जन्मों का संबंध (भाग 2 ) – पुरुषोत्तम : hindi stories with moral

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“मैं जाऊँगी इस सुसुरमुँहें के साथ? चेहरा भी देखा है इसने। सब मुझपर लगे पड़े हैं?” सुरभि पैर पटकते हुए जो कमरे के अंदर गई फिर बाहर न निकली। घरवाले भी उसके स्वभाव को जानते थे लिहाजा किसी ने उसे आगे कुछ नहीं कहा। सुरभि की दीदी सारिका अपने देवर के साथ ससुराल विदा हो गई। किस को पता था यह अनबन दोनों के लिए जन्मों का बंधन तय करने जा रही है?

सारिका के ससुराल से खुशखबरी थी कि बहु के माता-पिता नाना-नानी बननेवाले हैं और इसी महीने उसका प्रसव है। उसकी सास की तबियत भी कुछ खास ठीक नहीं रहती थी सो खबर भिजवाया गया कि चंद दिनों के लिए किसी को भेज दे तो काम संभल जाये।

सुरभि के पिताजी सुरभि को दीदी के ससुराल पहुँचा आए। दीदी के माँ बनने की खबर से उपजी ममता उसके खिझ पर विजय प्राप्त करने में सफल रही थी। सुरभि दीदी घर का सारा काम करती, दीदी का ख्याल रखती। और उसका हाथ बटाने को प्रकाश भी अनवरत एक पैर पर खड़ा रहता। बस दानों में कभी बात नहीं होती। सुरभि उसकी दीदी के प्रति प्रकाश की सेवा भावना से द्रवित भी थी लेकिन वह भी क्या करती जुबान के तीर तो कबके उसके जुबान से निकल चुके थे और वापस नहीं हो सकते थे। दोनों अपने कर्तव्य पर अडिग रहे लेकिन बिना एक-दूसरे से एक भी शब्द बात किये। दीदी ने दोनों को समझाया भी, फिकरे भी कसे लेकिन दोनों अविचल। सुरभि ग्लानि में तो प्रकाश स्वाभिमान में। सारिका ने भी प्रयास छोड़ सब भगवान पर छोड़ दिया।

प्रमोद को बालक हुआ है जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। घर में उत्सव और उत्साह का माहौल है। मुहल्ले में मिठाईयां बाँटी जा रही है। सुरभि ने बच्चा जब पहली बार दीदी की गोद में बड़े मनुहार से दिया तो दीदी ने उसी मनुहार से अपनी बहन को देखा और कहा- “देखी प्रकाश बेचारा कितनी मेहनत करता है दिनभर लगा रहता मेरे पिछे। वह किसी जनम का मेरा सगा भाई होगा। भाई से भी बढ़कर। लल्ला के आने की खुशी में तुमलोग पिछली बातें भूलकर आपस में बातें करो।”

“दीदी, अच्छा पक्ष ले रही हो अपने देवर का। पर मैंने उससे बातें करने से कब मना किया। जिस पिछली बात को तुम भूल जाने को कह रही हो न वह उसे तो संदूक में भर कर रखा हुआ है। फिर भी तुम कहती हो तो मैं ही कोशिश करती हूँ लेकिन वह मान जाएगा उसको देखकर तो ऐसा नहीं लगता।”

प्रकाश तभी उधर से गुजर रहा था तो सुरभि ने लल्ला को उसके गोद में देते हुए कहा- “लल्ला के चाचा ये लो संभालो अपने भतीजे को। अब तो ताऊ हो गये अब तो मुँह भरकर बात कर लो।“

प्रकाश ने सुरभि की ओर देखा भी नहीं, अपनी भाभी की ओर देखते हुए कहा “मेरा लल्ला है ही लाखों में एक लेकिन लल्ले को बुरा नहीं लगेगा कि उसका अनबोलवा चाचा एक हूर परी के दिन खराब करे।” इतना कहकर प्रकाश लल्ला को गोद में ले बाहर निकल गया।

“देखी दीदी, मैं न कहती थी कि मैं मान भी जाऊँ लेकिन तुम्हारा देवर नहीं पिघलेगा।” प्रकाश के शब्दों की टीस सुरभि क्षण भर भी न बर्दाश्त कर सकी।

“सुरभि देख रही हो न बातों के घाव जल्दी नहीं भरते। इसलिए इंसान को सोच-समझकर बोलना चाहिए। लेकिन कोई नहीं दिल की बात निकलनी जरूरी थी अब उसे भी हलका महसूस हो रहा होगा और जल्द तुमलोगों के बीच भी सब ठीक हो जाएगा।”

लल्ला को हुए महीने भर से ज्यादा हो गया है। देवर और बहन की तिमारदारी से सारिका तंदुरूस्त हो चली थी और घर के कामकाज खुद सम्भालने लगी थी। सुरभि भी घर लौटने को कई बार कह चुकी थी। यूँ भी पराये घर की बेटी को अपने काम के लिए ज्यादा दिन रोकना मुनासिब नहीं था। जब सुरभि लौटने को हुई तो सारिका ने प्रकाश को उसे घर पहुँचाने के लिए कहा। सफर में दोनों अकेले रहेंगे तो जल्दी सुलह हो जाएगी सारिका ने मन-ही-मन सोच रही थी।

ट्रेन सरपट दौड़ रही थी लेकिन दोनों मौन थे और ख्यालों का समुंदर उनके मन में लहरें उठा रही थी। सुरभि उस सख्स के साथ थी जो दो-तीन महीनों से उसके साथ हमसाये की तरह था, कभी कुछ नहीं बोला लेकिन उसकी छोटी-से-छोटी बात को बिना अभिव्यक्ति के न केवल समझता रहा बल्कि पूरी जिम्मेदारी के साथ कंधे-से-कंधा मिला उसके साथ खड़ा रहा। क्या मजाल कि उसने कोई चीज सोची हो और अगले पल उसके सामने लाकर न रख दी गई हो। लड़का है कि छठी इंद्रिय की खान। उसे लग रहा था कि सौम्य चेहरे वाले इस मजबूत शख्स के साथ अन्याय कर दिया गया हो। उसके मन में करूणा युक्त लावण्यता हिंडौले मार उठी। इधर प्रकाश भी यह सोचकर मायूस हो रहा था कि पराये घर की बेटी उसके घर के काम संभालने में सिद्दत से लगी रही और वह कितना निष्ठुर निकला उसकी एक छोटी-सी गलती को बिसार न सका और सीधे मुँह उससे बात तक नहीं की। क्या उसका गुनाह वाकई इतना बड़ा था।

प्रकाश और सुरभि घर पहुंचे तो माँ ने सुरभि से कहा कि कल सुबह प्रकाश को बड़ी हाट के ठाकुर मंदिर में पूजा करवा लाए। प्रकाश दूसरी-तीसरी बार आया है और अभी तक कहीं निकलने का अवसर नहीं मिला है। कल सुरभि को देखने लड़के वाले भी आ रहे हैं। प्रकाश कल मेहमानों की परिचर्या कर परसों घर जा सकता है।

दोनों अपने-अपने कमरों में पड़े हुए हैं और ख्यालों में बेसुध भी। सब कुछ ठीक रहा तो अगले एक-दो महीनों  में शादी उसके बाद दोनों अगली बार कब मिले कौन जाने। सहसा सुरभि को आभास हुआ कि यह दो-तीन महीनों का साथ अनायास नहीं था। उसने कुछ निश्चय किया और कागज पर दिल के उद्गार उकेर दिए और मोड़कर अपने पास रख लिया। अभी नहीं तो कभी और यह जताने का अवसर नहीं आएगा।

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–पुरुषोत्तम

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