जीवनसाथी के साथ न होने का दर्द कोई नहीं बाँट सकता! (भाग 1)- डाॅ संजु झा: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कभी अपने लिए  कुछ पल की चाहत  रखनेवाली निभा  को आज अकेलेपन ने अपनी बाँहों में कैद कर लिया है।कभी उसका घर सास-ससुर, देवर-ननद ,पति और बच्चों की  हँसी-ठिठोली से गूँज करता था,परन्तु आज वही दीवारें भी उसकी तरह गुमसुम पड़ी हैं।बेटी की शादी हो चुकी है,बेटा काॅलेज गया हुआ  है।घर के सन्नाटे को भंग करती हुई दरवाजे की घंटी बजती है। निभा जाकर देखती है,तबतक  डाकिया लिफाफा किवाड़ी के अन्दर  से सरकाकर जा चुका था।लिफाफे को देखकर पहचान की एक क्षीण-सी सुगंध उसकी नथुनों में समा चुकी थी,परन्तु कुछ न समझ आने की वजह से लिफाफे की ऊपरी लिखावट में ही मस्तिष्क  उलझकर रह गया।उसने बिना खोले  ही लिफाफे को रख दिया और कुछ अन्य काम करने चली गई। 

 ज्यादा देर  तक  निभा अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाई और आकर आशंकित मन से लिफाफे  को फाड़ा।चिट्ठी पढ़ते ही काले अक्षरों में लिखे गए  शब्द रेत की तरह  उसकी आँखों के आगे बिखर गए। इतने वर्षों बाद  उसके पति का करुण निवेदन -” निभा!मैं अपनी जिंदगी का अंतिम पल काट रहा हूँ।इस घड़ी में मैं बिल्कुल अकेला हूँ।कृपया बच्चों को लेकर एक बार  आ जाओ ,ताकि तुमलोगों से अपने किए  की माफी माँगकर सुकून से मर सकूँ।”

चिट्ठी पढ़ते ही निभा की आँखों से अचानक आँसुओं की रसधार बह निकली।वर्षों से रुके आँसू बाँध तोड़कर उन्मुक्त बह निकले,मानो उसकी वर्षों की साधना किसी भी क्षण उफनती नदी की तरह बह निकलेगी और एक बार फिर  से कहीं बच्चों से भी बेसहारा न हो जाएँ!पत्र पढ़कर उसकी उठती-गिरती साँसें किसी सिंह के मुँह में फँसे मृगशावक की भाँति छटपटा रही थीं।उसके बच्चे तो पिता का नाम सुनना ही नहीं चाहते थे।उसे महसूस हो रहा था कि उसके चारों ओर दमघोंटू  वातावरण उपस्थित हो गया हो।उसके धड़कनों की तेज गति ही उसे जिन्दा होने का एहसास करा रही थी।

 जीवनसाथी के साथ न होने का दर्द  भी अजीब  है।जिस पति का नाम उसने अपनी जिन्दगी की किताब  से वर्षों पूर्व फाड़ दिया था,आज उसी का पत्र पढ़कर वह व्याकुल होकर छटपटा उठी।पत्र को हाथों में लिए कितनी ही कटू और मधुर यादें जीवित होकर चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगीं।

निभा के मायके में भरा-पूरा परिवार था।ग्रेजुएशन करते ही  माता-पिता की मर्जी से उसकी शादी मनीष से हो गई। मनीष  आकर्षक  और सरकारी नौकरी प्राप्त नवयुवक था।निभा मन में ढेरों अरमान  लिए  हुए  ससुराल पहुँच गई। साधारण रुप-रंग की निभा इतने खुबसूरत पति पाकर निहाल थी।ससुराल में सास-ससुर, देवर -ननद ने अपने स्नेह-सम्मान से उसे घर की बड़ी बहू का रुतबा दे दिया।उसका घर हमेशा सभी की हँसी-ठिठोली से गुलजार रहता।इन सबों के प्यार के अलावे पति की बेपनाह मुहब्बत से वह ससुराल  में पूरी तरह रच-बस गई। समय के साथ  वह दो बच्चों बेटी सिया और बेटा विपुल की माँ बन चुकी थी।

निभा मायका विशेष अवसरों पर ही दो-चार दिनों के लिए जा पाती।इन्हीं दो-चार दिनों में  ही उसके पति उसकी विरह में व्याकुल हो उठते।सास-ससुर, ननद-देवर  को उसके बिना घर काटने को दौड़ता।इतने अच्छे परिवार पाकर निभा खुद को भाग्यशाली समझती।उसकी सहेलियाँ उससे मजाक करते हुए कहतीं-“निभा!ध्यान रखना।जीजाजी का अत्यधिक प्यार-रोमांस कहीं तुम्हें ठग न लें।”

निभा भी मुस्कराते हुए कहती -” मेरे पति बहुत भोले और सरल हैं।वे मुझे कभी भी धोखा नहीं दे सकते हैं।”

उसे क्या पता था कि एक दिन सबकुछ रेत की मानिंद उसके हाथों से फिसल जाएगा!अपनीसुखद गृहस्थी में डूबी निभा को बिखराव की आहट का तनिक भी आभास  नहीं था।दफ्तर  से आकर  एक दिन पति मनीष  ने खुशी से अपने प्रोमोशन की खबर सुनाई। परिवार में सभी खुशी से एक साथ चिल्ला उठे,परन्तु दिल्ली तबादले की खबर सुनकर सभी एकाएक खामोश हो उठे।निभा ने भी एक दीर्घ साँस ली,उसकी मधुर कल्पना फुर्र से विलीन हो गई। रात में निभा ने पति की बाँहों में सिमटते हुए कहा -“मैं आपके वगैर पलभर भी नहीं रह सकती हूँ।बच्चों के साथ मैं भी दिल्ली चलूँगी।”

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जीवनसाथी के साथ न होने का दर्द कोई नहीं बाँट सकता! (भाग 2)- डाॅ संजु झा: Moral Stories in Hindi

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

 

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