खोखले होते हुए वृक्ष – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral stories in hindi

रात के 11:00 बज रहे थे। टकटकी लगाए हुए माधवी जी अपने मोबाइल को घूरती जा रही थी…एक फोन का इंतजार में…!!

भारत में जब मध्य रात्रि होती थी तब अमेरिका में सुबह।

वह अपने बच्चों के लिए रात रात भर जाग कर दिन रात एक कर दीं थीं लेकिन बच्चे…!एक फोन तक नहीं कर सकते…!!

यह भी नहीं सोच पाते कि उसकी मां फोन का इंतजार करती रहती है…! 

भले ही आज बच्चे चिड़ियों की तरह पंख फैला कर सात समंदर पार उड़ गए थे मगर उनका दिल तो आज भी मां का ही था पर बच्चे बच्चे नहीं हो गए थे, बड़े हो चुके थे।

हाई ब्लड प्रेशर, हाई शुगर के साथ न जाने और कितनी बीमारियां हो चुकी थीं।

डॉक्टर का भी कहना था टेंशन मत लो और अवसाद मुक्त जीवन ही स्वस्थ जीवन का कारण है।

उनके पति विपिन जी भी यह कहते थे मगर वह तो मां थी…। मां का दिल कभी बच्चों के बिना लगता ही नहीं। भले ही अनय और विनय दोनों ही दूर थे लेकिन एक फोन से ही उनके अंदर सुकून भर जाता था।

हर पल डर के साथ जी रही थीं वह… न जाने कब सांस थम जाए!

अगर उनकी  मृत्यु हो गई जीवन लीला समाप्त हो गई तब तो उन्हें पता भी नहीं चलेगा लेकिन अगर उनके पति नहीं रहे तो क्या होगा? यह डर उनके अंदर वह भर देता था और इसी कारण वह ज्यादा ही बीमार हो जाया करती थी।

“ सुनिए ना जी…!,उन्होंने अपने पति को उठाते हुए कहा … अभी तक दोनों में से किसी का फोन नहीं आया है…? कोई बात तो नहीं हो गई होगी?”

“ कुछ नहीं हुआ होगा… तुम शांति से सो जाओ।” उनके पति विपिन जी बिस्तर पर दूसरी तरफ मुंह करके बोले।

लेटने को तो माधुरी जी बिस्तर पर लेट गई लेकिन नींद उनकी आंखों से कोसो दूर थी।

कितनी खुश थी वह जब पहली बार बड़े बेटे अनय ने अपना प्रमोशन लेटर दिखाते हुए कहा था 

“मां,कंपनी ने मुझे यूएस शिफ्ट कर दिया है। अब मैं वही रहूंगा हमेशा के लिए।” उसका प्रमोशन लेटर पढ़कर माधवी जी की खुशी का ठिकाना नहीं था। 

वह खुशी से मिठाई बांटते हुए अपने पड़ोस में सबको यह बताते फिर रही थी कि उनका बड़ा बेटा हमेशा के लिए अमेरिका जा रहा है..। तब कहां पता था कि अनय इतना दूर चला जाएगा कि वहां से आना ही मुश्किल हो जाएगा। 

उसी की देखा देखी छोटे बेटे विनय ने  भी अमेरिकन कंपनी में ही अप्लाई किया और वह भी हमेशा के लिए अमेरिका चला गया। रह गए दोनों बूढ़े बूढ़ी अकेले इस घर में…!

कुछ दिन तक सब अच्छा लगा।रिश्तेदारों में,पड़ोसियों के बीच यह बहुत ही सम्मान वाली बात थी कि वर्मा जी के दोनों बच्चे अमेरिका में है।

लेकिन फिर धीरे धीरे शरीर थकने लगा।

अकेलापन और बुढ़ापा माधवी जी और विपिन जी दोनों  को घेरने लगा। अब वह दोनों अकेलेपन से डरने लगे थे।

 

विपिन जी की खर्राटों की आवाज कमरे में गूंज रही थी।

माधवी जी जागती आंखों से अपनी पुरानी बातें याद कर रही थी। सोने की चमक देखकर वह भी पागल हो गई थी…!

सुबह के करीब पौने 4:00 बजे छोटे बेटे विनय का फोन आया 

“मां सॉरी, कल पार्टी में हम दोनों गए थे जिसके कारण बात नहीं कर पाए। आई एम सॉरी… मां …!!”

“ठीक है बेटा, तुम लोग ठीक हो ना!”

“हाँ मां, अब मैं फोन रखता हूं। बहुत ज्यादा थक गया हूं।बाद में बात करता हूँ।”

विनय ने फोन रख दिया।

सुबह जब वह बिस्तर से उठीं तो

रात भर जागने के कारण माधवी जी का माथा घूमने लगा था।

वह  फिर से लेट गईं।

थोड़ी देर बाद विपिन जी दो कप में चाय लेकर उन्हें उठाते हुए कहा

“माधवी उठ जाओ।आओ चाय पीते हैं।” माधवी जी उठने में असमर्थ थी। उन्होंने कहा 

“मेरा सिर घूम रहा है जी।”

 विपिन जी नाराज हो गए। उन्होंने कहा “बेवजह तुम सब की चिंता अपने माथे पर लिए रहती हो।  वे सब ठीक होंगे।”

“ हां सुबह-सुबह विनय ने फोन किया था।”

“ फिर क्या फायदा ऐसे चिंता कर .. ।सबसे ज्यादा तो तुम्हें खुशी हो रही थी…अनय के यूएस जाने पर..और खुशी मनाओ। 

हमारे देश में नौकरियों की कमी है, जिंदगी की कमी है? 

सब कुछ पैसा तो होता नहीं है…।  देखो दोनों बच्चे कितने लायक हैं हर महीने बिना बोले लाखों रुपया भेज देते हैं…अपना बैंक बैलेंस बढ़ाते रहो।”

गुस्से में भुनभुनाते हुए विपिन जी ने डॉक्टर को फोन लगा दिया। 

ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ था। डॉक्टर ने आकर दवा दिया। इंजेक्शन लगाया। माधवी जी काफी देर तक सोई रही। 

विपिन जी अकेले बैठकर चिंतन करने लगे। “अब जो भी सच्चाई है उसका सामना तो करना पड़ेगा..  माधवी डिप्रेशन की शिकार हो रही है, उन्हें इस अवसाद से बाहर निकालना जरूरी है।“

दवा और विपिन जी की देखरेख के कारण शाम तक माधवी जी ठीक हो चुकी थी।  दूसरे दिन विपिन जी के रिश्ते की बहन गोमती जी माधवी जी की खराब तबीयत सुन कर उन्हें देखने के लिए आई ।

बातों बातों में उन्होंने माधुरी जी से कहा “भाभी पहले आप कितना अच्छा स्कूल में पढ़ाया करती थीं।

“हाँ,वह सब दिन बीत गए..!”माधवी जी मुस्कुरा दी।

“ मेरे दोनों बच्चों को तो अपने ही पढ़ाया था ना और दिनभर अपने पास ही रखा करती थीं।

आपके भरोसे ही तो मैं अपनी नौकरी करने में सक्षम रही थी।“

माधवी जी की आंखें चमक गई। वह अपने पति की तरफ देखी।

उन्होंने कहा 

“गोमती जी, मैं अपने घर को एक क्रेच में बदलना चाहती हूं।”

“यह आप क्या बोल रही हैं भाभी?”गोमती आश्चर्य से बोली।

“नहीं मैं यह करना चाहती हूं। एक अच्छा क्रेच बनाना चाहती हूं। कितनी माएं ऐसी है जो अपनी काबिलियत घर गृहस्थी और बच्चों के पीछे मजबूरी में छोड़ देती है और दूसरी तरफ मेरे घर में नीचे बच्चे खेलेंगे तो कितना अच्छा लगेगा।

मेरे घर में चहलपहल आ जाएगी।”

विपिन जी का घर बड़ा था।

विपिन जी, गोमती और माधवी तीनों ने आपस में सलाह मशवरा किया। 

घर में थोड़े कंस्ट्रक्शन करने की  जरूरत थी। पैसे की कमी नहीं थी।

 देखते-देखते एक हफ्ता बीत गया और माधवी जी का क्रेच तैयार हो गया। विपिन जी ने क्रेच का नाम दिया

“ माधवी का खिलौना।” 

अब वहां बच्चे भी बच्चे थे।बच्चों की किलकारी से उनका घर खिल चुका था।

“ यह हुई ना सही बात!”बच्चों को खेलते हुए देखकर विपिन जी ने अपनी पत्नी का कंधा थपथपाया।

“हम अपने लिए अपने बच्चों की आकाश क्यों छोटा करें।उन्हें तो उड़ने  देना ही चाहिए।

अपनी जड़ों को खोखले  होने से बचाने की एक कोशिश कामयाब रही।”

माधवी जी मुस्कुराते हुए बोली तो विपिन जी भी मुस्कुरा दिए।

*

प्रेषिका-सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#बेटियाँ के 6वीं जन्मोत्सव के लिए मेरी कहानी

(कहानी नंबर-6)

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं बेटियाँ।यूं ही तुम फूलो फलो और एक बहुत ही शानदार और सदाबहार वृक्ष बनो।🙏🙏

प्रिय दोस्तों

आप सभी को भी बेटियाँ के जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं।

यह मेरी 6वीं कहानी थी।आप सभी से अनुरोध है कि आप मेरी सभी रचनाओं को पढ़कर अपनी बहुमूल्य समीक्षाओं से अलंकृत करें।

धन्यवाद

सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#सभी रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित।

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