जीने का मकसद – वीणा कुमारी : Moral stories in hindi

बनारस स्टेशन के एक कोने में बैठ पार्वती काकी ज़ार ज़ार रोए जा रही थी कि तभी पवन की नजर उन पर पड़ी।

वह पास जाकर पूछा– क्या हुआ काकी,क्यों इतना रोए जा रहे हो? कुछ खो गया का?

रोते रोते ही काकी ने कहा – सब कुछ तो खो ही गया है बिटवा। जब से इनके बाबूजी नहीं रहे, तब से सब कुछ खो गया है। तेरहवीं के बाद बेटा सब हमको गंगा स्नान कराने बनारस लाया था और यहीं आश्रम में रख के चला गया। चार साल से हम यहीं रह रहे थे लेकिन कल मैनेजर बोला कि –माताजी,आपके बेटों ने पैसा भेजना बंद कर दिया है,इसलिए हम आपको यहां रखने में असमर्थ हैं।

हमने कितना कहा–पैसा भेजना बंद कर दिया है तो क्या हुआ.. मेरा देह तो है, हम सबके लिए खाना बना देंगे,कमरा साफ़ कर देंगे..फिर भी हमको नहीं रखा।

घर कहां है काकी?–पवन ने पूछा, किस जिला,किस राज्य में है?

ई सब हम नहीं जानते बाबू–रामपुर में हमरा घर है।

गाँव के नाम से पवन को कुछ पता नहीं चला तो उनका हाथ पकड़ उन्हें उठाते हुए कहा –काकी,आपके गांव के नाम से तो मुझे कुछ पता नहीं चल रहा,पर आप एक काम कर सकती हैं…अगर आपको बुरा न लगे तो।

हम पटना में रहते हैं और मेरा भी कोई नहीं है,छोटा सा था जब माँ –बाबूजी गुजर गए थे। अभी हम पटना में ट्यूशन पढ़ाते हैं और परीक्षा की तैयारी करते हैं,ज्यादा आमदनी तो नहीं है मेरी,पर आपके आने से मेरी थोड़ी मदद हो जायेगी। जो काम आप वृद्धाश्रम के लिए करना चाहते थे वो मेरे लिए कर दीजिएगा और मेरे कमरे में ही रह लीजिएगा। फिर मुझे कुछ पता लगेगा आपके गांव और बेटों के बारे में, तो मैं आपको उनके पास पहुंचा दूंगा।

पार्वती काकी के पास कोई चारा नहीं था,पवन के साथ जाने के अलावा। वह तैयार हो गई और पवन के पास पटना आ गई।

पवन सुबह शाम ट्यूशन पढ़ाता और पार्वती काकी झाड़ू बुहारू से लेकर घर का सारा काम करती। पवन रात भर जाग अपनी परीक्षा की तैयारी करता। पार्वती काकी उसके पास ही बैठी रहती। रात में पढ़ते समय पवन को चाय बना कर देती। ऐसा लगता जैसे पवन की परीक्षा नहीं  बल्कि पार्वती काकी की ही परीक्षा हो,वह हर समय मुस्तैद रहती।

तभी बीपीएससी का रिजल्ट आया पर, पवन का नाम उसमें नहीं था। पवन हताश हो गया। तभी पार्वती काकी ने कहा–कौनो बात नहीं बिटवा…तुम फिर से तैयारी करो, एक माई के दुआ है तुम्हरे पास। अबकी बार जरूर पास कर जाओगे।

पवन फिर से जी जान लगा कर जुट गया और इस बार उसको पहली रैंक पर आने से कोई रोक न सका। सब जगह उसकी और पार्वती काकी के ही चर्चे थे। सभी न्यूजपेपर का पहला पन्ना उनके ही फोटो और उपलब्धि से भरा हुआ था।

पार्वती काकी का फोटो जैसे ही उनके बेटों ने भी देखा..वे अचंभित रह गए।

आपस में विचार कर उनलोगों ने सोचा कि अब तो माँ का बड़े लोगों में उठना बैठना होगा…क्यों न जाकर मिल आते हैं। पता तो अखबार में था ही,अगले ही दिन उनलोगों ने ट्रेन पकड़ी और पहुँच गए पटना।

वहाँ पार्वती हँसते हुए पवन को मिठाई खिला रही थी और कह रही थी–बिटवा,अब हम जायेंगे हियां से..अब हमको भी जिंदगी के एगो मकसद मिल गया है। जेकर कोई नहीं उसका मां

बन के हम उनलोग को हौसला देंगे..बाकी तुमको जब भी हमरा जरूरत होगी ,हम तो तुम्हरे पास हैं।

तभी उसकी नज़र अपने बेटों पर पड़ी…

माँ…हम तुम्हें लेने आए हैं…चलो अपने घर।

कौन सा घर..मेरा घर यही है,कह पार्वती काकी ने चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया और पवन से कहा…. बिटवा…हम नहीं जानते कि ई सब कौन है…हम तो वही दिन से बांझ.. निपूति हो गए थे.. जे दिन से इनलोग हमको बनारस में छोड़ आया था।

समयचक्र कब बदल जाए…कोई नहीं जानता..पार्वती काकी के पास अब जीने का मकसद था। पार्वती काकी गर्व और स्वाभिमान से सर उठाए खड़ी थी और उसके बेटे सर नीचे किए बगलें झांक रहे थे। 

वीणा कुमारी 

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