लड़के वाले भाग -4 – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अभी तक आप सबने पढ़ा कि नरेश जी अपनी पत्नी बेटों सहित बड़े भाई साहब रमेश जी के साथ बारिश के दिन अपने बड़े बेटे उमेश के लिए लड़की देखने भुवेशजी के घर किसी तरह पहुँच चुके हैं… लड़की के दादा नारायणजी बहुत सख्त स्वभाव के हैं… वो लोग पानी पी चुके हैं… कमरे में बारिश का पानी टपकने से सभी लोग दादा जी के पलंग के पास ही कुरसी डालकर बैठ ज़ाते हैं .. दादा जी चाय नाश्ता लाने को कहते हैं…

अब आगे….

जी पिता जी … हम अभी लायें … अंदर से लड़की की बुआ तेज आवाज में बोलती हैं… रसोई घर में घर की बड़ी बहू जो लड़के वालों को पानी, मिठाई देकर आयी थी …रसोई में मौजूद सभी लोगों से कहती हैं…. मुझे तो लड़का समझ ना आ रहा…. चाय देने गयी तो मुझे ही देखकर मुस्कुराने लगा… और तो और अपने हाथों में पहनी वो मूँगा , पन्ने की अंगूठी मेज पर हाथ रख धीरे धीरे बजाने में लगा था… क्या नाच गाना करने वाला हैं… मुझे ना अच्छा लागे हैं ये कि लड़के ऐसी हरकतें करें …

तभी बुआ जी बोली… हो सके हैं भाभी कि वो आपको अंगूठी दिखा रहा हो कि देखो कितनी सोने की अंगूठी पहने हूँ… आजकल के लड़के दिखावा बहुत करें हैं… ऐसा क्या ..सही बोली जीजी तुम… मुझे पता होता तो मैं भी अपनी सारी अंगूठी उसकी आंखों के सामने हाथ आगे करके करके दिखाती… तभी लड़की की बड़ी बहन बोली… ये भी कोई हरकत हुई लड़कों वाली… लगता हैं गंभीरता ना हैं छोरे में…

इतनी बातें सुनने के बाद चाय छानती लड़की की माँ अपना घूंघट ऊपर कर बोली… आप लोग भी तिल का ताड़ बनावे हो… लड़का फौज में हैं.. नाच गाना करने वाला नहीं… हो सके हैं घबराहट में ऐसा करें हो…. जीजी आप भी तो जब आपको जीजा जी देखने आयें थे तो पता हैं ना कैसे जीजा जी अपने हाथों को मलने में लगे थे… और आप जीजी कोई भी आयें देखने वाले तो सबसे पहले अपनी चुन्नी ही ऊंगली में फंसाती हुई मुंह में ले लेवे थी…

कितनी चुन्नी में आपकी छेद हो गए थे…और तू बबली (बड़ी बेटी) तुझे याद हैं दामाद जी जब तुझे देखने आयें थे तो कैसे अपने पैरों और जूतों को हिलाने में लगे थे.. हमें तो ऐसा लगा जैसे दामाद जी के पैरों में ही कोई दिक्कत हैं… तो आदमी वो का कहवे हैं अंग्रेजी में नार्वास (nervous ) होवे हैं तब ऐसा करें हैं.. हमें क्या भाभी.. हम तो छोरी का भला ही चाहवे हैं…

छोरी अच्छे घर पहुँच जायें बस गंगा नहावे सब… तब तक भुवेशजी भी घबराते हुए आयें… तुम लोग इतनी देर से कर क्या रही हो.. पंचायत खत्म हो गयी हो तो चाय नाश्ता लेकर चलो…पिता जी की गाली ही सुनायी देगी अगली आवाज में…

सभी औरतें पल्लूकर चाय नाश्ता लेकर बैठक में आयी… इतनी प्लेट थी नाश्तें कि एक मेज पर रखना मुश्किल हो रहा था… तभी दादा जी बोले… ऐसा करो बहू… कुछ नाश्ता मेरे पलंग पर रख दे….

नरेशजी और रमेशजी एक दूसरे का मुंह देखने लगे… तभी रमेश जी बोले… अरे इतनी चीजों की क्या ज़रूरत हैं… हम नाश्ता करके आयें हैं घर से..

तभी कड़ी आवाज में दादा जी बोले… ये भी कोई नाश्ता हैं.. नाश्ता तो हमारे ज़माने में होता था.. जब छोरी देखने कोई आवे तो वो मक्खनलाल की भट्टी में पकाया गया वो लाल लाल रबड़ी वाला दूध तांबे के ढाई सौ ग्राम वाले ग्लास में नाक तक भरके दिया जाता था… जाने कौन कौन से पकवान बनते थे 10 दिन पहले से … आजकल तो कोई कुछ करना ही ना चाहवे हैं… मन ही मन वीना जी और सभी लड़के वाले सोचने में लगे कि 20 तो घर के बने पकवानों की प्लेटें आ गयी हैं… अब क्या छप्पन भोग लगायेंगे हमें…. तभी भुवेश जी बोले… आप लोग देख क्या रहे हैं.. चाय लीजिये .. ठंडी हो जायेगी….

चाय ले तो ले कैसे… नाक तक तो भरी थी.. नरेश जी और भाई साहब सोच रहे चाय हाथ में ले कैसे… ये तो जला देगी.. फैल अलग जायेगी…

नारायण जी सभी को घूरकर देखने में लगे कि ये चाय क्यूँ नहीं ले रहे… रमेश जी ने आखिर कह ही दिया.. ज़रा कोई ग्लास ले आईये… चाय ज्यादा है सभी की …

देखा पिताजी मैने कहा था आपसे कि कप में ही चाय दो.. आप तो वो ग्लास में देने को बोल रहे थे पूरा भरकर … आजकल लोग नहीं पीते ज्यादा चाय… तभी भुवेश जी के भाई साहब बोले.. आजकल आधा कप चाय दी जाती हैं… मैने कही थी पिताजी से कि मेरा तो उठना बैठना हर जगह हैं.. एक ग्लास चाय में चार लोग चाय पी लेते हैं…

नरेशजी और रमेशजी एक दूसरे का चेहरा देखकर यहीं सोच रहे कहां आ गए… अच्छा लड़की देखने आयें…

खैर तभी बुआजी एक ग्लास लेकर आयी.. बोली… इसमें कर दो चाय आप लोग अपनी.. ज़ितनी पीनी हो रख लो… सबने राहत की सांस ली ग्लास देखकर… एक एक कर सभी कप उठा चाय ग्लास में डालने लगे…समीर का नंबर आते आते ग्लास पूरा भर गया…उमेश ने समीर की तरफ खिल्ली उड़ाते देखा.. समीर बेचारा क्या करता…

दादा जी की बड़ी बड़ी मूँछो वाला डरावना चेहरा देख चाय का कप उठा पीने लगा…. पहले ही घूट में चाय उसकी शर्ट और हाथ पर गिर गयी… दादा जी चिल्लाये… नीचे प्लेट रखकर पीनी चाहिए… जाओ बाहर नल हैं धो आओ बूषट और हाथ… हल्के रंग की हैं दाग पकड़ लेगी… उमेश छोटे भाई समीर को देख मुंह बंद कर हंसता रहा… तभी समीर उठकर बाहर आया… बुआ जी ने उसे पुराने ज़माने का काले रंग का छाता दिया ज़िसकी तीन डंडी टूटी थी…

किसी तरह बारिश में टूटा छाता ले समीर बाहर नल के पास आया.. उसे लगा नल तक पहुँचकर उसने कोई जंग जीत ली हूँ… उसने पाईप से हाथ धुला … तभी उसकी निगाह सामने त्रिपाल के नीचे बैठी शुभ्रा पर गयी… जो किताब में पढ़ने में मगन थी… समीर मन ही मन सोचा…. जिस लड़की को हम भईया के लिए देखने आयें हैं वो तैयार होने के बजाय यहां किताबों में घुसी हैं… फिर अगले ही पल वो सोचा हो सकता हैं ये वो लड़की ना हो…

हाथ और शर्ट धो वो अन्दर बैठक में आ गया…. सभी ने अभी चाय खत्म ही की थी कि दादा जी बोले… खाने की तैय़ारी हो गयी…जल्दी लाओ मेहमान भूखे होंगे 12 बज गए हैं…कहां मर गए सब…इतना नाश्ता होने के बाद खाने का सुन लड़के वाले एक दूसरे का मुंह ताकने लगे कि अब क्या खाना भी खिलायेंगे ये…

भाई साहब रमेश जी बोले… हम खाना बाद में खा लेंगे… अभी तो नाश्ता किया हैं… वैसे तो खाने का मन किसी का नहीं था पर क्या किसी की मजाल कि दादा जी के सामने खाने की मना कर दें…. किसी तरह बात को संभालते हुए रमेश जी ऐसा बोले…बिटिय़ा को बुलवा लेते अब तो ज्यादा सही रहता भुवेश जी… रमेशजी सकुचाते हुए बोले.. परदे के पीछे कान लगाती बुआ जी इतना सुन दौड़ती हुई गयी … और बोली.. छोरी तैयार हैं… उसे ले चलो… छोरे वाले बुला रहे हैं…

अन्दर से जोर जोर की आवाज आने लगी ….

भुवेश जी भी अपना डंडा संभालते हुए कमरे में आयें …

शेष आगे…

तब तक स्वस्थ रहिये .. मस्त रहिये … कहानी का आनन्द लीजिये… आखिर ये बेमेल रिश्ता होगा भी या नहीं….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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