मां कभी सौतेली नहीं होती – संगीता अग्रवाल 

सविता जी  की नजर बार बार घड़ी की और जाती वो बेचैनी से दरवाजे तक जाती फिर वापिस सोफे पर आ  बैठ जाती। बेटी रिया को कॉलेज से आने में देर जो हो गई थी तो एक मां का बैचैन होना स्वभाविक था। तभी रिया आती  दिखी और उसकी जान में जान आई…

” बेटी इतनी देर कहां लग गई मैं परेशान हो गई थी !” सविता जी  उससे बोली।’

” क्यों …?” रिया सपाट लहजे में बोला।

” क्यों क्या रोज तुम तीन बजे तक आ जाती हो आज पांच बज गए तो चिंता होना लाजमी है !” सविता जी  हैरानी से बोली।

” देखिए आपको मेरी फिक्र का नाटक करने की जरूरत नहीं है अब तो पापा भी नहीं हैं जिनके सामने आपका ये नाटक चल जाता था !” ये बोल रिया अपने कमरे में चली गई ।

आप सोच रही होंगी एक बेटी अपनी मां से कैसे बात कर रही  है ये…क्या कोई बेटी इतना बदतमीज हो सकती है ? तो मेरा जवाब होगा जब मां दूसरी हो तो ऐसा हो सकता है भले वो दूसरी मां सगी मां से ज्यादा प्यार करती हो पर कई बार बच्चों को वो प्यार दिखावा लगने लगता है। सविता जी  रिया के पिता संजय  की दूसरी पत्नी है जब रिया 12 साल का थी  तभी उसकी मां की मृत्यु हो गई थी और दो साल बाद संजय ने सबके समझाने पर विधवा सविता जी  से शादी कर ली थी सविता जी  ने शादी के बाद रिया को बहुत प्यार दिया यहां तक कि रिया का प्यार बंट ना जाएं ये सोच संजय ने सविता जी  से दूसरा बच्चा ना करने की बात की जिसे सविता जी  ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पर दो साल पहले संजय की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद आस पास के लोगों और रिश्तेदारों ने रिया के मन में सविता जी  को ले नकरात्मक बाते भर दी थी जिससे रिया उसका तिरस्कार करता था सविता जी  सब सह जाती क्योंकि उसने संजय के आखिरी वक़्त में उससे रिया का हमेशा ध्यान रखने का वादा किया था। सविता जी  संजय  के छोटे से कपड़े के व्यवसाय को भी खुद संभालती थी।

वक़्त अपनी रफ्तार से गुजरता रहा पर रिया की नफ़रत भी वक़्त के साथ बढ़ती रही सविता जी  जितना उसका ध्यान रखती रिया उतना ही उसका तिरस्कार करती। अब तो वो पढ़लिख कर नौकरी भी करने लगी थी। 

” बेटी ये क्या तुमने शादी कर ली ?” एक दिन अचानक रिया को एक लड़के के साथ आया देख सविता जी  हैरान रह गई क्योंकि दोनों के गले में जयमाला पड़ी थी।

” हां तो ये मेरी जिंदगी है मैं जो भी करो मेरी मर्जी तुम कौन होती हो मुझसे सवाल करने वाली !” रिया उखड़े अंदाज में बोली और उस लड़के  जिसका नाम मोहन था उसे ले अपने कमरे में चला गयी।



सविता जी  स्तब्ध रह गई …वो संजय की तस्वीर के सामने खड़ी हो आंसू बहाने लगी ” संजय आप मुझे कैसे धर्म संकट में छोड़ गए हो हर वक़्त का तिरस्कार अब सहन नहीं होता !” सविता जी  आंसू बहाते हुए बोली।

” बेटी चाय लाई हूं दरवाजा खोलो !” अगले दिन वो रिया के कमरे का दरवाजा खटखटाती हुई बोली।

” जब आपने कोई बेटी जना ही नहीं तो मैं आपकी बेटी  कैसे हो गई .. 

अब तक सविता जी  सब सह रही थी क्योंकि वो उसने कभी रिया को पराया समझा ही नहीं पर इस बार बेटी  के द्वारा किया अपमान उसके बर्दाश्त के बाहर होने लगा था। वक़्त बे वक़्त   रिया कोई मौका नहीं छोड़ती सविता जी  को नीचा दिखाने का।

 

” मेरे पापा की सारी जायदाद पर मेरा हक है बेहतर होगा आप उसे मेरे नाम कर दें वैसे भी आपके तो कोई औलाद है नहीं आप क्या करेंगी इन सबका!” कुछ दिन बाद रिया सविता जी  से बोली।

” ठीक है बेटी अगले हफ्ते तुम्हे सारी जायदाद के कागज मिल जाएंगे !” सविता जी  बिना उसकी तरफ देखे बोली।

संजय की कोई जुड़ी जायदाद तो थी नहीं जो कुछ था सविता जी  ने रिया की पढ़ाई में लगा दिया था इन सबमें सविता जी  के सिर पर थोड़ा कर्जा भी था जो उसने संजय के कपड़े की दुकान पर लिया था।



अगले हफ्ते सविता जी  एक चिट्ठी और कुछ पेपर्स छोड़  के रिया के कमरे  से निकलने से पहले ही घर से निकल गई । रिया जब उठ कर आयी उसने चिट्ठी पढ़ी….

 

बेटी रिया

 

मां कभी सौतेली नहीं होती पर शायद दुनिया की नजर में वो कभी सगी बन ही नहीं सकती मैने अपना सब कुछ तुम्हे माना इसलिए तुम्हारे पापा के कहने पर अपनी संतान को भी जन्म नहीं दिया। सोचा था तुम तो हो मेरी संतान पर मैं भूल गई थी मां भले सौतेली ना हो पर औलाद सौतेली बन जाती है जैसे की तुम सौतेली  बन गई। इसलिए यहां से दूर जा रही हूं उन बच्चों के पास जिन्हें ममता की जरूरत है क्योंकि वो ना खुद सौतेले हैं ना किसी की ममता को सौतेला मानते। रही जमीन जायदाद की बात दुकान पर तुम्हारी पढ़ाई का कर्ज चढ़ रहा है जिसके पेपर्स साथ में हैं उसे बेच कर मैने कर्ज चुका दिया अब बस ये घर है जो कल भी तुम्हारा था आज भी उसके कागज छोड़ रही हूं। अब तक हर तिरस्कार सहकर भी तुम्हारे साथ थी क्योंकि तुम्हारे पिता से वादा किया था तुम्हे कभी अकेला ना छोड़ने का। पर अब अपने हर वादे से आज़ाद हो जाना चाहती हूं ।

 

 

सिर्फ सविता जी ……

 

सविता जी  ने इस एक हफ्ते में दुकान बेचने के साथ साथ दूसरे शहर में एक अनाथाश्रम में नौकरी की बात कर ली थी जहां वो आगे सौतेले से उपर उठ अपनी ममता को तृप्त कर सके।

 

दोस्तों ये सच है हमारी सोसायटी में दूसरी मां को सौतेली का टैग दे दिया गया फिर वो चाहे कितनी अपनी हो पर ये टैग उसके माथे से नहीं हटता भले वो अपना सर्वस्व अपनी औलाद पर न्योछावर कर दे तब भी वो खुद सौतेली ना बने तो दुनिया उसके बच्चों को सौतेला बना देती है मन में जहर भरकर।

 

आपकी दोस्त

संगीता 

 

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