काश पहले बचा पाते… – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शाम की आरती करके ….हाथ में चाय का कप पकड़कर कविशा  जैसे ही सोफे पर बैठ चाय की चुस्की लेती सामने रखा मोबाइल बज उठा… देखा तो माँ का फोन है ।

“ हाँ हैलो माँ!” कविशा ने पूछा ही था कि जवाब में माँ का रोना सुनाई दिया 

“ बेटा मेरा छोटा भाई चला गया ।” कह फूटफूट कर रोने लगी सुनंदा जी 

“ ओहह पर कैसे…और तुम इतनी दुखी क्यों हो रही हो… चार साल पहले ही तो तुम लोगों ने अपने रिश्ते खराब कर लिए थे…बातचीत बंद…. राखी भी भेजना बंद और अब ये आँसू क्यों माँ?” कविशा को मामा के जाने का दुख हुआ पर अतीत की परछाई के साथ कटुता भरे शब्द निकल ही पड़े 

“ बेटा कौन जानता था रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है…उसके मन में बहुत सारी बातों के लिए कड़वाहट आ गई थी…वो तो नाना नानी के जाने के बाद मुझे बड़े होने के नाते अपना गार्जियन समझता था पर तेरी मामी ने बहुत कान भर दिए उसे मेरे ख़िलाफ़ और मेरा छोटा भाई उसकी बातों में आता गया…एक दिन बात करने को फ़ोन क्या की कहने लगा माँ बाबूजी तो चले गए अब हमसे मीठा मीठा बोल कर ज़मीन जायदाद में हिस्सा लेना चाहती है…किसी ने कह दिया आजकल बेटियों का भी अधिकार होता सम्पत्ति पर बस उसके बाद से उसके बाद उसके बात करने के लहजे में बदलाव आने लगा था…मैं तो ख़ैरियत पूछने को फोन करती थी पर वो रूखा सा व्यवहार करता …आख़िरी कॉल तो तेरी मामी उठाई थी… पता नहीं क्यों पूछने लगी किससे बात करना कौन बोल रहे हैं… जब मैंने अपना नाम बोला तो कहती हम नहीं जानते आपको… और उस दिन जो मेरा दिल टूटा वो फिर जुड़ ना पाया… मेरा छोटा भाई था मुझे बहुत अजीज पर आख़िरी समय तक बात ना किया ….बीमारी में भी खबर ना की… ये तो मुझे किसी और रिश्तेदार से मालूम हुआ कि वो अब नहीं रहा।” माँ रोते रोते बोली

“ माँ छोटे मामा से हम सब को लगाव था पर जब उनका व्यवहार तुम्हारे साथ ख़राब रहने लगा तो हमने भी बात चीत बंद कर दी… देखो नियति वो मन में शिकायत लिए ही चले गए… ना वो तुमसे बात करने की हिम्मत जुटाए ना तुम बड़ी हो कर उन्हें माफ कर पाई रिश्ता पहले ही ख़त्म हो चुका था अब क्या बाकी रह गया?” कविशा की आँखों मे भी आँसू आ गए 

“हम अभी निकल रहे हैं उधर बस तेरी मामी ऐसे समय में भी बेइज्जत ना करें ये डर सता रहा है बस एक बार अपने भाई का मुँह तो देख आऊँ ये सोचकर जाना है मुझे ।” माँ का व्यथित मन कविशा को समझ आ रहा था 

“ हाँ माँ तुम्हें जाना चाहिए मैं इतनी दूर हूँ चाह कर भी अभी नहीं आ सकती पर तुम चली जाओ नहीं तो ज़िन्दगी भर मलाल रहेगा भाई को अंतिम समय में भी ना देख सकी ।” कविशा ने कहा 

सुनंदा जी जब भाई के घर पहुँची तो उनकी भाभी देखते ही बोली,” दीदी दीदी करते चले गए भाई ।” 

ये सुनते ही सुनंदा जी फफक पड़ी… काश एक बार बड़प्पन दिखाते हुए भाई से कभी मिलने ही आ जाती छोटे तो नादानी कर जाते हैं पर मैं भी क्यों भाभी की बात सुनकर फिर कभी पलट कर मिलने ना आई…एक बार आ जाती तो शायद रिश्ते सुधर जाते शायद मैं भाई के लिए कुछ कर पाती … पर अब..?

दोस्तों ज़िन्दगी का एक ही सच है मौत और हम उससे ना भाग सकते ना आँख मिचौली खेल सकते हैं… रिश्तों में जब बहुत कुछ ऐसा हो जाता है जब हमारा दिल तार तार हो जाता है और उन रिश्तों में जो हमारे लिए अज़ीज़ होता है… फिर भी हम छोटा छोटी बातों को लेकर बैठ जाते हैं… ये ज़मीन जायदाद रूपया पैसा कुछ लेकर हमें साथ में नहीं जाना और हम बस उसके लिए ही रिश्तों को तार तार कर देते हैं… समय रहते उसे सुधार ले तो उसके जाने के बाद सुनंदा जी की तरह अफ़सोस नहीं होगा…शायद ये अफ़सोस लिए ही उनके भाई इस दुनिया से रूख़सत हो गए …दोनों भाई बहन ने बस छोटी सी बात …जो शायद बेवजह उपजी थी रिश्तों को ही ख़त्म कर दिया और पीछे बस अफ़सोस छोड़ गए ।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

आपकी दोस्त 

रश्मि प्रकाश 

# बेटियाँ वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

#रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है।

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