कौन किसके लिए कितना करता है…… – रश्मि प्रकाश

“मौसम हमेशा एक सा नहीं रहता कमला….एक दिन तेरी किस्मत में भी अच्छे दिन आयेंगे….तू चिंता क्यों करती हैं हम है ना तेरे साथ…..जाने दें तेरे पति ने जब साफ साफ कह ही दिया उसको तेरे साथ नहीं रहना,तो फिर उसको जिसके साथ जाना जाने दें….उसको तेरे से जब प्यार ही नहीं है तो क्यों रोज रोज उसकी मार सहती है? अब जब उसने तेरे से पूछा बच्चों को चाहे तो रख सकती है या चाहे तो वो ले जाए….तुने क्या बोला ?‘‘ रत्ना जी ने कमला से बड़े प्यार से पूछा

‘‘क्या बोलूं दीदी जी ,ऐसा लग रहा चार साल कैसे उस ज़ालिम के साथ दिन काटे….बस बच्चों की वजह से ही ना….अपने बच्चे उसको कैसे दे सकती थी …मना कर दिया….फिर उस कलमुंही के साथ अपने जने बच्चे कैसे जाने देती ,जाने कैसा व्यवहार करें?‘‘कमला का मद्धिम स्वर उसके हाल को बयां करने को काफी था।

“सुन तु ऐसा कर अब उस खोली में तो तेरा पति दूसरी औरत के साथ रहेगा तुम लोग वहां तो नहीं रह सकते हो…बस तू तो अब बच्चों को लेकर हमारे साथ ही रह….मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती, फिर इधर घर में तेरे भैया (रत्ना के पति)और कुहू (बेटी)ही तो रहते हैं….जा जो स्टोर है उसको साफ़ कर के उधर ही रहने की व्यवस्था कर ले…बच्चों को भी ले आ…।”रत्ना जी ने कहा

रत्ना जी अकसर बीमार रहती थी, ज्यादा काम कर ले तो चक्कर आने लगते थे, इसलिए उनको लगा कमला के यहां रहने से उनको बहुत मदद मिल जायेगी।

दफ्तर से जब अरूण बाबू रत्ना जी के पति आये तो उनको भी यही लगा रत्ना ने सही निर्णय लिया।

कमला के बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ने भेज दिया। कुहू अभी एक साल की थी इसलिए रत्ना जी को उसपर ध्यान देने का पूरा वक्त मिलता। कमला ने बहुत अच्छे से सब संभाल लिया था। वक्त के साथ साथ कमला भी उस घर का हिस्सा बनती गई।

एक दिन रत्ना जी को चक्कर आ गया, वो होश में नहीं आ रही थी। कमला ने जल्दी से अरूण बाबू को फोन करके सब बताया और अपने बड़े बेटे को लेकर अस्पताल भागी।

डाक्टर ने बोला अब तो इनकी सांसें चल ही नहीं रही…. ये सुनकर कमला के होश उड़ गए।



तब तक अरूण बाबू भी आ गया। पत्नी के जाने का दर्द सीने में दफन कर उसकी अंतिम विदाई की।

अरूण जी अब उदास रहने लगे। कमला के बच्चे उन्हें बाबूजी कहते हमेशा कोशिश करते कुहू और बाबू जी को खुश रखे।

कुहू अभी दस साल की ही थी ।वो कमला के बहुत करीब थी , कमला को मौसी बोलती थी ।

अब कमला पर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई थी…. रत्ना दीदी के इतने एहसान थे कि वो इस घर को छोड़कर जाने का सोच भी नहीं पाती थी….लोग बाहर सौ बातें बनाते थे पर कमला उन बातों पर ध्यान नहीं देती थी उसे बस इतना पता था भैया और कुहू की ज़िम्मेदारी अब उसकी है… ।

अरूण जी ने कमला के दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई….बिल्कुल अपने बच्चों की तरह।

आज कमला के बड़े बेटे दीपक को अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में अवार्ड मिलने वाला था।

बेटे ने बोला ,“आप सब को कालेज आना होगा। बाबू जी आप भी कुहू के साथ आए।”

पहले तो अरूण जी ने मना कर दिया पर दीपक की जिद के आगे हार गए।

सब लोग कालेज गये।जब दीपक का नाम बुलाया गया तो वो उठा और अरूण बाबू को अपने साथ मंच पर चलने का आग्रह करने लगा।

अरूण बाबू बोले ,“बेटा अपनी माँ को ले जा….मैं जाकर क्या करूंगा?”



दीपक के बहुत आग्रह पर अरूण जी मंच पर गये।
दीपक को जब सम्मान दिया गया तो उसने अरूण जी के चरणों में समर्पित कर दिया और बोला‘‘ आज मैं जो कुछ भी हूँ इनकी वजह से हूँ….ये मेरे सबकुछ है….मेरे पापा ने जब हमे छोड़ दिया तो इन लोगो ने हमें अपना मान कर वो सब दिया जो हम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे….बाबू जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।”

कमला ये सब देख कर अपनी दीदी जी को याद कर रही थी, आज उसके बच्चे जिस मुकाम पर हैं उसका सारा श्रेय दीदी जी को जाता है। वो ठीक ही कहती थी मौसम हमेशा एक सा नहीं रहता। आज उसने महसूस किया उसके जीवन के पतझड़ को तो रत्ना दीदी ने खत्म कर दिया था अब जाकर उसके जीवन में बसंत आया है।वक्त का पहिया कब घुम जाता कोई नहीं जानता।रत्ना दीदी आप होती तो कितना अच्छा होता , सोचती कमला आँखों में आये आंसू पोंछने लगी।

अब उसने अपना सारा जीवन अपने बच्चों के साथ साथ भैया और कुहू के लिए झोंक दिया।

रत्ना दीदी के जाने के बाद उसने अपने आपको इन दोनों के लिए समर्पित कर दिया…. वो चाहती तो फिर से अपना घर बसा सकती थी पर उसने अपनी रत्ना दीदी के लिए जो त्याग किया वो सबके बस का नहीं था… रत्ना दीदी के पति और बेटी का ध्यान रखने के लिए आजीवन इस घर में रहना मंज़ूर कर लिया था…. अरूण जी भी कमला को बहन मानते थे जो उनका पूरा ख़्याल रखती थी…. कभी कभी लोग कमला को ताने मार देते थे मेमसाहेब के जाने के बाद तेरे तो मजे है पर कमला ही जानती थी इस टूटे घर को जोड़ने से पहले उसके टूटे घर को जोड़ने वाली उसकी रत्ना दी ही थी जो उस वक्त मदद ना करती तो आज ना तो वो ना उसके बच्चे इज़्ज़त का ज़िन्दगी जी पाते…. ।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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