार समझाया है अपने जेठ के सामने अदब से रहा करो|

“माँ जी, ये कैसी इज्जत है आपके घर की जहाँ घर की बहु -बेटियों की हीं इज्जत की हिफाजत नहीं होती। क्या सिर्फ लम्बा घूंघट निकाल लेने से हीं  औरतें अपनी इज्जत बचा सकती हैं| घर की इज्जत वहाँ हो रही गलत हरकतों को चुपचाप बर्दाश्त करने से नहीं बल्कि उस घर की औरतों वहाँ कितनी सुरक्षित हैं इससे होती है|

“मिनाक्षी ठीक बोल रही है माँ-बाऊजी। मिनाक्षी घूंघट नहीं निकालेगी तो क्या भईया इसके साथ बदतमीजी करेंगे। जब इंसान की नियत एक बार डगमगा जाती है तो उसका यकीन करना मुश्किल होता है| इससे अच्छा है कि हम अब अलग हीं रहेंगे। मेरे लिए पहले अपनी पत्नी है बाद में समाज।

 

मिनाक्षी और विवेक ने फैसला ले लिया था और बाकी सब अपनी झूठी इज्जत को किसी तरह बचाने की कोशिश में थें|

प्रिय पाठकों, कई बार ऐसा होता है कि घर में हो रही छोटी छोटी घटनाओं को घर की इज्जत के नाम पर दबा दिया जाता है और जब बाद में वो घटनाएं बड़ा रूप ले लेती हैं तो पछताने के अलावा कुछ नहीं रह जाता। इससे अच्छा है शुरुआत में ही इसके खिलाफ आवाज उठाई जाए ताकि बात बढ़ने से पहले ही खत्म हो जाए|

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आपकी सखी

सविता गोयल

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