जोरू का गुलाम (भाग -2)- लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

बिचारी आनंदी दुखी हो जाती है सुन सुन कर उसे ऐसा लगता है जैसे जोरू का गुलाम एक इल्जाम है जो उसके कारण मेरे ऊपर लगाया जाता रहता है।

अरे भाभीजी पलाश भइया पर क्या जादू किया है आपने हमें भी सीखा दीजिए पलाश के मित्रों की पत्नियां अक्सर उसे छेड़ती थीं।

घर पर कोई दावत होने पर पलाश आनंदी के साथ हर काम में लगा रहता था….मां सारे रिश्तेदारों के सामने एकदम खीझ कर कह देती थीं ..”प्रभु जाने अनोखे की शादी हुई है इसकी और अनोखे की पत्नी मिली है इसे पता नहीं पूरे खानदान में किस पर गया है पक्का जोरू का गुलाम हो गया है।

पलाश तो सुनकर हंस पड़ता था लेकिन आनंदी का मन बुझ जाता था।

अरे तुम ध्यान मत दिया करो ऐसी बातों की तरफ जिसको जो कहना हो कहता रहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता वह हमेशा आनंदी को समझाते हुए कहता था

अगर पत्नी पति का और पूरे घर का ख्याल रख सकती है तो पति को भी पत्नी का ख्याल रखना ही चाहिए इसमें गलत या मखौल उड़ाने वाली कौन सी बात है पलाश कहता ।

पर मुझे हमेशा लगता है जैसे मैं  गुनहगार हूं जैसे सब मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं कि अपने पति से कितना काम  करवाती है जैसे सास ससुर का घर का काम कर कर के अधमरी हुई जा रही है बिचारी बन जाती है आनंदी दुखी हो कह उठती थी।

आनंदी अब पलाश को खुद से दूर करने की कोशिश करने लग गई थी   कोई भी काम करने आता तो झगड़ा करने लगती थी अब वह उससे ठीक से बात नहीं करती थी।चिढ़ कर जवाब देने लगी थी अपनी कोई भी समस्या उसे नही बताती थी  मनु को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रखने लगी थी क्योंकि मां हमेशा पलाश की गोद में मनु को देख ताने मारती थीं बिचारा थका हारा ऑफिस से आया नहीं कि बच्चा थमा दी।

पलाश आनंदी में हो रहे इस परिवर्तन को महसूस कर रहा था और क्षुब्ध हो रहा था कैसे अपने ही मां पिताजी को समझाए और कैसे अपनी ही पत्नी को समझाए!!

तेरे पिताजी तो कभी मेरे पास बैठ कर मेरा हाल चाल नहीं पूछे ना ही कभी मैने उनसे अपनी कोई सेवा करवाई तू छोटा था तो क्या मजाल जो कभी तुझे नहला धुला दें या खाना खिला दें रात रात भर मैं सो नहीं पाती थी तू इतना परेशान करता था पर कभी तेरे पिता को मैंने नही कहा तुझे सुलाने या चुप कराने के लिए।

क्यों नहीं कहा मां आपने क्यों नहीं कहा था आज बताइए ना पर सोच कर सही कारण बताइएगा… पलाश भी आज कुछ ठान चुका था।

अरे क्यों का क्या कारण है!! पत्नियों का यही सब काम ही है अपने काम करो कोई इल्जाम लगाने की गुंजाइश ही क्यों रहे मां ने तैश से कहा शायद वह पलाश के साथ आनंदी को भी सुनाना चाह रही थीं।

पिता जी आप ही बताइए मां ने ये सब काम आपसे कभी  क्यों नहीं कहे??

क्योंकि यही इसका धर्म था धर्म है पिताजी ने ठोस स्वर में कहा।

और आपका धर्म!! हम पतियों का धर्म क्या है पिताजी आदेश देते रहना आदेशों का पालन करवाते रहना !!

क्या मां की इच्छा नहीं होती होगी कि उनकी तबियत खराब होने पर आप उनके पास बैठे ख्याल करें जैसे मां आपकी तबियत खराब होने पर करती है!! क्या मां की इच्छा नहीं होती होगी कि आप उन्हें कभी कभी अपने साथ अकेले बाहर घुमाने फिराने ले जाएं!! होती होगी पिताजी परंतु वह कहने से डरती रहीं  अपने पति से  जिसके साथ उनका पूरा जीवन बंध गया उससे ही अपने दिल की बातें छुपाती रहीं संकोच और डर!!

अफसोस तो इस बात का है कि अगर मां ने कभी कहना चाह कर भी कुछ कहा नहीं तो पिताजी ने भी कभी समझा क्यों नहीं अभी इस उम्र में भी मां ही पिताजी का ख्याल रखती रहती हैं पिताजी कभी नहीं रखते अभी मां की तबियत खराब होने पर भी पिताजी उन्हें दवाई तक नहीं दे सकते!!

आप लोगों की इस गलती को मैं अपनी जिंदगी में दोहराना नही चाहता मैं अपनी पत्नी के साथ काम करवाता हूं घूमता फिरता हूं इसमें बुरा क्या है जो आप लोग हमेशा नाराज रहते हैं और सारा इल्जाम आनंदी पर लगाते रहते हैं मां अगर आप पिताजी के साथ कभी मूवी देखने नही गईं तो क्या खानदान की परंपरा बन गई है और आनंदी भी नहीं जा सकती!!

वह जायेगी मां जरूर जायेगी आप लोगों का भी मन हो तो साथ में चलिए… चलो आनंदी तैयार हो जाओ इतना सोचोगी तो कभी जिंदगी जी नहीं पाओगी कोई ना कोई इल्जाम तुम पर लगता ही रहेगा समझी मैं बाहर इंतजार कर रहा हूं कहता हुआ पलाश बाहर चला गया था।

थोड़ी देर बाद भी आनंदी के ना आने पर वह जोर जोर से कार का हॉर्न बजाने लगा….. अचानक उसने देखा आनंदी अकेले नहीं आ रही थी उसके साथ मां और पिताजी भी थे और छोटा मनु पिता जी की गोद में चढ़ा बैठा था।

चकित पलाश जल्दी से उतर कर पिताजी के लिए कार का दरवाजा खोलने लगा

अरे बेटा तूने सच कहा जो बातें होनी चाहिए थीं नहीं हो पाईं अब हो सकती हैं मैने तो ध्यान ही नही दिया कभी कि तेरी मां के लिए मुझे ये सब करना चाहिए गलत परंपराएं चली आ रही थीं मेरा यह सोचना था कि बेटा बहू ज्यादा घुल मिल जायेंगे तो हम लोगों की तरफ ध्यान देना बंद कर देंगे इसीलिए आनंदी बहू पर तेरे जोरू का गुलाम होने का इल्जाम लगाते रहते थे।

क्यों ठीक कह रहा हूं ना मैं एक हाथ से मनु को गोद संभालते और एक हाथ से मां को सहारा देकर कार में बिठाते हुए पिताजी की बात सुनकर मां हंसने लग गई चलिए अब आपकी बारी है जोरू का गुलाम बनने की ।

अब तो पलाश भी आनंदी के साथ हंसने लगा था।

जोरू का गुलाम (भाग -1)

जोरू का गुलाम (भाग -1)- लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

#इल्जाम

लतिका श्रीवास्तव

 

1 thought on “जोरू का गुलाम (भाग -2)- लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi”

  1. Aaapke sare lekh betiyan me bahut hi Dil ko chu Jane Wale aur prerna Dene Wale hai. Man karta hai part-1ke bad part-2 fatafat aae. 🙏❤️

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