“जीजा जी आप तैयार नहीं हुए!”
अपने तरीके से तो मैं तैयार हो ही चुका हूँ। अब इससे ज्यादा मैं कैसे तैयार हो पाऊं। गलती इसकी भी नहीं। ये मेरे ससुराल में मेरी शादी के बाद तीसरी शादी है। और ले देकर मैं यही पुराना कोट पैंट आज तीसरी दफा पहन रहा हूँ। साले साहब तो नए सूट बूट में ये कह कर चल दिये ।पर मैं थोड़ा सोच में पड़ गया। मुझसे छोटे वाले दामाद भी पैसे वाले हैं। उनके पहनावें की तो बात ही कुछ और है।एक झलक देखा उनको अभी। किसी राजकुमार की तरह लग रहे हैं। मैं आईने के पास खड़ा खुद को देख रहा हूँ। इससे अच्छा मुझे आना ही नहीं चाहिए था। रेणुका और बच्चों को ही भेज देता सिर्फ।आखिर मैंने तैयारी भी सिर्फ उन्हीं का किया था। बच्चों के कपड़े और रेणुका की साड़ियां ही इतनी महँगी हो गई कि खुद के लिए बजट ही नहीं जम पाया।तभी फिर से साले साहब आ गए
“जीजा जी! मैं बच्चों को लेकर निकलता हूँ, नए वाले जीजा जी अपनी गाड़ी से मम्मी पापा को लेकर निकल गए हैं, आप भी जल्दी कीजिये, बाकी लोग भी रेड्डी हैं,आप सबको लेकर मैरेज हॉल पहुंचिए। ये रेणुका दी नज़र नहीं आ रही?”
“हाँ मैं देखता हूँ”
ये रेणुका भी ना! मायके आ जाने के बाद खुद में ही बिजी रहती है। खुद तो एक घंटे पहले ही तैयार हो गई थी। फिर से लगी होगी अपनी बहनों के साथ मेकअप में। झुंझलाहट में उसे ढूंढने नीचे उतर ही रहा था कि दरवाजे के किसी कोने से लग मेरे कोट का बाजू थोड़ा फट गया। अब क्या करूँ मैं?रही सही कसर भी..! मैं वहीं पड़े कुर्सी पर बैठ कुछ सोच ही रहा था कि तेज कदमों से मेरी तरफ ही रेणुका को आते देखा
“कहाँ चली गई थी तुम!कबसे ढूंढ रहा हूँ! यहाँ आते ही तुम्हारे तो तेवर ही बदल जाते हैं! सिर्फ अपना ध्यान है तुम्हें! सारी तैयारियां कर के दे दी तुम्हें फिर भी पता नहीं क्या..?”
मैंने अपनी पूरी झुंझलाहट निकाल दी। पर मन हल्का नहीं हुआ।रेणुका को देख दिल भर आया।उसकी आँखों में आँसू जो उतर आए थें।
“माफ कर दो रेणु! दरअसल ये पुराना कोट भी आज फट गया, झुंझलाहट में समझ नहीं आया..”
मैंने अपनी सफाई देनी चाही पर जुबान साथ नहीं दे रहे थे। मैं गर्दन झुकाए खड़ा था।
“ये पहन लो तुम! और जल्दी चलो सब इंतज़ार कर रहे होंगे” रेणुका के हाथों में मेरे लिए नया कोट पैंट था
“ये कहाँ से?”
“वो अपनी मैचिंग और शृंगार के लिए तुमसे मांगे थे ना वही”
“तो तुम्हारी मैचिंग, पॉर्लर और शृंगार ..?”
“तुम इसे पहन लो तो..मेरी मैचिंग! और थोड़ा हँस दो तो..मेरा शृंगार..!’
उसने इतनी मासूमियत से कहा कि..ना मेरी हँसी रुक रही थी.. और ना ही आँसू..!
विनय कुमार मिश्रा