लव बर्ड्स – कमलेश राणा

यथा नाम तथा गुण,,,ये चिडियाँ सारे दिन प्यार में ही मस्त रहतीं हैं,,तभी इन्हें लव बर्ड्स कहा जाता है,,ये ऑस्ट्रेलियन पक्षी है,,इन्हें बजरी या बज्जी भी कहते हैं,,

ये चिडियाँ जोड़ा बनाती हैं और जीवनपर्यन्त उसीके साथ रहती हैं,,,इनका जीवन मनुष्य के लिए सफल गृहस्थ जीवन का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है,,

ये मैने तब जाना जब मेरा बेटा पोते के लिए इनको ले कर आया,,,जिस तरह की दिक्कतें हमारे जीवन में आती हैं,,उन्हें भी होती हैं,,और ये कैसे उस से निपटते हैं,,सचमुच अद्भुत है,,इनकी दुनिया ,,

हुआ यूँ कि बेटे के पड़ोस में ये चिडियाँ थीं ,,,एक दिन वो 2साल के पोते को  उनके यहाँ ले कर  गये,,,रंग-बिरंगी,चहकती हुई चिडियाँ उसको इतनी पसंद आई कि वह सारे समय पिंजरे से ही चिपका रहा,,

अब तो वह रोज वहाँ जाने की जिद करता और चला जाये तो आने को तैयार नहीं,,,बेटे ने सोचा कि मैं चिडियाँ ले ही आता हूँ और इस तरह हमारे घर में उनका पदार्पण हुआ,,

बेटा दिल्ली से घर आया ,,,तो वो भी साथ आईं और घर की सदस्य बन गई ,,,6 थीं वो ,,,हरी,पीली,नीली,सतरंगी ,हल्की हरी और हल्की नीली,,,बहुत ही सुंदर,,उनके कलरव से घर चहकने लगा,,वातावरण में नवीनता का संचार हुआ,,

दाना पानी रखते हुए भावनात्मक लगाव भी होने लगा,,,सर्दियों में पिंजरा धूप में रखते,,गर्मियों में कूलर में,,

धीरे-धीरे उन्होने जोड़ा बनाने की कोशिश शुरू की,,यह भी बड़ी मजेदार प्रक्रिया है,,नर लुभाने की कोशिश करता तो मादा चोंच मार के भगा देती ,,,,,फिर दूसरा आता,,उसे भी भगा देती,,यहाँ भी लेडीज़ चॉइस फ़र्स्ट  ,,



पहले तो लगता चिडियाँ हैं,,खेल रहीं हैं,,पर अब मुझे उनसे प्यार होने लगा और पिंजरे के सामने एक कुर्सी रख ली,,खाली वक़्त उनके साथ गुजरने लगा,,उन का जीवन समझ में आने लगा,,

2महीने लगे ,,सबका जोड़ा बन गया ,,अब गृहस्थ जीवन शुरू हुआ,,दो जोड़े बहुत समर्पित एक दूसरे के लिए,,सारे दिन चोंच लड़ाते,,एक  दूसरे को चोंच से दाना खिलाते,,प्यार ही प्यार बेशुमार ,,अपने में मस्त,,

बस एक चिड़ा बड़ा बदमाश था,,वो अपनी चिड़िया पर बड़ा रौब जमाता और खुद नीली चिड़िया पर लट्टू था,,वह जब भी अपने साथी के साथ होती तो चोंच मार के भाग जाता या चिपक कर बैठ जाता,,प्यार का पक्का दुश्मन,,,

बेचारा नर उसको चोंच मार कर दूर तक खदेड़ आता,,फिर प्यार करने लगता,,ये सारी जिम्मेदारी नर की ही होती अपनी मादा की सुरक्षा की,,मादा शान्त ही रहती,,

पिंजरे में हमने गोल छेद कर के तीन मटकी लगा दी थी ,,छेद इतना बड़ा था कि चिड़िया आसानी से आ जा सके,,

कुछ दिनों बाद एक चिड़िया रोज अंदर जाती,,फिर बाहर आ जाती,,नर बाहर ही रहता,,अब तक तेज सर्दी पड़ने लगी तो हमने शॉल से पिंजरे को ढंक दिया,,एक दिन बड़े धीरे-धीरे चूं-चूं की आवाज आई,,ध्यान से सुना,,सच में ही बच्चे हो गये थे ,,पता ही नहीं चला कब अण्डे दिये चिड़िया ने,,

अब समझ आया कि चिड़िया मटकी का मुआयना करने जाती थी कि वह सुरक्षित है या नहीं,,,अब तो मैं दिन में कई  बार मटकी मे झाँक लेती ,,पर ,,उफ्फ़ वो माँ जल्दी से अपने पंखों में छुपा लेती अपने लाड़लों को,,मैं भी हँस के कहती,”हाँ,छुपा ले,छुपा ले,,नज़र लग जायेगी तेरे लाल को ।”

अब चिड़िया पूरे मनोयोग से बच्चे पाल रही थी और चिड़ा पूरी मुस्तैदी से मटकी के द्वार पर तैनात,,चिड़िया और बच्चों का दाना लाने की पूरी जिम्मेदारी उसी की,,उस से चिड़िया लेती और बच्चों को प्यार से खिलाती,,



धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो रहे थे,,पंख और रंग आने लगा ,,चारों चार रंग के  बड़े प्यारे,,पर अब वो चिड़िया की बात कम मानते और हमें मुंह दिखा ही देते ,,पहले तो चिड़िया पंखो से समेट कर अपने नीचे छुपा लेती थी,,

अब बच्चों की खुराक बढ़ने लगी तो चिड़िया भी बाहर जा कर दाना खाती ,,हम भी मौके की तलाश में रहते की ये बाहर जाये तो देखें बच्चों को,,,पर जैसे ही वो देखती तुरंत आ कर छुपा लेती,,,अब दोनों मिल कर  पाल रहे थे उन्हें,,और बड़े हुए तो 

,, अब वो कभी मटकी पर तो कभी मटकी के द्वार पर बैठ जाते,,नीचे उतरने में डर लगता था उन्हें,,फिर एक दिन चिड़िया ने उन्हें खुद ही मटकी से  नीचे धक्का दे दिया,,अब वो समर्थ थे अपना जीवन यापन करने के लिए,,

एक महीने बाद फिर वही सिलसिला,,एक बार फिर अंडे दिये ,,चिड़िया अण्डों की रक्षा में और चिड़ा दाना पानी की व्यवस्था में,,बहुत ही समर्पित माँ थी वो ,,सैल्युट है ऐसी माँ को 

लेकिन सारी चिडियाँ उस जैसी नहीं थीं,,एक को आज़ादी प्यारी थी,,तो वह मन होता तब तक बैठती फिर अंडे फेंक देती मटकी से,,

दूसरी का चिड़ा दबंग था,,वह चाहती तो भी नहीं निकलने देता उसे,,शायद अनुभव की कमी रही हो,,उसने समय से पहले ही बच्चे निकाल दिये,,उचित देखरेख के अभाव में वो जी ही नहीं पाये,,,

 हाँ पहली चिड़िया का परिवार खूब फलाफूला,,2महीने बाद उसके बच्चों ने भी जोड़े बना लिये,,अब पिंजरा छोटा पड़ने लगा तो बहुत बड़ा पिंजरा बनवाया गया जिसमें वो आसानी से उड़ भी सकें,,अब पूरी कॉलोनी बन गई थी 22 चिड़ियों की,,,


ये बेजुबान पक्षी जीवन का गूढ़ रहस्य समझा गये,,यदि  पति पत्नी दोनों ही अपने कर्तव्य का निर्वाह पूरी निष्ठा के साथ करते हैं तो जीवन स्वर्ग से भी सुंदर है,,और नहीं तो फिर दो जोड़ों का जो हश्र हुआ वही होना है,,,

(मैं स्वयं पंछियों को कैद में रखने का समर्थन नहीं करती पर जब वो आ ही गए तो उड़ा इसलिए नहीं पाये कि वो कंगनी ही खाते हैं,,उसके अभाव में मर जाते )

कमलेश राणाग्वालियर

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