कृष्णा दीदी, एक मुसीबत – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ओफ्फ ओ आज कृष्णा दीदी फिर आ गई क्या मुसीबत है अर्चना बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई ।इतने में नीरज की आवाज आई अर्चना जरा चाय बनाना दीदी आई है ।

                   चार भाई और तीन बहनों में कृष्णा दीदी दूसरे नंबर की बहन थी और नीरज सब भाई बहनों में सबसे छोटा था ।नीरज और कृष्णा दीदी में उम्र का इतना अंतर था कि नीरज के बराबर कृष्णा दीदी का बेटा था।जब तब कृष्णा दीदी टपक पड़ती थी। नीरज के दो बड़े भाई दूसरे शहर में थे लेकिन नीरज

 से जो बड़ा भाई था वो और नीरज एक ही शहर 

में थे ।

              कृष्णा दीदी नीरज के घर से 150 किलोमीटर की दूरी पर कानपुर में रहती थी । उनके तीन बेटियां और एक बेटा था ।घर में रूपये पैसे की कोई कमी न थी लेकिन कंजूस इतनी कि किसी पर क्या अपने ऊपर भी जल्दी एक पैसा खर्च नहीं कर सकती थी ।वो महीने दो महीने में नीरज के घर चक्कर लगाती रहती थी।नीरज की अभी कच्ची गृहस्थी थी दो छोटे बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी। बेटी साढ़े तीन साल की थी और बेटा अभी दो साल का था। सीमित आय थी छोटी सी नौकरी में घर चलता था । अर्चना काफी समझदार और एक सुघड़ महिला थी सो वो कम पैसों में ही घर को अच्छे से मैनेज कर तीन थी । बिना नौकर चाकर के घर अच्छे से संभालती थी ।

               नीरज कि बड़ा भाई अजय जो उसी शहर में रहता था उनके पास पैसा था और उनके घर नौकर चाकर लगे हुए थे। कृष्णा दीदी जब भी आती उनके घर भी रहती थी लेकिन अजय भइया की पत्नी काफी तेज स्वभाव की थी तो ज्यादा दिन दीदी रह नहीं पाती थी लेकिन रहना वहीं चाहती थी क्योंकि नौकरों से आराम जो था।जब अर्चना कहती दीदी चलो हमारे घर भी रह लो तो कृष्णा दीदी बोलती अरे तुम्हारे घर तो कोई नौकर नहीं है यहां पर आराम है तो अर्चना को बहुत बुरा लगता था।

             एक बार कृष्णा दीदी अजय भइया के यहां आई तो बीमार हो गई उनको अस्थमा था उसका अटैक पड़ गया अपने पास रखी हुई दवा खाई लेकिन उससे आराम नहीं पड़ा ।तो अजय ने दीदी को नीरज के घर छोड़ दिया कि दीदी को डाक्टर को दिखा दो ।अब पता है कि नीरज की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है फिर भी,अब मरता क्या न करता।नीरज ने डाक्टर को दिखाया और जो भी टेस्ट करवाने को कहा वो भी कराया और ठंड से बचने को और आराम करने को कहा।अब तो कृष्णा दीदी नीरज के घर टिक गई जो एक दिन भी नहीं आती थी अब पंद्रह दिन से ज्यादा हो गए पर आराम से पड़ी रहती। जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।और कहती नीरज तुम मेरा अच्छे से इलाज करवा दो सारे पैसे मैं तुम लोगों को बाद में दे दूंगी । अर्चना उनसे बहुत चिढ़ती थी जब कहते थे कि दीदी हमारे घर भी रह लो तो कहती तुम्हारे घर नौकर नहीं है और कभी इनके घर जाओ तो ढंग से खाने को भी नहीं पूछती है और यहां इतने दिनों से पड़ी है ।

             और अब तो जब भी आती मेरे घर ही आती क्योंकि अर्चना ढंग से उनकी सेवा कर देती है ।और कृष्ण दीदी की आदत थी कि जब भी आती कुछ न कुछ सामान की लिस्ट बना कर ले आती नीरज हमें ये दिला दो वो दिला दो हम तुम्हें सब पैसे दे देंगे लेकिन कभी कोई पैसा नहीं निकलता था ।अब बताओ उनके शहर में नहीं मिलता है क्या। पैसे की कमी हो तो भी बनता है लेकिन उनके पास पैसे की तो कोई कमी थी नहीं।और नीरज के पास एक सीमित आय थी जिससे घर ही तरीके से चल जाए वही बहुत था।

                जब कृष्णा दीदी अर्चना के घर पर रहकर इलाज करवा रही थी तो अर्चना की बेटी का जन्म दिन पड़ा तो कृष्णा दीदी ने एक सौ का नोट तक न रखा बेटी के हाथ में लेकिन बस लेने के लिए आ जाती है। इसी लिए अर्चना चिढ़ती है कि बस लेने के लिए आ जाती है ये दिला दो वो दिला दो।बेटे के बराबर भाई से पैसे खर्च कराती रहती है पता है कि उसकी स्थिति इतनी अच्छी नहीं है । तभी अर्चना कहती हैं कि क्या मुसीबत है ।आज तक उनकी इलाज में जो पैसा खर्च हुआ था नहीं निकला देने को । ऐसे लोगों का आना एक मुसीबत ही तो है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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