मां की भी तो चाहत थी – मोना नरेंद्र जैन : Moral stories in hindi

नमिता की उम्र कोई तीस के आसपास की रही होगी, जब उसका पति योगम उस रात सोया तो ऐसा कि फिर उठा ही नहीं।

अकेलापन भी नमिता को इतना न कचोटता होगा, जितना लोगों द्वारा दिखाई दया।

खैर थोड़ी सी पढ़ी-लिखी और मेहनती नमिता को जो काम मिला वो उसने मेहनत से करके अपनी बेटी जया और सिद्धम को पाला।

मगर नमिता ने अपनी लेखनी को कभी दबने न दिया।

लेकिन और आगे पढ़ने और अपने विचार, अपनी लेखनी के द्वारा दुनियां को बताने में वो अक्षम ही रही।

चूंकि उसने बेटी जया की शादी छोटी उम्र में ही तय कर दी सो वो मां के इस शौक से वाकिफ नहीं थी।

खैर बेटा सिद्धम मां के साथ रहकर मां को अच्छी तरह से समझने लगा था।

नमिता को जब भी कोई विचार आते,वो उन्हें फुर्सत के पलों में कागज पर उतार लेती।

नमिता को याद था, एक बड़े परिवार में उसकी शादी हुई थी।

बड़ा परिवार तो था ही, साथ ही सास-ससुर भी

उसकी शादी के सात-आठ साल बाद स्वर्ग निवासी हो गये।

बड़े परिवार में ब्याह क्या हुआ,सबको मानों एक फ्री की नौकरानी मिल गई ।

सीधे -सरल स्वभाव वाली नमिता से काम लेने में जमकर प्रयोग हुआ।

दिन भर चक्की सी या कोल्हू के बैल सी जुतती रही।

सब की फरमाइशें पूरी करते-करते कब नमिता बुढ़ापे की चपेट में आ गई पता ही नहीं चला।

और नमिता अपने वैधव्य योग को जो पूर्णतया अंगीकार कर चुकी थी।

और अपनो को खुश करने के चक्कर में अपने जीवन के अधिकांश भाग की योगदानकर्ता रही।

जिस दिन से पति देव का साथ छूट गया,मानों सबकुछ उजड़ गया ।

सबकी अब उसके हिस्से की लक्ष्मी पर ही नजर रहने लगी।

जेवर जो अपने माता-पिता समान जेठ-जेठानी के पास संभाल कर रखने को रखा था।

बनावटी रो-रोकर बोलने लगे, बेटा नमिता पता नहीं तुम दोनों (जेठानी और नमिता)का जेवर कैसे चोरी हो गया।

धीरे-धीरे मकान और जमीन भी हाथ से निकल गई।

उन ने सीधेपन का ऐसा खेल खेला,नमिता को पता ही नहीं चला।

इसका पता तो नमिता को अलग कर देने के बाद,

खूब नये-नये जेवर पहनकर दीदी की बहु-बेटी को देखकर समझ में आ गया।

खैर नमिता ने अपनी मेहनत से अपने बच्चों को

बिटिया जया जब बड़ी हो गई तो, अकेली नमिता ने अच्छा लड़का देख कर सभी रिश्तेदारों को बुलाकर उसकी शादी करवा दी।

और बेटा सिद्धम को भी व्यापार खड़ा करने में खूब मदद की।

आज उसके लड़के ने जो एक अच्छा व्यवसाय स्थापित कर चुका था, अपनी मां को टचस्क्रीन का मोबाइल लेकर आया था।

यूं तो नमिता के अपने सभी शौक को पति के बाद ही छूट गये थे।

और करती भी कैसे?उसे संबल देने वाला कोई भी नहीं था।

लेकिन सिद्धम के मन में अपनी मां को एक अच्छा जीवन देने की इच्छा घर कर गई।

आखिर सिद्धम भी अपनी मां को देखते ही बड़ा हो रहा था।

आज उसने अपनी मां को टचस्क्रीन मोबाइल फोन दिया,लो मां ये मोबाइल।

इसमें सेल्फी से लेकर अपनी पोस्ट कई ग्रुप में डाल कर आप सभी को बता सकते हो।

और मां तुम कुछ लिखना चाहो तो लिख भी सकते हो।

तुझे कैसे पता चला कि मुझे लिखने का शौक था?

नमिता ने सिद्धम की ओर दृष्टिपात करते हुए कहा।

मां एक दिन मैंने वो पिताजी की संदूक खोलकर देखी।

उसमें आपके लिखे हुये खत और डायरियां रखी थी।बस तभी से सोच रखा था कि मैं आपको

क्या गिफ्ट दूं?

आखिर टचस्क्रीन मोबाइल फोन का विचार आया।

मां मुझे आज भी याद है कैसे हम सभी को सुलाकर तुम संदूक खोलकर कुछ करती रहती थी।

और हमसे कह देती थी, कि कुछ नहीं बस तेरे पिता जी को याद कर रही हूं।

और तुम कुछ दो चार लाइनें कापी में टीप दिया करती थी।

मैंने कई बार कोशिशें की तुम्हारी संदूकची खोलने की पर तुम मुझे हर बार मना कर देती थी।

और एक दिन चुपके से मैंने वो खोलकर देखा तो पता चला कि मेरी मां ने किन दुःखदअहसासों को छूकर हमें पाला हैं।

आपके जैसी मां को पाकर मैं उस महाशक्ति का शुक्रगुजार हूं।

आखिर मेरी मां की भी तो चाहत होगी कुछ बनने की।

नमिता अपने बेटे सिद्धम को सुने जा रही थी और उसकी आंखें मारे खुशी के भीगी जा रही थी।

आखिर सिद्धम में अपने पिताजी जैसा संस्कार जो था।

मोना नरेंद्र जैन इंदौर मध्यप्रदेश स्वलिखित

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