जीने का हक़ – अनु ‘इंदु ‘

सुनंदा की ननद साक्षी ने छः महीने पहले घुटने का ऑपरेशन करवाया था । साक्षी दी को  कई सालों से गठिया था पाँव की उंगलियां टेढ़ी हो रही थीं । अब तो चलना भी मुश्किल हो रहा था । इस लिये पहले एक घुटने का ऑपरेशन करवाया , वो अभी पूरी तरह ठीक भी नहीँ हुआ था कि दूसरे का भी करवा लिया । लेकिन इस बार कोई प्रॉब्लम आ गई थी , इंफेक्शन ठीक नहीँ हो रहा था । इसी दौरान हार्ट अटेक से उनकी मृत्यु हो गई । उनके पति आनंद प्रकाश जी ने पत्नि की बहुत सेवा की थी । लेकिन जो भी होनी को मंजूर हो वही होता है।

पत्नि के देहांत के बाद अकेले रह गये थे वो । कानपुर में किसी हॉस्पिटल में कैमिस्ट की दुकान चलाते थे । दोनों बेटों की शादी कर चुके थे । एक बेटा उनके साथ ही रहता था दूसरा लुधियाना में किसी बैंक में मेनेजर था । दोनों बहुयें जॉब करती थीं ।

आज़ दोपहर को आनंद जी का फोन आया तो सुनंदा चौंक गई । चार  महीने हो चुके थे साक्षी दीदी का देहांत हुये मगर उनका कभी फोन नहीँ आया था । उस दिन बहुत परेशान थे । बता रहे थे कि अपना खाना वो ख़ुद बनाते हैं बहु रागिनी ने सुबह ख़ुद ऑफिस जाना होता है , उसे अपने पति का और अपना ब्रेकफास्ट और लंच तैयार करना होता है । उनके लिये भी बनाती थी मगर उन्हें पसँद नहीँ आता था इसलिए उन्होंने मना कर दिया था ।

तीन साल की पोती के लिये फुल टाईम नौकरानी थी।घर में सी सी टी वी कैमरे लगा रखे थे ताकि मेड पर नज़र रख सकें । लेकिन 65साल के आनंद प्रकाश जी नितांत अकेले थे सब के होते हुये । कहने लगे कि मैंने फैसला कर लिया है अलग रहने का , क्यूंकि बेटा बहु उनकी परवाह नहीँ करते । उनके पास इतना टाइम ही नहीं है।


सुनंदा ने उन्हें हौसला दिया और कहा कि आप अलग होने का मत सोचिये। अलग हो जायेंगे तो आप का ध्यान रखने वाला कोई नहीँ होगा । बेटा आख़िर बेटा ही होता है , वो आपका ध्यान ज़रूर रखेगा ।

मगर आनंद जी कहने लगे ,”मुझे भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक़ होना चाहिये । क्यूँ न मैं किसी ऐसी औरत के साथ आपसी रजामंदी से रहूँ जो मेरी ही तरह अकेली हो । इस तरह हम दोनों एक दूसरे का सहारा बन सकते हैँ । जब बच्चे अपने किसी अहम फैसले में हमें शामिल नहीँ करते तो हमें क्या ज़रूरत है अपने किसी फैसले में उन्हें शामिल करने की । मैं क्यूँ न अपनी बाकी बची जिंदगी चैन से गुज़ारूँ। मैं क्यूँ इस समाज की परवाह करूँ”

सुनंदा ने कहा “जीजा जी आप अगर अपने फैसले का परिणाम और आने वाली परेशानियों का सामना करने की हिम्मत रखते हैं तो बेशक आपकी जिंदगी पर आपका पूरा हक़ है । आप जो भी फैसला करेंगे उससे आप ख़ुश रहें बस हम यही चाहते हैँ “।

रात को सुनंदा ने अपने पति को उनके इस फैसले के बारे में बताया । उन्होंने कहा ,” इसमें कोई हर्ज नहीँ । कई महानगरों में तो ऐसी clubs हैँ जहाँ ऐसे लोग मिलते हैं और अपने लिये साथी  चुनते हैं , जो उनके compatible हो । आधुनिक युग में जहाँ बच्चे विदेशों में पढ़ने जाते हैं और वहीँ सेटल हो जाते हैं , अगर माता पिता में से एक की मृत्यु हो जाती है और आपको देखने वाला कोई नहीँ तो ऐसे में आदमी और औरत अगर आपसी रजामंदी से एक दूसरे के साथ रहते हुये एक दूसरे के दुख दर्द बांट लें तो इस में किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता है।

यह सच है कि ऐसे live -in relationships में social stigma भी जुड़ा रहता है । अक्सर अपनी औलाद भी ऐसे रिश्तों को स्वीकार नहीँ करती  क्यूंकि उन्हें जायदाद को लेकर भी मन में डर रहता है कि कहीं उसमें कोई हिस्सेदार न आ जाये । ये सब मामले भी पहले से तय किये जा सकते हैं कि दोनों  का एक दूसरे की जायदाद पर कोई कानूनी हक़ नहीँ होगा ।

आपस में शादी न करके स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ जब तक निभे , रहा जा सकता है । इस तरह ऐसे संबंधों में होने वाले अपराधों के खतरों से भी बचा जा सकता है ।  उन्हें आपस में शादी भी करने की मजबूरी नहीँ होनी होगी  क्यूंकि इस उम्र में शादी करने पर बच्चों को ऐतराज़ हो सकता है ।  इस उम्र में सेक्स की नहीँ बल्कि एक दूसरे के साथ की ज्यादा ज़रूरत रहती है” ।

सुनंदा प्रशंसा भरी निगाह से अपने पति को देख रही थी, उसे उनकी पत्नि होने पर गर्व हो रहा था ।

अनु ‘इंदु ‘

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