जन्नत की चाबी – नीरजा कृष्णा

शहर में बहुत बड़े कथावाचक और समाजसुधारक संत बनवारीलाल जी पधारे हुए हैं। उनके विषय में प्रचलित है ….वो कथाओं के माध्यम से  जीवनोपयोगी सारगर्भित बातें बहुत साधारण तरीके से समझा देते हैं।

सेठ  घनश्यामदास जी के घर में भी चर्चा हुई। इधर उनके घर में कुछ ना कुछ परेशानी पसरी ही रहती थी। सब कुछ होते हुए भी उनके यहाँ सुख चैन और शान्ति की बहुत कमी थी। कथावाचक संत जी के बारे में सुनकर माधवी जी सेठजी से कहने लगीं,”आज शाम को दो घंटे का समय निकालिए। हम सबको उनका भाषण सुनना चाहिए…. शायद हमारी समस्याओं का कुछ समाधान उनसे मिल सके।”

सेठजी तो पहले से ही मन बनाए हुए थे। शाम को वो सपत्नीक जैन धर्मशाला के प्रांगण में पहुँच गए। संत जी बोल रहे थे,”आजकल हर व्यक्ति बहुत धनलोलुप हो गया है। और ज्यादा के चक्कर में व्यथित होकर अपने घरपरिवार को भूल रहा है।”

सभागार में तालियों का कर्णभेदी स्वर गूँज गया। वो आगे बोले,”सब परेशान रहते हैं कि उनके घर से बरकत ही रूठ गई है। ईश्वर ही रूठ गया है। लोग जन्नत की तलाश कर रहे हैं पर ….।”


बीच में ही कोई पूछ बैठा,”सर, हम सबके लिए तो शायद जन्नत के दरवाजे ही बंद हो गए हैं। उन बंद दरवाज़ों को खोलने का कोई सुगम उपाय बताइए।”

कथावाचकजी किंचित मुस्कुराए और बोले,”जन्नत के बंद दरवाज़ों की चाबी तो आपके घरों में ही हैं। आप सब उस जगह को भूल गए हैं। जाइए, आप सबको वो विशेष चाबी अपने अपने घरों में ही मिल जाएगी। बस थोड़े ध्यान और चिंतन की जरूरत है।”

माधवी जी सेठजी की ओर देखने लगी थीं। उनका आशय समझ कर वो कथासमाप्ति पर उनके पास गए और रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया। वो भी सहर्ष तैयार हो गए।

उनका यथोचित आदरसत्कार के बाद सेठजी पूछ बैठे,”मेरे घर में सबकुछ है ,फिर भी कुछ भी नहीं है। दोनों बेटे नालायक निकल रहे हैं। बस मौजमस्ती ही उनका जीवन है। मैं बहुत परेशान हूँ।”

वो इतनी देर में अपनी सूक्ष्म दृष्टि से बहुत कुछ समझ चुके थे।

उन्होनें धीरे से पूछा,”सेठजी, आपके माता पिता कहाँ है?”

वो थोड़ा सकपकाए पर फिर तुरंत बोले,”दोनों बहुत हल्ला गुल्ला मचाते थे। सब नौकरचाकर  परेशान रहते थे। यहीं बढ़िया वृद्धाश्रम में दोनों को सैट कर दिया है।”

स्वामी जी ने दुख से आँखें बंद कर ली। माधवी जी के बार बार पूछने पर बोले,”जो बोइएगा, वही काटिएगा ना। बच्चे आपका आचरण देख रहे हैं। आपकी जन्नत की चाबी उसी वृद्धाश्रम में पड़ी है। जाइए और ले आइए।”

नीरजा कृष्णा

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