किस्मत का खेल (भाग 2)  : Moral stories in hindi

अशोक जी बोले हां बेटा बस हो गया और फिर अपने कमरे में जाकर उनकी पत्नी की तस्वीर भी ले आए और उन्होंने वह तस्वीर भी अपने सामान के साथ रख दी !! कुछ देर बाद राजीव और रोमा कार में अशोक जी को लेकर रवाना हो जाते हैं !!

राजीव एक बड़े से वृद्धाश्रम के सामने अपनी कार रोकता हैं और कहता हैं पापा चलिए उतर जाइए यहां , आपका ठिकाना आ गया हैं !!

बेटा , यह कहां ले आए हो तुम दोनों मुझे ?? यह तो वृद्धाश्रम हैं !! तुम तो कह रहे थे कि बहुत दिनों से चाचा जी मुझे याद कर रहे हैं, इसलिए थोड़े दिन मुझे मेरे भाई के यहां छोड़ने जा रहे हो… फिर गाड़ी यहां क्यूं रोक दी तुमने ?? अशोक जी ने वृद्धाश्रम को देखकर अपने बेटे राजीव से पूछा !!

राजीव बोला पापा मैं आपको वृद्धाश्रम ही छोड़ने आया हुं , आपका कोई भाई – वाई आपको याद नहीं कर रहा हैं। मगर यदि कल आपको बता देता कि आपको वृद्धाश्रम चलना हैं मेरे साथ, तो शायद आप आने के लिए तैयार ना होते। इसलिए आपको बिना बताए मुझे यह कदम उठाना पड़ा !!

कार में आगे की सीट पर राजीव के बगल में बैठी हुई राजीव की पत्नी रोमा बोली – पापा जी, टाइम वेस्ट मत किजिए और कार से जल्दी उतर जाईए , हमें आपको छोड़कर पार्टी में जाना हैं। हमारे दोस्त हमारा इंतजार कर रहे होंगे !! पहले से आपने हमारा बहुत टाइम वेस्ट कर दिया हैं , पहले आपको अपने कपड़े नही मिल रहे थे , फिर आपको अपना टूथब्रश याद आया और निकलते समय मम्मी जी की तस्वीर याद आई !! एक – एक सामान याद करने और लेने में आपने हमारी पहले ही बहुत देरी करवा दी हैं !!`

अशोक जी गाड़ी में बैठे बैठे गिड़गिड़ाते हुए बोले यह तुम लोग मेरे साथ अच्छा नहीं कर रहे हो , मुझे मेरे भाई का नाम लेकर वृद्धाश्रम छोड़कर जा रहे हो , राजीव क्या नहीं किया मैंने तुम्हारे लिए , बचपन में तुमने जो मांगा वह दिया ,अपनी पाई – पाई जोड़कर तुम्हारे भविष्य के लिए बचाया और तुम मेरे सगे बेटे होकर मुझे यहां छोड़ने आए हो !!

राजीव बोला पापा वैसे भी क्या कर दिया हैं आपने मेरे लिए… पढ़ा- लिखाकर बड़ा करना हर मां – बाप का फर्ज होता हैं !!अब इस उम्र में आपके लिए यही सही जगह हैं , फिक्र मत किजिए थोड़े दिनों में यहां आपके दोस्त बन जाएंगे… फिर आपका यहां मन लग जाएगा , वृद्धाश्रम ही आप जैसे बुढों के लिए सही जगह हैं !!

अशोक जी बोले मुझे नहीं चाहिए बेटा दोस्त – वोस्त , मुझे तो बस मेरे बच्चों के साथ रहना हैं। मुझे तो मेरे घर रहना हैं बस , मुझे घर वापस ले चलो बेटा !!

रोमा बोली पापाजी कौन सा घर ?? अब वह आपका घर नहीं हैं समझे !! अब वह घर हमारा हैं , आप यहां आराम से रहीए और हमें वहां आराम से रहने दिजिए… ताकि हम अपने घर में भी दोस्तों को बुलाकर पार्टी कर सकें… वैसे भी आपको तो यह पार्टीस वगैरह पसंद नहीं इसलिए आपके लिए यही जगह सही हैं !!

राजीव भी रोमा की हां में हां मिलाते हुए बोला – हां पापा, हमारे घर में भी अबसे ज्यादातर पार्टीस होंगी और हमें उसमें कोई रुकावट नहीं चाहिए इसलिए बेहतर हैं आप यहां रहें !!

अशोक जी बोले क्या इसी दिन के लिए मां-बाप औलाद को इतना बड़ा करते हैं राजीव ?? राजीव ने कार में से उतरकर पीछे वाली डिक्की खोली और पापा का सामान निकालकर नीचे फेंक दिया और दोनो हाथ जोड़कर बोला आप जाईए अंदर, ताकि हम भी यहां से जल्दी जा सकें !!

रोमा बोली ओर कितना टाइम वेस्ट करेगा यह बुड़ढ़ा हमारा पता नहीं, जल्दी उतर बुड्ढे , वर्ना सामान के साथ तुझे भी कार से नीचे फेंक दूंगी समझा !! अशोक जी बेटे – बहू का ऐसा व्यवहार देखकर दंग रह गए और चुपचाप कार से उतर गए !! जैसे ही वे कार से उतरे राजीव ने झटके से अपनी गाड़ी घुमाई और वहां से चला गया !! रोमा बोली अच्छा हुआ…. हमेशा के लिए बला टली !!

अशोक जी ने अपना नीचे पड़ा सामान उठाया और भीगी पलके लिए अंदर वृद्धाश्रम में चल पड़े !! अंदर से एक सहकर्मी आया और उसने अशोक जी के हाथ से सामान ले लिया !!

सहकर्मी से अशोक जी के आंसू छुप ना सकें वह बोला – बाबु जी, रोईए मत यहां आपके जैसे हज़ारों वृद्ध हैं। जिनको अपने बेटे – बहू ने अपने ही घर से बेदखल कर दिया हैं !! जब यह वृद्धाश्रम इतने बूढ़ों का भार उठा रहा हैं तो आपका भी उठा ही लेगा !! अशोक जी ने पूछा – बेटा तुम्हारा नाम क्या हैं और तुम कितने सालों से यहां काम कर रहे हो ??

सहकर्मी बोला मेरा नाम राघव हैं बाबु जी, और मैं पांच सालो से यहां सभी की सेवा ककर रहा हुं !! सच कहुं तो सभी को यहां देखकर बहुत दुःख होता हैं और मुझे यह बात सोचने को मजबूर कर देती हैं कि कैसे कोई अपने ही मां – बाप को वृद्धाश्रम छोड़ सकता हैं। वैसे बाबु जी आप मुझे अपना ही समझना और कोई भी काम हो तो मुझे आवाज देना !! राघव अशोक जी को उनका कमरा दिखाते हुए बोला – आप अंदर जाइए बाबुजी , मैं आपके लिए अभी चाय लेकर आता हुं !! अशोक जी अंदर कमरे में जाकर बैठ गए !! 

अशोक जी कमरे के पलंग पर बैठकर सारी पिछली बातों को याद करते हुए रो ही रहे थे कि राघव उनके लिए चाय लेकर आ गया !!

उनकी आंखों में आंसू देख वह बोला बाबुजी आपके साथ ऐसा क्या हुआ जो आप यहां तक पहुंच गए !! अशोक जी बोले -राघव, मेरी पत्नी का निधन हुए दो साल हो चुके हैं , मेरी पत्नी गोदावरी के निधन के बाद मैं ज्यादा बीमार ही रहने लगा ……….

मुझसे दो रोटी भी ना खाई जाती थी , एक दिन बहू रोमा से मैं बोला – बेटा, मुझसे यह रोटी – सब्जी नहीं खाई जाती हैं , हो सके तो मेरे लिए अलग से खिचड़ी या दलिया बना लो.. बस मेरे इतना कहते ही बहू मुझ पर भड़क पड़ी कहने लगी आपको तो बस बैठे – बैठे फरमाईशें सूझ रही हैं, कभी यह बना दो कभी वह बना दो , मैं क्या आपकी नौकरानी हुं ??

मेरी बात कान खोलकर सुन लिजिए… अब आपकी पत्नी तो दुनिया में रही नहीं जो आपकी फरमाईशें पूरी करती थी और मुझ पर यह जोर जबरदस्ती नहीं चलेगी !!

बेटा राजीव भी उस दिन रोमा से बोला – रोमा बना दो ना खिचड़ी , खिचड़ी बनाने में भला कितना समय लग जाएगा ?? रोमा बोली – राजीव, तुम्हारे पापा के लिए मुझसे अलग से कुछ ना बन पाएगा , जो भी हैं यही खाना पड़ेगा… वैसे भी अब यह बुढ़े हो चुके हैं और इनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती , मुझसे इनका अलग से काम नहीं होगा तुम इन्हें वृद्धाश्रम छोड़ दो !!

यह सुनते ही मैं ड़र गया… मैं बोला बहू अब आगे से मैं तुम्हें कभी कुछ नही कहुंगा… मगर मुझे वृद्धाश्रम भेजने की बात मत करना !! उसके बाद मुझे बहू जो खाने को देती मैं चुपचाप खा लेता , भले मेरा पेट साथ दे या ना दें, मगर मैं उससे कुछ ना कहता !!

एक दिन राजीव जब मुझे जेब खर्ची के पैसे दे रहा था तो रोमा ने राजीव के हाथ से पैसे खींच लिए और बोली क्या जरूरत हैं राजीव इन्हें पैसे देने की ??

पुरे दिन घर में पड़े रहते हैं , टी .वी और बिजली का बिल बढाते हैं वह अलग , खाने को भी सब कुछ मिल जाता हैं तो उन्हें यह जेब खर्ची किस बात की दी जा रही हैं ??

मैं बोला बेटा कभी – कभी नीचे दोस्तों के साथ टहलने जाता हुं तो कभी कोई दोस्त कहता हैं कि रिक्शा में मंदीर चले जाते हैं, अब इस उम्र में इतना चलना हो नहीं पाता हैं कि मंदिर चलकर जा पाएँ… तब जेब में दो पैसे चाहिए होते हैं तो रिक्शा पकड़ सकते हैं। वर्ना दोस्तों के सामने शर्म महसूस होती हैं !!

रोमा बोली पापाजी कोई जरूरत नहीं दूर – दूर मंदिर जाने की , हमारे बगल वाले मंदिर ही जाया किजिए , ताकि रिक्शा के पैसे बच पाएँ !! राजीव बोला पापा रोमा सही कह रही हैं बस उस दिन से मुझे जेब खर्ची भी मिलनी बंद हो गई …….

मैं तो चुपचाप जिंदगी गुजर – बसर कर रहा था और साथ ही भगवान से प्रार्थना भी कर रहा था की हे भगवान !!!! अब मुझे भी जल्दी उठा ले , गोदावरी ना जाने मुझसे पहले क्यूं चली गई ?? मुझे उसका बहुत सहारा था , उसके जाने के बाद बहुत अकेला महसूस करने लगा था मैं …..

थोड़े दिनो बाद घर में राजीव और रोमा आए दिन अपने दोस्तों को बुलाकर पार्टीस करने लगे , मेरे कमरे को वे लोग बाहर से ताला लगा देते , मैं उस छोटे से कमरे में पड़़ा रहता… मगर एक रोज रात को बाहर पार्टी चल रही थी और मुझे कमरे में बैचेनी महसूस होने लगी , मेरा दम घुटने लगा तो मैंने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया !!

बहुत देर बाद राजीव और रोमा ने दरवाजा खोला और मुझे डांटने लगे !! आज आपकी वजह से हमें अपनी पार्टी जल्दी खत्म करनी पड़ी और हमारे दोस्तों को ऐसे ही वापस भेजना पड़ा !! राजीव भड़ककर बोला आपने पुरा मुड़ खराब कर दिया आज !!

दोनों ने मेरा हालचाल भी ना पूछा , मैं थोड़ी देर तक हांफता रहा मगर दोनों मुझे अनदेखा कर अपने कमरे में चले गए। और आज मुझे मेरे भाई के घर छोड़ने का झूठ बोलकर यहां वृद्धाश्रम छोड़कर चले गए !! मैं गिड़गिड़ाता रहा मगर दोनों ने मेरी एक ना सुनी !! अशोक जी की सारी कहानी सुनकर राघव की आंखे भी छलक पड़ी !!

राघव बोला बाबु जी फिर क्यूं आप उन लोगो के साथ वापस घर जाना चाहते हो ?? वे लोग तो आपका ध्यान भी नहीं रखना चाहते, यहां कम से कम आपका ध्यान तो रखा जाएगा !! अशोक जी बोले राघव उस घर से यादें जुड़ी हैं मेरी और गोदावरी की !!गोदावरी की यादों के सहारे मैं उस घर में कैसे भी गुजारा कर लेता और चाहता था कि मेरी अंतिम सांसे मेरे घर में पुरी हो !!

मेरे घर से मेरी अर्थी निकले इसलिए तो बेटे – बहू का यह व्यवहार भी सहन कर रहा था !! राघव बोला बाबु जी आप चिंता मत करिए , आप यहां बैठिए मैं आपके लिए पानी और चाय लेकर आता हुं !! अशोक जी ने अपने आंसुओं को पोछा और अपने बैग में से गोदावरी जी की तस्वीर निकालकर देखने लगे !!

राघव उतने में अशोक जी के लिए नाश्ता भी लेकर आ गया !! अशोक जी धीरे – धीरे वृद्धाश्रम में रचने – बसने लगे थे मगर उन्हें घर बहुत याद आता था !! उनके घर के आसपास रहनेवाले उनके सभी मित्र बहुत याद आते हैं !!

सुबह सारे वृद्ध मित्र साथ में सैर – सपाटे के लिए जाते थे और शाम होते ही सोसायटी की बेंच पर बैठकर गप्पे मारते थे !! घर में बेटे – बहू का व्यवहार बहुत अखरता था मगर कम से कम उस घर में गोदावरी की यादें तो बसी हुई थी , तन्हाईयों में उन्हीं यादो के सहारे ही जिंदगी कट जाती थी !!

एक दिन अशोक जी वृद्धाश्रम में कुछ पेड़ लगा रहे थे कि उन्हें अशोक जी के दोस्त शर्मा जी की बेटी रीचा ने देखा और बोली अंकल जी आप यहां कैसे ??

रीचा को देखते ही अशोक जी भाव – विभोर हो उठे और उन्होंने सारी घटना रीचा को बताई !! रीचा पेशे से वकील थी , दूसरे दिन ही राजीव के घर नोटिस पहुंच गया !! नोटिस देखकर राजीव के पैरो तले जमीन खिसक गई !! राजीव बोला घर खाली करने का नोटिस आया हैं रोमा ….

रोमा गुस्से से बोली राजीव तुम भी बुद्धु ही रहोगे , पापाजी को वृद्धाश्रम छोड़ने से पहले यह तो देख लेते कि घर का लोन उन्होने पुरा भर दिया हैं या नहीं !! अब हम क्या करेगें ?? कहां जाएंगे ??

राजीव बोला घर का लोन तो पुरा भरा जा चुका हैं रोमा फिर पता नहीं यह घर खाली करने का नोटिस क्यूं आया हैं ??अभी की अभी इस वकील के पास चलते हैं जिसने हमें यह नोटिस भेजा हैं !!

राजीव और रोमा रीचा के पास पहुंचकर बोले हमें यह घर खाली करने का नोटिस क्यूं आया हैं ?? हम इस घर के मालिक हैं …….रीचा ने अंदर से अशोक जी को बुलाया और बोली अगर तुम दोनों इस घर के मालिक हो तो यह कौन हैं ?? अशोक जी को देखकर बेटा- बहू हक्के बक्के रह गए और राजीव बोला पापा आप बताईए इनको कि असली हकदार तो मैं ही हुं इस प्रापर्टी का , आखिर उस घर पर मेरा भी तो उतना ही हक हैं जितना आपका !!

अशोक जी बोले तुम असली हकदार कब से हो गए ?? उस दिन क्या कह रहे थे तुम कि मैंने तुम लोगों के लिए आखिर किया ही क्या हैं ?? तुम्हें पढ़ाया- लिखाया इस काबिल बनाया कि तुम आज अपने पैरो पर खडे हो… और बहू तुम्हें हमेशा अपनी बेटी माना मगर तुम दोनों ने मेरे साथ क्या किया ?? मुझे इस उम्र में जब तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी तुम लोगों ने मुझे वृद्धाश्रम पहुंचा दिया ….

रीचा बोली कानून के अनुसार अगर बच्चे अपने माता – पिता को घर से निकाल दे तो उनकी प्रापर्टी पर भी उनका कोई हक नहीं होता !! राजीव और रोमा दोनों अशोक जी से माफी मांगने लगे और राजीव बोला पापा जी आप चलिए हमारे साथ ही रहीए मगर हमें घर से मत निकालिए !!

रोमा बोली पापाजी आप तो मुझे अपनी बेटी समझते थे ना, आप हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं ?? रीचा बोली तुम दोनों अपना यह नाटक बंद करो !! जो बच्चे अपने बूढ़े माता – पिता को यूं घर से निकाल दे ऐसे बच्चों को कभी माफ नहीं किया जा सकता !!

अशोक जी को रीचा ने हौसला दिया था जिससे अशोक जी में वापस आत्म सम्मान लौट आया था और वे बोले तुम दोनों मुझे क्या रखोगे ?? मैं ही अब तुम दोनों को अपने साथ नहीं रखूंगा !! मैं तुम दोनों को मेरी प्रापर्टी से बेदखल करता हुं !!

आज बहुत दिनों बाद अशोक जी का खोया आत्म सम्मान वापस लौट आया था और किस्मत का खेल कुछ ऐसा चला था कि अब अशोक जी वृद्धाश्रम की बजाय अपने खुद के घर में वापस आ गए थे !!

उन्होंने जिस घर में वापस आने का सपना छोड़ दिया था , रीचा की बदौलत वे आज वापस अपने खुद के घर में थे !!

दोस्तों , माता पिता अपनी पाई पाई जोड़कर बच्चों को पढ़ाते हैं, लिखाते हैं और उन्हें एक काबिल इंसान बनाते हैं। मगर जब वही बच्चें बडे होकर माता पिता को वृद्धाश्रम भेज देते हैं तो ऐसे बच्चों से तो नि: संतान रहना अच्छा हैं !!जो बच्चे अपने माता – पिता के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो बदले में माता – पिता को भी उन्हें अपनी प्रापर्टी में से बेदखल कर देना चाहिए और ऐसे बच्चों का मुंह वापस कभी नहीं देखना चाहिए !! आपकी क्या राय हैं नीचे कमेन्ट करके जरूर बताइएगा और अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी हो तो इस कहानी को लाइक करिएगा शेर करिएगा ज्यादा से ज्यादा लोगो तक और मुझे फॉलो करना मत भूलना !! धन्यवाद !!

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!