ये प्यार बरकरार तो रखोगे ना सैंया जी… – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

शादी एक ऐसा बंधन है जिसमें दो अजनबी अपनी यात्रा अलग अलग वजूद से शुरू तो करते हैं पर अंततः एक जिस्म दो जान बन जाते है…. प्यार से पगे रिश्ते में सारे रिश्ते घुलमिल जाते है ….अगर पति पत्नी को अहमियत देता हो….तरजीह देता हो…..पर कई बार ऐसा नहीं होता…पति के लिए पत्नी बस एक रिश्ता भर रह जाती हैं… जब वो अपने परिवार वालों के साथ ज़्यादा घुला मिला हो।

ऐसी ही एक कहानी है नित्या और निकेतन की….

यूँ तो नित्या अपने पति निकेतन की पसंद थी ….तभी दोनों की शादी हो पायी पर समय के साथ साथ वो प्यार परिवार वालों के आगे गौण होने लगा जिसका असर नित्या और निकेतन की वैवाहिक ज़िंदगी पर भी पड़ने लगा था।

नित्या जब भी शादी के पहले और बाद के दिन याद करती तो वो रो पड़ती थी…. 

शादी तय होते ही फोन पर प्यारी प्यारी बातें तो होती पर निकेतन की जो बातें होती उसमें ज़्यादातर अपने परिवार वालों के लिए उसे ये करना है वो करना है ही रहता …नित्या को भी लग रहा था ….चलो जब अपने परिवार को इतनी अहमियत देता है तो तो मेरे परिवार को भी मान सम्मान देगा  ही ।

सब लड़कियों की तरह उसने भी भावी ज़िन्दगी के सपने बुने और ससुराल आ गई।

निकेतन नित्या को प्यार तो करता था पर घर के लोगों के प्रति वो इतना समर्पित था कि कई बार अपनी नई नवेली दुल्हन को अकेला छोड़ कर उनके साथ लगा रहता… नित्या एक  कमरे में अकेली बैठी निकेतन का इंतज़ार करती रह जाती और चाह कर भी उससे कुछ कह नहीं पाती थी ।

नित्या की सास थोड़ी पुराने ख़्यालों में रंगी पुती महिला थी ऐसे में वो भी कभी नित्या को सबके साथ बैठ कर बातें करने या साथ में टीवी देखने के पक्ष में नहीं रहती। 

अगर नित्या तभी बाहर कमरे में बैठती जब उसके जेठ नहीं होते … ससुर जी तो पहले ही गुजर चुके थे तो जो भी पर्दा करना  होता वो जेठ के सामने ही …. ऐसे में जेठ घर में आते ही  उसको वहाँ से चले जाने को बोलती….ऐसे में नित्या जब भी ससुराल जाती उसको अपनापन नहीं लगता था और ऐसे में वो ससुराल वालों से दूरी बनाने लगी।

कई साल बीते पर जब भी निकेतन घर वालों के साथ होता नित्या को नज़रअंदाज़ ही करता। 

वो बहुत चाहती सबके साथ मिलकर बातें करे पर उसके ससुराल वाले अपने में ही मस्त रहते… उन्हें इससे मतलब ही नहीं रहता था कि नित्या भी इस घर की सदस्या है….जेठानी की भी ज़्यादा बातचीत देवर निकेतन से ही होती ऐसे में नित्या का मन ससुराल वालों से खट्टा तो हो ही रहा था… निकेतन के साथ भी वो प्यार नहीं रहा जिसकी उसने कल्पना की थी ।

आख़िर कोई कब तक ऐसे व्यवहार को सहता…..उसे ससुराल वालों के आगे अपनी अहमियत नगण्य प्रतीत होते लगी थी ।

खैर शादी के दो महीने बाद नित्या पति के साथ दूसरे शहर रहने चली गई क्योंकि निकेतन नौकरी करता था और उसकी पोस्टिंग उधर ही थी।

नित्या ने भी अब सोच लिया था कि कुछ तो करना ही होगा ….पति तुम ऐसे नहीं समझोगे…. अपने परिवार के साथ रह कर मुझे इतना नज़रअंदाज़ कर देते हो  जैसे मैं तुम्हारी कुछ लगती ही नहीं…मेरी कोई अहमियत ही नहीं है ।

ऐसा मौक़ा नित्या को मिल ही  गया…. 

संयोग से एक बार नित्या के ससुराल वाले उनके पास कुछ दिनों के लिए आये….

अब नित्या सबको वक़्त पर नाश्ता खाना देती और अपने  कमरे में चली जाती… 

वो उन सब के साथ ना बैठती ना ज़्यादा बातचीत करती…..

एक दो दिन निकेतन ने देखा तो उसको अच्छा नहीं लगा। वो जाकर नित्या से बोला,“ये क्या तरीक़ा है नित्या सब लोग बाहर बैठे हुए है और तुम ऐसे कमरे में आकर फ़ोन में लग जाती हो…. अच्छा लगता है क्या वो सब हमारे घर आए है और तुम इस तरह उन्हें अकेला छोड़ देती हो?”

नित्या को इसी दिन का तो इंतज़ार था वो इस बात का एहसास पति को करवा सके….

उसने अपने पति के गाल को प्यार से खींचते हुए बोला,“ये बात काश तुम पहले ही समझ जाते तो आज मैं उनलोगों से इतनी खींची खींची तो ना रहती….।”

“ मतलब ?” निकेतन ने पूछा 

“ मतलब तुम ख़ुद सोचो ना निकेतन …. जब मैं आपके घर जाती हूँ तो मुझे अकेले कैसा लगता होगा… आप सब मज़े से गप्पें मारते… टीवी देखते पर छोटी बहू होने का हरजाना मुझे अकेलेपन के रूप में मिल रहा था…. बहुत बार मेरा भी मन करता है आप सब के साथ बैठूँ ….पर सासु माँ की हिदायतें मुझे बेबस कर देती …. इतनी पाबंदियाँ…. हमारा परिवार कितना ही बड़ा है निकेतन …?”

 निकेतन कुछ कहने की स्थिति में नहीं था…. 

क्योंकि वो भी उन सब के साथ रहते हुए नित्या को कभी भी समय नहीं देता था…शादी के बाद पत्नी जिसके सबसे ज़्यादा क़रीब होती है वो पति होता है और वही पति जब उसे भूल कर पहले की तरह परिवार में डूबा रहे पत्नी का मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है…. ।

“ सॉरी नित्या जब तुम्हें मेरे साथ की ज़रूरत थी मैं तुम्हें अकेले रखा और आज तुम ख़ुद को अकेले रखना सीख गई हो….  तो मैं तुम्हें उनके पास नहीं जाने पर ग़ुस्सा कर रहा हूँ….मैं अब इस बात पर ध्यान दूँगा….माँ भैया के सामने रहने पर ऐसा करती हैं जैसे ना जाने तुम कौन हो…माँ जब ब्याह कर आई उसने ऐसा ही माहौल देखा… भैया के ब्याह के समय तक पिताजी जीवित नहीं थे तो भाभी पर  कभी कोई रोक टोक हुआ नहीं इसलिए वो कभी तुम्हारी तकलीफ़ समझ ही नहीं रही होगी …..कम से कम उन्हें तुम्हारे साथ रहना चाहिए था….।”

“ अब क्या फ़ायदा निकेतन तीन साल होने जा रहे मुझे भी तुम्हारे घरवालों ने अकेले रहना सीखा ही दिया….।”नित्या उदास हो बोली 

 दूसरे दिन रात को जब निकेतन आफ़िस से आया नित्या सबको चाय नाश्ता देकर अपनी चाय लेकर कमरे में जाने लगी।

“ कहाँ जा रही हो … यही बैठो ना हम सब के साथ ।” निकेतन ने टोकते हुए कहा 

नित्या एक पल रूक कर सासु माँ का चेहरा देखने लगी… किसी ने कुछ कहा नहीं पर सासु माँ के चेहरे पर सवाल ज़रूर उठे 

“ माँ हम सब इकट्ठे बैठ कर क्यों नहीं खाते पीते… तुम , भैया भाभी और ये दो छोटे बच्चे कितना ही बड़ा परिवार है… नित्या को कल देखा अकेले कमरे में खाना खा रही थी…मुझे बहुत बुरा लगा…किसी ने कभी उसे समझने की कोशिश ही नहीं की… सबके साथ रहते हुए भी वो अकेले ही रहे तो ऐसे परिवार के साथ का क्या ही मतलब… वैसे ये बात माँ और भाभी  को समझना चाहिए था पर जब आप दोनों ही नहीं समझें तो मुझे कहना पड़ रहा है ।” निकेतन अपनी बात कहते हुए जाती हुई नित्या को बैठने के लिए बोला 

“ वोऽऽऽ वो ऽऽऽऽमुझे लगा माँ को पसंद नहीं है ये सब तो मैं कैसे कुछ बोलती?” जेठानी ने कहा 

“ अरे हमारे घर में कोई जेठ के सामने बैठा है क्या जो नित्या को बोलती…छोटी बहू ओट में रहती अच्छी लगती सामने नहीं ।” सासु माँ ने थोड़ा रुआब देकर बोला

“ माँ समय बदल रहा है….. थोड़ा तुम भी बदलाव लाओ… पूरा परिवार एक साथ रहता है और नित्या एक कमरे में अकेले… हम हँसी ठहाके लगाते वो चुप रहती.. हमारे घर में एक ही टीवी है वो भी हॉल में… उसे यहाँ बैठ कर टीवी नहीं देखने मिलता…आख़िर वो भी तो इंसान ही है…।” निकेतन नित्या की तरफ़ लाचारी से देख रहा था 

माँ से इस तरह से पहले कभी बात जो नहीं किया था…उपर से अपनी पत्नी की अहमियत को समझते हुए उसके पक्ष में बोल रहा था पता था वो सौ बात और जोड़कर बोलेंगी 

“माँ वैसे मैं बड़ा हूँ तो तुम नित्या को हट जाने को बोलती हो…और जब कभी रसोई में वो काम कर रही होती मुझे प्यास लगती तो पानी लेने जाना भी मुश्किल होता … क्योंकि तुमने यही कह रखा छोटे भाई की पत्नी जहाँ हो उधर मत जाना….आज ये सब सुन कर मुझे भी लग रहा है.. वो तो भैया कहती है ना मुझे…. फिर ये सब चोंचले क्यों ….हम सब साथ रहे हंसे बोले … तभी अच्छा लगेगा… अकेले रहने पर ना तो  नित्या को कभी हमारे पास आना अच्छा लगेगा ना उसे हमारा यहाँ आना …क्योंकि कोई भी इंसान आख़िर कब तक एक ही कमरे में रहेगा … आओ नित्या तुम भी इधर ही हम सब के साथ बैठो… अच्छा किया निकेतन जो तुमने कह दिया… क़ायदे से ये पहल तेरी भाभी को करना चाहिए था पर वो तो खुद ही गप्पों में रहती दूसरे की सुध कहाँ लेगी।” जेठ जी ने भी निकेतन की बात पर सहमति जताते हुए कहा 

“ अब सब को यही पसंद है तो करो जो करना है…मेरा क्या है जिसमें तुम सब ख़ुश रहो मैं भी हो लूँगी ।” सासु माँ अपनी बात पूरी ना होते देख हाथ झाड़ते हुए बोली 

नित्या चोर नज़रों से पति की ओर देख रही थी…. ग़नीमत है पतिदेव का प्यार बरकरार है नहीं तो आज मेरे लिए बोलने की हिम्मत जुटाना उनके वश की बात तो नहीं ही थी।

दोस्तों कई परिवारों में आज भी इस तरह का चलन है…ऐसे में शादी के बाद लड़की के लिए ससुराल वालों को दिल से अपनाना मुश्किल हो जाता है… जब दूर रखोगे तो वो स्वतः दूर दूर रहने लगेगी इससे बेहतर है शुरू से ही सब मिलकर आपस में हँसे बोले तो परिवार में बिखराव की स्थिति कभी ना आये।

सच यही है ससुराल में अगर पति आपको समझे आपकी अहमियत को समझे तो सब आपका मान करेंगे और जब पति आपको छोड़ घर वालों के संग लगा रहे तो उनकी नज़रों में आपकी अहमियत थोड़ी कम ज़रूर हो जाती है।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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