कुंडली – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

पांच साल के बाद गीता आंटी को देखा था,करुणा ने।इस शहर में,इस अस्पताल में क्या कर रहीं हैं आंटी?वही हैं ना!क्या मैं गलती कर रही हूं?अपनी आंखों से चश्मा उतारकर साफ किया करुणा ने,दुबारा देखा। नहीं-नहीं,ये गीता आंटी ही हैं।दौड़कर मिलने जाना चाहा,पर कदम रोक लिए उसने।उन्हें दिया वचन कैसे तोड़ सकती थी वह?पलट कर खड़ी हो गई कॉरीडोर में।नाइट शिफ्ट थी,एक सप्ताह से।दिन में शायद एडमिट किया होगा मरीज को।पर किसे?

ड्यूटी रजिस्टर में साइन करके ,पंच करके रजिस्ट्रेशन काउंटर में जल्दी से पहुंच कर रजनी से एडमिशन लिस्ट चैक करने को कहा।पिछले छह दिनों की एंट्री चैक की, शर्मा परिवार के बहुत सारे मरीज थे।नजऱ दौड़ाते -दौड़ाते समीर शर्मा के नाम पर अटक गई।रजनी से डिटेल चैक करने को कहा तो उसने पूछ ही लिया”क्या हुआ करुणा?तेरे पहचान के हैं क्या कोई?”

“हम्म!अरे नहीं -नहीं।मेरे पहचान के इतनी दूर मिलिट्री हॉस्पिटल में कैसे आएंगे?”

“अब जब आता नहीं है झूठ बोलना,तो मत बोल ना।तेरे माथे पर पसीने की बूंदें बता रहीं हैं तेरी चिंता।बता ना कौन है?”

रजनी ने सही पकड़ा था।बचपन से जिस परिवार के साथ अपनेपन का रिश्ता रहा हो,उसके लिए चिंता तो दिखेगी चेहरे पर। स्पेशल वार्ड में भर्ती था समीर।पैर में चोट आई थी। सर्जरी हुई थी,दो दिन पहले ही।तुरंत डॉक्टर संदीप से जाकर पूछा समीर की हालत के बारे में,तो उन्होंने तारीफ करते हुए कहा”करुणा,क्या बहादुर फ़ौजी है?भई वाह!इसकी सर्जरी करके मुझे बड़ा गर्व हो रहा है।लंबे समय के बाद ऐसा जिंदादिल जांबाज़ दिखा मुझे।”

होगा ही गर्व,समीर था ही शुरू से जिंदादिल।संदीप सर ने ही पूछा”तुम जानती हो सिस्टर इन्हें?”

करुणा ने सच ही बोला”जी सर,इन्हीं से प्रेरित होकर ही तो मैंने मिलिट्री की नर्सिंग की परीक्षा दी।पढ़ाई कर के पास हुई।ये मेरे ही शहर के हैं।हमारे घरों में बहुत पुरानी दोस्ती थी।”

संदीप सर ने आंखें सिकोड़कर पूछा”थी,मतलब?अब नहीं है क्या?तुम्हारा परिवार तो अब भी वहीं मध्यप्रदेश में ही रहता है ना?”

करुणा ने हांथ जोड़कर कहा”सर,प्लीज़,अभी कुछ और मत पूछिए।मेरी एक विनती का मान रखेंगें क्या?”

उन्होंने एक प्रोफेशनल की तरह गंभीर होकर बोले”करुणा,पिछले पांच सालों से तुम यहां हो।तुम में हम सब एक बहन और मां को देखते हैं।यू आर सो सिन्सियर स्टाफ।बोलो क्या है तुम्हारी रिक्वेस्ट?”

करुणा ने कहा “सर,मुझे इस वार्ड में‌ शिफ्ट कर दीजिए?”मैं समीर की देखभाल करना चाहती हूं।उनके घरवालों से आप मेरा परिचय नहीं करवाएंगे।मैं उनके सामने नहीं‌ आना चाहती। प्लीज़ सर।”

“ओके,नो मैटर।मैं बोल देता हूं तुम्हारी मैट्रन से।”संदीप सर ने करुणा की बात रख ली।

करुणा ने अपने चेहरे को हमेशा मास्क में ही छिपाए रखना उचित समझा।समीर की केस हिस्ट्री पढ़ रही थी।घर पहुंचने की जल्दी में स्टेशन आते ही एक ही कंधे पर दो भारी कैरियर बैग टंगाए फूट रेस्ट में पैर रखने ही वाला था,पर गाड़ी तब तक नहीं रुकीं।बैग के वजन से उसका शरीर झुक गया और ट्रेन के नीचे ही गिर गया था।दाहिने पंजे के ऊपर से गाड़ी चली गई।वह दम साधे चुपचाप लेटा रहा।लोगों की मदद से उठकर खुद ही घर भी पहुंचा।वहां से मिलिट्री हॉस्पिटल लखनऊ लाया गया था। सर्जरी हो चुकी थी।अभी महीने भर रहना होगा।जांघ से स्किन‌ लेकर ड्राफ्टिंग होगी।उसके दस पंद्रह दिनों के बाद चलवाने की कोशिश की जाएगी।

“सिस्टर, सिस्टर।बहुत दर्द हो रहा है मेरे बेटे को।कोई इंजेक्शन तो दे सकतीं हैं ना आप?”,

गीता आंटी की आवाज कैसे भूल सकती थी वह।तुरंत अपनी भावनाओं पर काबू पाया और मेडिसिन लिस्ट में देखकर इंजेक्शन दे दिया समीर को।समीर‌ के दर्द का असर तो उसके मन को भी तड़पा रहा था।दवाइयां देकर जैसे ही पल्स चैक करने गई,समीर आंख खोलकर धीरे से कुछ बुदबुदाया।आंटी ने पास झुक कर पूछा कि क्या बोलना चाहता है बता?उसने‌ शायद‌ करुणा का नाम लिया होगा।आंटी गुस्से में भरी बोलीं”तुझे अभी भी यहां भी करुणा की याद आ रही है।मैं हूं तेरे साथ।तेरे पापा ,तेरे बेटे को लेकर‌ घर पर हैं।उनके बारे में‌ तो नहीं‌ कहता कुछ।ये करुणा जाकर भी तेरी जिंदगी से जाती क्यों नहीं।”उसने आंटी को‌पास बुलाकर फिर कुछ कहा,जिससे आंटी करुणा को‌ देखकर बोली”ये !ये तो स्टाफ है‌ यहां की।करुणा कैसे होगी?क्यों सिस्टर,आपका‌ क्या नाम है?”करुणा ने गंभीर‌आवाज में बताया”अरुणा”।आंटी खुश‌ हो‌ गई नाम जानकर उसका।पूरा दिन करुणा समीर की सेवा करती। सामान्यतः हर मरीज की सेवा की जाती है‌ नर्सों के द्वारा।पर‌ यहां बात कुछ और थी।

पंद्रह दिन के बाद संदीप सर ने एक्स-रे देखकर कहा कि रिकवरी वंडरफुल हो रही है।करुणा समय की  बड़ी पक्की है। इसके हांथ में आया कोई मरीज‌ ठीक हुए बिना वापस नहीं जाता घर।”संदीप सर करुणा के कसीदे पढ़ने लगे।आंटी ने पूछा “आपने क्या कहकर‌ बुलाया इसे ,करुणा ना?वो‌ समझ‌चुके थे‌अपनी गलती ,सुधारकर बोले अरुणा कहा था मैंने।”आंटी अब जाकर कहीं‌आश्वस्त हो पाईं।समीर को‌बीस दिन‌ हो गए थे। लखनऊ के इस मिलिट्री हॉस्पिटल में। ड्राफ्टिंग ठीक हुई थी।अब घाव सूखने का इंतजार था।करुणा ने जी जान से सेवा की ।नहलाना,खिलाना जैसे घरवालों के‌ काम भी करुणा ही करती। जानबूझकर सलाद ज्यादा डाल देती थी प्लेट में।एक दिन तो समीर ने पकड़ ही लिया था लगभग,जब मूली के टूकड़े हटाने लगी करुणा।बोला”सिस्टर, आपको कैसे पता कि मुझे मूली पसंद नहीं है?”

करुणा ने भी गजब की अदाकारी करते हुए कहा”मैं नर्स हूं ना,इसलिए।”

समीर अब धीरे-धीरे सहारे से चलने लगा था।संदीप सर के केबिन में चाय पीते-पीते अचानक आज गीता आंटी आ गईं।करुणा संभल गई थी जल्दी।आंटी ने आते ही कहा”डॉक्टर साहब ,कब तक डिस्चार्ज हो जाएगा मेरा बेटा?”वो शायद फोन पर किसी से बात कर रहीं थीं।संदीप सर ने कहा”अभी कुछ दिन तो आब्जर्वेशन में रखेंगें हम।बिना सहारे के चलने लगे,तब देखतें हैं।”उन्होंने फिर पूछा”अगले शुक्रवार को छुट्टी मिल जाए ,तो अच्छा रहेगा।”

“क्यों?,अगले शुक्रवार क्या है?”संदीप सर ने पूछा तो उन्होंने बताया कि पंडित जी ने बताया है कि शुक्रवार के बाद मंगल भारी हो जाएगा।

डॉक्टर सर ने आश्चर्य से पूछा”बेटे के डिस्चार्ज के लिए भी शुभ या अशुभ मुहूर्त होता है क्या?आप इन अंधविश्वासों को मानतीं हैं?”

करुणा आंटी के जवाब से वाकिफ थी।उससे बेहतर और कौन जान सकता होगा कि आंटी इन बातों को कितना मानती थीं।

“डॉक्टर साहब,इकलौता बेटा है मेरा।हम सबके लाख मना करने पर भी सेना में चला गया।पंडित जी ने कहा था ,यह समय भारी है।मानता कहां है?देखिए अब,क्या हालत बना ली अपनी?मां कितनी भी आधुनिक बनने की कोशिश करें,पर संतान के सुखी भविष्य के सामने सारा ज्ञान झूठा साबित हो जाता है।आप नहीं समझेंगें।आप मर्द हैं ना।”बोलते-बोलते आंसू लुढ़क रहें थे उनके गालों पर।फोन पर पंडित जी से फिर समाधान की संभावना पर चर्चा करने लगीं ,आंटी।

करुणा की ओर देखकर संदीप सर ने हंसकर कहा”करुणा,हम मर्द इतने बदनाम क्यों हैं?”

करुणा फिर अतीत के गलियारे में भटकने लगी।दस बरस की थी,जब मां चल बसी थीं।मामा जी अपने साथ ले आए थे ।मामी ने ही पाला था उसे प्यार और दुलार से।वहीं गीता आंटी का परिवार भी रहता था।मामा जी के साथ समीर के पापा की पुरानी जान-पहचान थी।सारा दिन समीर के घर पर ही बीतता था,करुणा का गीता आंटी के साथ।मामी चिढ़ाकर कहती भी थीं”गलती से तुम हमारे घर हो लल्ली।गीता भाभी के घर पैदा होना था तुम्हें।क्या मधु चटाई हैं क्या जाने?बस उन्हीं का पल्लू पकड़े चलती हो।”

करुणा से समीर चार साल बड़ा था।गीता आंटी की जान बसती थी उसमें।करुणा और समीर एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे।कभी समीर करुणा की लंबी चोटी खींचकर कहता”नीम के पेड़ की भूतनी हो तुम”कभी करुणा उसकी नाक पकड़कर कहती”,अकड़ू राम।”

निश्छल बचपन जल्दी ही विदा हो जाता है,भोर की तरह।किशोर का कौमार्य तपती दुपहरी सा तपाता है,और यौवन रात की कालिख मलने आतुर।

मामी और गीता आंटी के साथ अपना समय बिताते-बिताते ,कब करुणा यौवन की दहलीज पर आ खड़ी हुई,पता ही नहीं चला।बी एस सी में पढ़ रही थी अब।समीर ने अपने बचपन के सपने को सच करने के लिए एन डी ए में दाखिला लिया।बचपन की मासूम दोस्ती की धरती पर प्रेम का बीज स्वत:ही अंकुरित हो रहा था।दोनों परिवार में उनके संबंध में सहमति थी।

समीर और करुणा ने अपने प्रेम को संस्कारों से सींच कर रखा था।कभी परंपरा की सीमा पार नहीं की थी।दोनों ने बचपन से ही एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में मान कर रखा था।समीर के पापा करुणा से अक्सर कहते” अब समय आ गया है।मामा से हमेशा के लिए तुझे मांग लूंगा।तू मेरी बेटी बनकर रहेगी परमानेंट।”करुणा का मुंह अब ऐसी बातों से लाल होने लगता था।अचानक पता नहीं क्यों इतनी शर्माने लगी थी समीर को देखकर।पहले तो घंटों बतियाती थी,लड़ती थी,अब उसे देखते ही हटने लगी थी सामने से।समीर ने गीता आंटी को टोका भी था इस बार”मम्मी,ये नीम के पेड़ की भूतनी को क्या हुआ है आजकल?बात ही नहीं करती।बकर -बकर करके कान में आग लगा देने वाली लड़की इतनी गंभीर कैसे बन गई?मामा ने शादी तय कर दी क्या,गांव के देहाती से?”करुणा गुस्से से तमतमा जाती बस,पहले की तरह नाक पकड़ कर खींच नहीं पाती थी।आंटी हंसकर कहतीं”क्यों चिढ़ाता है उसे?बड़ी हो गई है अब करुणा।मामा ने अगर शादी तय कर दी,तो रोएगा तू ही।फिर ना आना मेरे पास शिकायत लेकर कि देखो करुणा चली जा रही मुझे छोड़कर।”

समीर गंभीर हो जाता ,झट से। सॉरी भी बोल देता करुणा से।भगवान ना करे कभी ऐसा हो।करुणा की शादी कहीं और,किसी और के साथ? नहीं-नहीं।वह तो मर ही जाएगा।कॉलोनी में समीर और करुणा को लेकर महिलाओं में खुसर-पुसर होने लगी।जवान लड़की का ऐसे दूसरे घर में सारा -सारा दिन रहना,अंकल जी की पापा की तरह सेवा करना,संस्कारों के खिलाफ लगता था उन्हें।सब ने मिलकर मोर्चा खोल दिया और धमक गईं मामी के पास”सरला,अब हांथ पीले कर ही दो करुणा के।जमाना बहुत बुरा है।कुछ ऊंच-नीच हो‌ गई तो कहीं की ना रहोगी?कुछ भरोसा है आजकल के लड़कों का?कब किसके साथ नैनमटक्का हो जाए,क्या पता?बिटिया अब जवान हो गई है।”

मामी ने करुणा को अपनी औलाद की तरह ही पाला था।करुणा ने मामी के दोनों बच्चों और घर को इतने अच्छे से संभाला था कि मामी को करुणा बड़ी कभी दिखी ही नहीं।रात को ही मामा के साथ गई गीता आंटी के घर।गीता आंटी तो करुणा को अपनी बहू मानती ही थीं।समीर की ज्वाइनिंग होने से पहले मंगनी फिर ज्वाइनिंग होते ही ब्याह होना तय हुआ।मामी ने आंखें बंद कर भगवान का धन्यवाद कहा।”लल्ली का ब्याह हो जाए,तो मैं गंगा नहा लूं। भगवान मेरी ममता पर लांछन ना लगने देना।”उस रात पहली बार गीता आंटी ने करुणा की कुंडली मांगी मामी से।मामी के पास कहां से होती कुंडली? मामा को दौड़ाया बाबूजी के पास।दूसरी शादी कर ली थी उन्होंने।कभी – कभार आते थे मिलने।मां की एकमात्र निशानी थी करुणा।ढूंढ़े नहीं मिली कुंडली,या बनी ही नहीं थी।जन्म का सटीक समय शायद मां को ही याद रहता है।उन्हें जो भी समझ आया लिखकर दे दिया मामा को।मामा ने गीता आंटी को दिया।उन्होंने अपने पंडित जी से कुंडली बनवाने की जिम्मेदारी ले ली।

समीर को बुलवाया गया था,मंगनी के लिए।उसी पुराने घर में,बचपन का वही साथी अब नया सा लग रहा था करुणा को।जैसे ही नजर मिली, शर्माकर रसोई में भागी।पंडित जी के जलपान की तैयारी हो रही थी। मुहूर्त निकालने आ रहे थे आज।करुणा की कुंडली भी लाने वाले थे।मामा – मामी,गीता आंटी,अंकल मिलकर छेड़ रहे थे समीर को।वह कनखियों से करुणा को देखकर मुस्कुरा रहा था।इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुईं।पंडित जी पधारे चुके थे।मामी और गीता आंटी आकर जलपान लेकर गईं।समीर को कमरे में भेज दिया गया।करुणा को भी निर्देश था कि रसोई से बाहर ना निकले।

आज समय कट ही नहीं रहा था।वातावरण कुछ गंभीर सा हो गया था।कुछ सुनाई भी तो नहीं दे रहा था।समीर रसोई की खिड़की में आकर कई बार बुला चुका था ,पर वह निकल नहीं पाई।

अचानक मामी ने आवाज लगाई करुणा को।उसका हांथ पकड़कर मामा-मामी समीर के घर से निकल आए।पंडित जी जा चुके थे।करुणा को इतना तो समझ आ रहा था कि कुछ अनिष्ट हुआ है। चुपचाप घर पहुंची और कमरे में चली गई।बाहर मामा -मामी की जोरदार बहस चलने लगी।”पहले नहीं सोचा कुंडली मिलाने का।अब होश आया है,गीता भाभी को।क्या मुंह दिखाएंगे मोहल्ले में।हंसेंगे सब हम पर।मंगली है ,तो हो चुकी शादी।मेरे लिए तो बेटी ही है,पर बाकी बच्चों की शादी में भी अड़चन आया तो?क्या करेंगें अब हम?”मामी छाती पीट रही थीं।मामा अपना गुस्सा निकालते हुए बोले”सर्व गुण संपन्न है हमारी लल्ली।पंडित जी के बोलने से हम कैसे मान लें कि अपशकुनी है?तुम ऐसी बात ना करना उसके सामने।भगवान के लिए चुप हो जाओ भाग्यवान।”

करुणा अब समझ गई थी पूरा माजरा।कुंडली का कमाल था यह।सुबह चुपचाप नाश्ता कर कॉलेज के लिए निकली तो बस स्टॉप पर ही समीर खड़ा था बाइक पर।नजरों से इशारा कर बैठने के लिए कहकर बाइक स्टार्ट कर दी उसने।करुणा चुप थी।मंदिर के सामने रूककर समीर ने कहा”सुनो करुणा,हम आज ही शादी कर रहें हैं।इसी मंदिर में।ये कुंडली-वुंडली नहीं मानता मैं।तुम्हारे सिवा कुछ और सुख नहीं चाहा मैंने।तुमसे शादी करके अगर मुझे मरना भी पड़े तो भी मैं तुम्हीं से शादी करूंगा।मैंने तुम्हारे सिवा कभी कुछ और नहीं मांगा है भगवान से।इतने साल साथ रहकर जब मेरा कोई नुक्सान नहीं हुआ,तो शादी करके कैसे होगा?मां को पता नहीं क्या पट्टी पढ़ाई है पंडित ने।टस से मस नहीं हो रही।तुम्हें प्यार करती है पर स्वीकार क्यों नहीं कर पा रही?हम आज ही शादी करेंगे समझी।चलो।”

आज समीर का यह रूप पहली बार देखा था करुणा ने।सेना में जाकर वाकई में बहुत संजीदा हो गया था।करुणा ने हांथ झटक कर कहा”समीर,पागल हो गए हो क्या? ऐसे अपने परिवार के खिलाफ जाकर शादी करने का सपना तो नहीं देखा था हमने।आंटी, मां हैं तुम्हारी ही नहीं मेरी भी।अपने इकलौते बेटे के जीवन के साथ खिलवाड़ क्यों करेंगी भला वो?जब तक पता नहीं था,और बात थी।अब जानबूझकर तुम्हारे जीवन को समाप्त नहीं कर सकती मैं।मुझसे शादी करके,तुम अपने जीवन से हांथ नहीं धो सकते।हमारा मिलना शायद ईश्वर को मंजूर नहीं।”

” अच्छा,तो फिर तुम आती ही नहीं मामा के साथ यहां।हम मिलते ही नहीं।ये सब अंधविश्वास है।”समीर रोने लगा था।रोना तो करुणा को चाहिए था,औरत थी वह।यहां तो सेना का जवान ,एक पुरुष रो रहा था। नहीं-नहीं वह कमजोर नहीं पड़ेगी।बहस में कभी जीत नहीं पाएगी,इस अकड़ू से।समाधान एक ही था।समीर का हांथ पड़ कर मंदिर के अंदर गई करुणा।भगवान शिव के सामने ,जहां कई बार समीर की वामांगिनी रहकर पूजा की थी,जलते हुए दीपक के ऊपर अपना एक हांथ रखा उसने और समीर का हांथ अपने सर पर।यह ही आखिरी ब्रह्मास्त्र था उसके पास।”समीर तुम्हें मेरी कसम है,मैं भगवान को साक्षी मानकर शपथ लेती हूं,अब हम कभी नहीं मिलेंगे।तुमने यदि प्रेम किया है मुझसे,तो बिना बहस किए घर लौट जाओ।जहां आंटी कहे,वहीं शादी करोगे।हम आखिरी बार मिल रहें हैं,समझ लो।”करुणा की आवाज में पता नहीं इतनी ताकत कहां से आ गई थी।

“तुम,तुम ये क्या बोल रही हो,करुणा?जी सकोगी मेरे बिना तुम?बोलो।कल्पना भी नहीं कर सकती तुम,कितनी तकलीफ़ होगी दोनों को।ऐसा मत करो करुणा, प्लीज़।”समीर को पहली बार गिड़गिड़ाते देखा करुणा ने।नहीं,वह कमजोर नहीं पड़ेगी।एक मां की ममता को कैसे हारने दे सकती है?प्रेम स्वार्थी तो नहीं होता।करुणा को अपने फैसले से ना डिगते देखकर समीर भी हैरान था।इतनी जल्दी इतने सालों के प्रेम को नकार रही थी करुणा।यह औरत का कौन सा रूप है?”

समीर कुछ देर चुप रहा फिर,बाहर निकल आया।बाइक स्टार्ट करके इंतज़ार करता रहा,पर करुणा नहीं निकली बाहर।कई बार हॉर्न बजाया रहा लगातार,करुणा आज अपने मन से लड़ रही थी।काफी देर रुककर समीर जा चुका था।करुणा ऑटो पकड़कर घर आ गई। सामान्य दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी, ईमानदारी से।आज मामी भी नजर चुरा रही थी,पहली बार उससे।रात को ही आंटी घर आईं।यह अप्रत्याशित नहीं था।समीर वापस जा रहा था।आंटी जानती थीं कि उसे करुणा ही मना सकती है।

आज आंटी याचक बनकर हांथ जोड़कर कहा रहीं थीं”मुझे माफ़ कर दे करुणा।भगवान जानता है,मैंने तुझे हमेशा अपनी बहू ही माना है।मेरे बेटे का तू कभी बुरा नहीं कर सकती।पर क्या करूं? मां हूं ना।इकलौता है समीर।हमारे बुढ़ापे का वही एक सहारा है।पांच बच्चों को खोकर उसे पाया है।पंडित जी की कोई बात कभी झूठी नहीं निकली।अब कैसे नकार दूं उनकी गणना?मैं तेरे आगे हांथ जोड़कर अपने बेटे की भीख मांगती हूं तुझसे लाडो।मेरे समीर को रोक ले।अब अगर गया तो फिर शादी का मुहूर्त नहीं है अगले दो साल तक।मेरे बेटे का घर बसा दे करुणा।भगवान ने चाहा तो तुझे भी अपना साथी जरूर मिलेगा।अगर मंगल का दोष ही होता तो ,पूजा करवा लेती।सीधा उसकी जान पर घात है,तुमसे शादी।कैसे मान लूं मैं मां होकर?”

करुणा ने गीता आंटी की आवाज में एक बेबस मां की बेबसी महसूस की।उनसे लिपट कर बहुत रोई।वो भी रो रहीं थीं साथ में बिलख – बिलख कर।आंखों ही आंखों में करुणा ने आश्वस्त किया उन्हें।अगली सुबह समीर से मिलकर उससे शादी करने का वचन ले ही लिया।समीर को मनाना आता था उसे,बचपन से यही तो करती आई थी। आनन-फानन में शिखा के साथ समीर की शादी हो रही थी।यहां करुणा ने सेना की नर्सिंग का बॉन्ड भर दिया।दूर चली जाएगी,मामा के परिवार के ऊपर अपने दुर्भाग्य की काली छाया नहीं पड़ने देगी।

जिस दिन शादी होनी थी,करुणा जा चुकी थी।समीर की प्रतीक्षारत आंखें पीछा करती रहीं उसका पुणे तक।समीर के खुशहाल जीवन से बड़ा वरदान और क्या हो सकता है उसके लिए? अच्छा ही हुआ,पहले बन गई कुंडली।बाद में तो कुछ किया ही नहीं जा सकता था।समीर की पोस्टिंग हो गई थी देहरादून में।कसम देकर कभी बात ना करना भी मनवा चुकी थी वह।

शिखा से मिली थी एक बार।अच्छी जोड़ी थी दोनों की।पिछले साल ही पता चला कि शिखा की बच्ची को जन्म देते समय मौत हो गई।समीर को देखकर अवाक रह गई।सारे अनुष्ठान किए उसने,चुपचाप।लग इस समीर को तो जानती ही नहीं थी।छोटी शिखा बिल्कुल अपनी मां पर गई थी।

ओह!!!!इतनी देर हो गई।बाप रे!!!

गीता आंटी की जोर – जोर से फोन पर चिल्लाने की आवाज सुनकर मानो अतीत की गहरी नींद से जागी करुणा।

“क्या बोल रहें हैं आप?ऐसा कैसे हो सकता है? इतनी बड़ी ग़लती कैसे कर सकते हैं महाराज जी।इतना बड़ा अनर्थ करवा दिया मुझसे।सुनिए ना,आप सच कह रहें हैं ना?हे भगवान!!!!मेरे पाप का कोई प्रायश्चित ही नहीं।”,गीता आंटी का बिलखना सुनकर वार्ड में अफरातफरी मच गई।समीर भी डर कर आवाज दे रहा था मां को।संदीप सर को किसी ने खबर दी तो उन्होंने आकर संभाला आंटी को। कुर्सी पर बिठाया।करुणा ने जल्दी से पानी का गिलास पकड़ाया।पानी पीकर सहज होने की कोशिश में वे संदीप सर से विनती कर बोलीं”डॉक्टर साहब,आप लोग तो बीमार मरीज को ठीक कर देखें हैं।तन के घाव की मरम्मत कर खड़ा कर देते हैं।मन के घाव का इलाज है क्या आप लोगों के पास?मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया।”संदीप सर समझ पाते इसके पहले ही दौड़कर वो समीर के पास जाकर बिस्तर में गिरकर रोते हुए बोली”समीर,तू सही था रे।करुणा मनहूस नहीं थी।मंगली नहीं थी।जन्मसमय में थोड़ी गलती की वजह से कुंडली बनाने में महाराज जी से गलती हो गई थी रे।तेरी कुंडली में दोष था।तुझसे शादी होने पर पत्नी की मृत्यु निश्चित थी।गलती से करुणा के ऊपर यह दोष लग गया।मुझे माफ़ कर दे बेटा।मैं अंधी हो गई थी,मोह में।महाराज जी को भगवान का दर्जा दे दिया था मैंने।करुणा जैसी निष्पाप बच्ची का दिल दुखाया है मैंने।मुझे जो चाहे सजा दे।मुझे सजा दे बेटा।”गीता आंटी समीर से लिपटकर रो रहीं थीं।करुणा वहां नहीं खड़ी रह सकी।संदीप सर की अनुभवी आंखों ने सब समझ लिया था।

अगले दिन समीर को छुट्टी मिल रही थी।अंकल ने गाड़ी भेजी थी।समीर चुपचाप निस्तेज व्हील चेयर पर बैठे नीचे आया।करुणा ने जानबूझकर आज छुट्टी ले ली थी।कैसे देख पाएगी,दोबारा समीर को ज़िंदगी से जाते हुए।खिड़की से देखने का साहस भी नहीं जुटा पा रही थी। हॉस्पिटल के कैंपस में ही मिला था क्वार्टर।घड़ी देखकर अंदाजा लगा रही थी करुणा।अब तक तो चले गए होंगे आंटी लोग।

आज इस बात की खुशी भी नहीं हो रही थी कि उसकी कुंडली दोषरहित थी।आंखों से ये आंसू भी ना,अकारण ही बहने लगते हैं।मन को मजबूत करती हूं तो ये कमजोर कर देतें हैं।

तभी डोरबैल बजी।दरवाजे पर रजनी खड़ी थी।”चल ,संदीप सर बुला रहें हैं तुझे?”हांथ पकड़कर बोली वह।करुणा चाहकर भी कारण नहीं पूछ पाई। हॉस्पिटल के मेन गेट में ही खड़े थे सर।ये क्या पास ही में समीर की गाड़ी खड़ी थी।संदीप सर के पीछे से गीता आंटी निकलकर भागती हुई आईं और करुणा को सीने से लगा लिया।बोलीं”मेरा मन कहता रहा कि तुम करुणा ही हो।मैं कैसे तुम्हें पहचान नहीं सकी,करुणा?आज तुम्हारे डॉक्टर साहब ने मेरे बेटे के साथ मेरे मन का इलाज भी कर दिया।मुझे पश्चाताप करने का मौका दे दिया।मेरे समीर को तूने अपनी सेवा से ठीक कर दिया रे।तू तो सावित्री हैं,और मैंने तुझे अपशकुनी कहा।तेरी मामी के मन में भी जहर घोल दिया।मुझे माफ़ कर दे।”

“नहीं-नहीं आंटी।आप मत माफी मांगिए।”संदीप सर ने कहा”करुणा ,अब बहुत हुई ड्यूटी।समीर को तुम्हारी जरूरत है।मैंने छुट्टी सैंक्शन कर दी है,जाओ तुम।”

करुणा में गाड़ी में झांका तो,समीर की बुझी हुई आंखों में अपमान और ग्लानि की छाया दिखी।बस इतना ही बोला”अच्छा हुआ,मुझसे शादी नहीं‌ की तुमने,वरना तुम्हें मरना पड़ता।”करुणा के पहले गीता आंटी ने उसके मुंह पर हांथ रख दिया।गाड़ी चल दी।करुणा अपने पुराने गंतव्य पर पुराने साथी के साथ जा रही थी।

होली के पहले करुणा अब मिसेज समीर बन चुकी थी।मंदिर में उसने समीर से जबरदस्ती शादी की।छोटी शिखा को भी तो  संभालना था।प्रेम उम्र के इस पड़ाव में जिम्मेदारी के रूप में वापस आया था।अब कुंडली के दोष में नहीं और नहीं पड़ने देगी किसी को।ईश्वर की दुनिया,विधान भी उन्हीं का।

शुभ्रा बैनर्जी

2 thoughts on “कुंडली – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi”

  1. बहुत सुंदर कथानक। यह प्रतिदिन हो रहा है।ऐसा नहीं कि ज्योतिष सच नहीं पर क्या सही जन्मसमय के आधार पर कितनी कुंडलियां बनती है। फिर क्या सही रूप से ग्रह मिलान होता है।आजकल तो मुश्किल से दस मिनट में ग्रह मिलान कर दिया जाता है।और अधिकतर पण्डितोंको इस वृहद ज्ञान ही नहीं। वह क्या कुंडली मिलाएंगे। अतः जीवन में इस प्रकार के निर्णय काफी सोच-विचार से लेने चाहिए।
    लेखक को मेरा साधुवाद।

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  2. जी को छू लिया क्या

    अंदर तक चली गई कहानी

    सभी किरदार और समीर का अरुणा को अरुणा पुकारना और अरुणा का उसकी सेवा करना ….गहन ग़ज़ब💕💕💕

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