जीते जी अहमियत समझो- करूणा मलिक : Moral stories in hindi

शारदा , माँ- बाप तो बचपन में ही गुज़र गए थे । भइया- भाभी ने अपने बच्चों में कमी कर ली पर मुझे कभी किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया । हमेशा ध्यान रखना कि तुम्हारी वजह से उन्हें कोई शिकायत न हो ।

जी , मैं हमेशा ख़्याल रखूँगी कि मेरे किसी भी काम से आपको नीचा ना देखना पड़े ।

सचमुच शारदा ने विवाह की पहली रात अपने पति राजपाल को दिया हुआ वादा अपनी जान से भी ज़्यादा सँभाल कर निभाया ।

दुनिया इधर की उधर हो जाए पर सास-ससुर समान जेठ-जेठानी का दर्जा उसने भगवान से भी ऊपर समझा । शारदा सुबह चार बजे उठकर , एक बार घर के काम में लगती तो रात के दस बजे तक उसे साँस लेने की फ़ुरसत नहीं मिलती थी । जेठ के चारों बच्चों और जेठानी को तो मानो अवैतनिक नौकरानी मिल गई थी । जेठ तो ख़ैर ज़्यादातर बाहर ही रहते थे पर जेठानी और बच्चे  पूरा दिन ऐसे घुमाते मानो  शारदा कोई रिबोट हो जिसे कभी थकान ही ना होती हो ।

वक़्त गुजरने के साथ-साथ शारदा घर के एक-एक आदमी की आदत को भी अच्छी प्रकार से समझ चुकी थी । हाँ, पढ़ाई के लिए फ़ीस ज़रूर बड़े भाई ने दी है पर  आमदनी का ज़रिया पूर्वजों की ज़मीन  थी जिसका हक़दार शारदा का पति भी था, इसके अलावा राजपाल को खर्चा- पानी चलाने के लिए हमेशा अभावों का सामना करना पड़ा था । यह बात अक्सर राजपाल के मुँह से कई बार अनजाने में निकल जाती थी । शारदा सब कुछ समझते हुए भी कह नहीं पाती थी । जेठ की बड़ी लड़की और शारदा की उम्र में केवल छह/सात साल का ही अंतर था, पर जेठानी के दिल में एक माँ की ममता नहीं बल्कि उसके प्रति  बराबरी का भाव रहता । कहने के लिए हर वक़्त सुनाया जाता कि राजपाल के लिए क्या-क्या मुश्किलें सहीं पर दिखने में कुछ अलग ही नज़र आता । देखते  ही देखते वह भी दो बच्चों की माँ बन गई । 

वह दिन रात घर के कामों में पिसती रही पर राजपाल ने कभी अपनी पत्नी की अहमियत नहीं समझी । अगर कभी बीमार भी होती तो राजपाल हमेशा एक ही बात बोलता-

मुझे सब पता है कि औरतें काम से बचने के लिए बीमारी को ही बहाना बनाती है । ज़्यादा तकलीफ़ है तो एक गोली लेके काम कर लो । अब भाभी बेचारी पशुओं का तो करती ही हैं, तुम क्या चाहती हो, वो घर का काम भी करें ?

मैंने उन्हें तो काम करने के लिए नहीं कहा । अगर गीतू और नीतू थोड़ी सी मदद करवा दें तो ….

तुम क्या चाहती हो कि वे दोनों बच्चियाँ पढ़ाई छोड़कर घर के कामों में लग जाएँ ?

पति को ऊँची आवाज़ में बात करते देख शारदा चुप हो जाती । धीरे-धीरे उसने पति को कुछ भी बताना बंद कर दिया । अपने पिता की बेरुख़ी को आठ साल की दीपिका और पाँच साल का ईशांत भी समझने लगा था । दोनों बच्चे पिता के सामने डरे सहमे रहते थे । जेठ की दो लड़कियों का विवाह हो गया था और उनके जाने के बाद शारदा को थोड़ी सी राहत मिली थी । उसे दिन-रात अपने बच्चों की चिंता लगी रहती क्योंकि दोनों ही बच्चे विद्रोही स्वभाव के हो रहे थे । अब तो पति हर समय शारदा को यह भी ताना मारता –

जैसी खुद घुन्नी है, वैसे ही बच्चे बना दिए । घर को फाड़ना चाहती है । बढ़िया तरीक़ा निकाला है, अपने आप भली बनी रहना और बच्चों को आगे करके अपनाने मन की बात कहलवाना पर याद रखना , मेरी तरफ़ से तुम कहीं भी जाना , मैं तुम्हें तुम्हारे इरादे में कामयाब नहीं होने दूँगा ।

शारदा का मन करता कि कहीं जाकर मर जाए । पूरी ज़िंदगी इनके अनुसार चली , सबके आगे-आगे घूमती रही पर इन्हें तसल्ली नहीं मिली । भगवान करें , मैं भी मर जाऊँ और बच्चे भी । पूरी उम्र गुजर गई पर ये कभी ख़ुश नहीं हुए ।

अब शारदा के दोनों बच्चे खुलकर अपने पिता को जवाब देने लगे । 

तुम बनो , इनके नौकर-नौकरानी, हम नहीं सुनेंगे । ताई और प्रभा दीदी सारा दिन बैठी रहती हैं और तुम दोनों इनकी जी हुज़ूरी में लगे रहते हो ।

शारदा पति और बच्चों के बीच फँस गई । आख़िर कब तक उनका मुँह बंद रखती । घर में आए दिन कलह- क्लेश रहने लगा । जेठ तो चुप रहते पर राजपाल, जेठानी और उनके बच्चे शारदा को ही दोषी ठहराते । शारदा किसे अपना कलेजा चीर कर दिखाए ? वह अक्सर सोचती-

अगर पत्नी के सुख-दुख में कभी साथ ही नहीं देना था , केवल भाई के अहसान तले दबकर अपना तो अपना तीन लोगों का भी जीवन नर्क करना था तो शादी क्यों की थी ? क्या यह आदमी मानसिक रूप से ठीक है जो सब कुछ देखकर भी अँधा बना है।

शारदा को सोचते-सोचते सिरदर्द रहने लगा पर उसने राजपाल को नहीं बताया । कभी बाम लगा लेती , कभी सिर में तेल और जब सहन ना होता तो मोहल्ले के मेडिकल स्टोर से जाकर दवा ले आती । अब उसने बातचीत करनी भी बहुत कम कर दी । बस अपना काम करती और जेठानी की बात का जवाब हाँ- हूँ में ही देती । 

जब एक दिन सुबह पाँच बजे तक भी शारदा नहीं उठी तो जेठानी ने कहा –

शारदा, आज चाय- वाय नहीं बनाएगी क्या ? राजपाल ! देख जरा , क्यूँ ना उठी आज ?

शारदा के शरीर को झिंझोड़ते ही राजपाल को तो करंट सा लग गया , जिसके बारे में उसने कल्पना भी नहीं की वह कैसे हो गया? 

मोहल्ले के डॉक्टर ने बताया-

ब्रेनहेमरेज का केस लगता है । ब्लडप्रेशर रहता था क्या ?

सब चुप , कौन क्या बताए ? किसी को कुछ पता हो तो बताएँ। तभी जेठानी ने ज़ोर-ज़ोर से रोना-पीटना शुरू कर दिया। दोनों बच्चों चीखकर बोले –

हमारी माँ मरी नहीं, मारी गई है । उसे मार दिया , हमारे बाप के   सिर पर चढ़े अहसानों ने , जिसकी आड़ लेकर उसके ही पति ने उसे तिल-तिल मरने पर मजबूर कर दिया । जीते-जी किसी ने उसकी अहमियत नहीं समझी । 

जेठानी पड़ोसनों को कह रही थी-

माँ के मरने का सदमा लग गया बेचारे बच्चों को । 

करूणा मलिक

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