किस्मत का खेल…(भाग 2)- रश्मि झा मिश्रा:Moral stories in hindi

ट्रेन स्टेशन पर रुकी तो अंधेरा हो चुका था…. नरोत्तम जी बच्ची का हाथ पकड़ घर की तरफ बढ़े… अंधेरे में कदम बढ़ाते उन्होंने कहा…” अरे बेटा तुम्हारा नाम तो पूछा ही नहीं… क्या नाम है तुम्हारा…”

 लड़की ने चेहरा उठाकर नरोत्तम जी की तरफ देखते हुए कहा…” मालूम नहीं….. नई मां तो कलमूंही ही कहती थी… आप भी बोल लेना…!

 नरोत्तम जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा…” आज से तू मेरी गुड़िया है… कोई नाम पूछे तो गुड़िया ही कहना… और सुन गुड़िया किसी से अपने पुराने घर की बातें ना करना…. जो कहना हो मुझसे ही कहना… ठीक है ना… जख्मों को बार-बार कुरेदने से क्या लाभ…. मैं हूं तेरा दादू…. बस इतना याद रख…. ठीक है ना…!

 गुड़िया ने हां में सर हिला दिया….!

 नरोत्तम जी ने सभी से सच ना बोलने का फैसला किया… क्योंकि सच बतलाने से गुड़िया की जिंदगी यहां भी मुश्किल हो जाती…. और जिस सच से किसी का भला न हो उसे बोलने से क्या लाभ….!

 घर पहुंचे तो बेटे, पोते, बहू सब दरवाजे पर ही खड़े मिल गए…. एक तरह से पूरे गांव का जमावड़ा हो रखा था…. उन्हें देखते ही बेटों ने सवालों की झड़ी लगा दी….” कहां चले गए थे… ? ऐसे भी कोई जाता है…. बिना बताए…. कब से इंतजार कर रहे हैं….!

 नरोत्तम जी कुछ देर शांत रहे…. कुछ कहते… इससे पहले ही पोता विष्णु बोल पड़ा….” यह कौन है दादू…? यह किसे ले आए…?

 नरोत्तम जी ने झुक कर पोते के सर पर हाथ रखा और कहा….” बेटा आज से यह हमारे साथ ही रहेगी…. इसका नाम गुड़िया है… इसके दादाजी मेरे मित्र थे… इसके परिवार में अब इसे देखने वाला कोई ना रहा… सभी का देहांत हो गया…. बेचारी बच्ची अकेले पड़ गई… इसे कहां छोड़ आता समझ ना आया…. इसलिए साथ ले आया…. तुम रखोगे ना इसे अपने साथ….!

 विष्णु की उम्र 10 साल के लगभग थी…. वह बाकी बच्चों में सबसे बड़ा था…. उसने आगे बढ़कर गुड़िया का हाथ पकड़ा…. और कहा…. “हां दादू “!

अब नरोत्तम जी अपने बेटों की तरफ मुखातिब होकर बोले…. मेरे मित्र का फोन आया था… कुछ दिन पहले की वह बहुत बीमार है मैं आकर थोड़ा मिल जाऊं… मैंने सोचा चला जाऊंगा… आज अचानक सुबह उसके मौत की खबर सुन रुक ना पाया… भाग कर निकल गया… इसलिए किसी को कुछ बता भी ना पाया…. यह उनकी पोती है… इसकी जिम्मेदारी भी लेकर आया हूं….

 तुम लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए…. क्योंकि चाहे तुम लोग कितने भी बड़े क्यों ना हो…. घर तो मेरा ही है…. है ना….!

 नरोत्तम जी ने इतनी सधी हुई भाषा में…. कड़े लहजे में…. यह बात कही कि किसी की कुछ आगे पूछने या कहने की हिम्मत ना हुई….!

 रात का खाना नरोत्तम जी ने गुड़िया को अपने पास बिठाकर खिलाया….

 गुड़िया बच्ची थी लेकिन बहुत होशियार थी…. घर के सारे काम तो उसे उसकी नई मां ने ही सिखला दिए थे…. तो यहां आकर वह पूरे लगन से दिन भर दोनों बहुओं के हाथ बटाती… इतना काम करने वाली लड़की उन्हें कहां मिलती…. उनके अपने बच्चे तो गधों की तरह दिन निकलने तक पड़े रहते थे… वहीं यह बच्ची सुबह से सबके इशारों पर नाचने लगती…

 कुछ ही दिनों में उसने सबका दिल जीत लिया…. बिना पैसे की नौकरानी…. जो केवल खाना पानी पर काम करे…. उन्हें कहां मिलती….

 पर यह बात नरोत्तम जी को अखर रही थी…. वह मन ही मन सोचते…. यह तो मैंने सही नहीं किया…. यह बेचारी तो दिन रात घर के कामों में ही लगी रहती है…. 

 अब दोनों बहुओं का दिन बंट गया था ससुर जी की सेवा, खाना पीना सबका प्रबंध करने का… तो जिस दिन जिस बहू की पाली रहती… उस दिन गुड़िया भी दिन भर उसी के आगे पीछे डोलती रहती… जिससे नरोत्तम जी को भी समय पर बढ़िया खाना मिलने लगा था… लेकिन इन सब बातों के बावजूद गुड़िया का दिन भर केवल काम में लगे रहना उन्हें नहीं सुहाता था….

इसी तरह करीब महीना गुजर गया…. नरोत्तम जी सोच ही रहे थे कि इसका कुछ समाधान निकालें की एक दिन उनकी बेटी मायके आई…. आते ही पिताजी को सुना कर बोली…” क्या पिताजी आपने तो भाभियों को बिना पैसे की कितनी अच्छी कामवाली ला दी है…. एक मुझे भी ला दीजिए ना….

 नरोत्तम जी के सब्र का बांध टूट गया… उन्होंने उसी दिन सभी बच्चों को इकट्ठा किया… और घोषणा कर दी… “कल से गुड़िया भी स्कूल जाएगी…. बाकी बच्चों के साथ”…. 

सुनकर तो बहुओं को आग लग गई… “वाह बाबूजी यह स्कूल जाएगी तो फिर सुबह-सुबह से हमारे काम कौन करेगा….?

 नरोत्तम जी ने जी कड़ा कर कहा…” गुड़िया स्कूल जाएगी तो जाएगी… बस…. उसे मैं यहां तुम्हारे काम करने नहीं लाया…. हां पढ़ाई से जो वक्त मिले तो काम करे…. अपनी खुशी से…. तो …मुझे कोई एतराज नहीं…. लेकिन अगर जबरदस्ती किसी ने उससे काम करवाने की कोशिश की तो फिर देख लेना….!

 गुड़िया सहमते हुए बोली….” लेकिन दादू मैं क्या करूंगी पढ़कर….. मुझे तो कुछ भी नहीं आता… पढ़ना लिखना…?

 नरोत्तम जी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा… मेरी गुड़िया तू सब सीख जाएगी…. तू है ही इतनी होशियार….।

 फिर एक बार चेतावनी के लहजे में दोनों बहुओं से बोले…” ध्यान से सुन लो… अगर किसी को मेरी बात में आपत्ति हो… या पसंद ना आए… तो वह ये घर छोड़कर जा सकता है…. गुड़िया मेरी जिम्मेदारी है… मैं उसे पढ़ा लिखा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं…. मैंने इतने दिन तुम लोगों को मनमानी करने दी… पर अब नहीं….!

 हर परिस्थिति में चुपचाप समझौता करने वाले अपने ससुर जी का यह रूप उन्होंने कभी ना देखा था…. उन्हें लगता था कि अब भी वह कोई तीसरा रास्ता निकालेंगे… लेकिन इस बार उनकी बात सुन उन्हें एहसास हो गया कि अब क्या करना है…

 दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगीं …

दूसरे दिन गुड़िया का एडमिशन उसी स्कूल में हो गया जहां बाकी बच्चे जाते थे….!

 नरोत्तम जी की धमकी का असर यह हुआ की. …गुड़िया को भी बाकी बच्चों की तरह टिफिन बॉक्स में भरकर गरमा गरम खाना मिलने लगा….

 सब कुछ सही से चलने लगा… दोनों बहुओं की पारी बंध गई थी तो अब झक मार कर वे भी अपना काम सही से करने लगीं….

 गुड़िया अभी भी पढ़ाई से समय निकाल उनकी मदद करती थी….!

 एक दिन नरोत्तम जी ने गुड़िया को अपने पास बुलाया और कहा…” देख बेटा मैं चाहता हूं कि तू खूब पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए… जिससे किसी को भी तेरे बीते कल से कोई लेना देना ना रहे…. करेगी ना मेरा सपना पूरा…. अपने दादू का सपना पूरा….।”

 “हां दादू …!बोलकर गुड़िया दादू के सीने से लग गई….।

       रश्मि झा मिश्रा

पहला भाग

किस्मत का खेल….. – रश्मि झा मिश्रा:Moral stories in hindi

जिन्हें यह कहानी प्रथम भाग में अधूरी लगी थी… उनके लिए यह आगे की कहानी है… अगर अब भी कुछ अधूरा लगे तो मैं बताना चाहती हूं की पढ़ लिखकर जब गुड़िया एक जिम्मेदार नागरिक बन जाएगी तब किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता… वह कहां से आई है… और उसका भविष्य क्या होगा…. यह उसका विद्याधन और समझदारी निश्चित करेंगे….. धन्यवाद

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