जैसी करनी वैसी भरनी –  विभा गुप्ता  : Moral stories in hindi

  ‘ स्मृति सदन’ का बड़ा हाॅल फूलों और रंग-बिरंगे बल्बों से जगमग कर रहा था।वहाँ आये मेहमानों का शोर इतना था कि सदन के बाहरी हिस्से में बनी एक छोटी-सी कोठरी के बिस्तर पर दर्द-से कराहती स्मृति जी के कानों में भी सुनाई दे रहा था।वे बुदबुदाने लगी, सभी मजे में नाच-गा रहें हैं लेकिन पिछले चार दिनों से मैं यहाँ बुखार और कमर-दर्द की पीड़ा सह रही हूँ…कोई पूछने तक नहीं आया… मेरे बीमार होने से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता है…सब के सब कितने स्वार्थी हो गये….कभी मैं इस घर की मालकिन हुआ करती थी…

         शहर के एक बड़े उद्योगपति कामता प्रसाद की इकलौती बेटी थी स्मृति।उसके ज़िद्दी और अहंकारी स्वभाव को देखकर उसके पिता और माता लक्ष्मी देवी को चिंता रहती कि यही हाल रहा तो ससुराल में इसका कैसे निबाह होगा…।

        बेटी के शादी लायक होते ही कामता प्रसाद जी ने वर तलाशने लगे।पढ़ी-लिखी स्मृति देखने में भी बहुत सुंदर थी।उनके ही एक परिचित अंबिका प्रसाद जो एक गार्मेंट फ़ैक्ट्री के मालिक थे..ने अपने बेटे सुशांत के लिये स्मृति का हाथ माँग लिया।सुशांत एमबीए करके अपने पिता की फ़ैक्ट्री को संभाल रहा था।

      कामता प्रसाद जी ने धूमधाम से बेटी का ब्याह किया।स्मृति की सास बहुत ही शांत स्वभाव की थी…बड़ी ननद थी जो अपने ससुराल में सुखी थी।साल बीतते-बीतते स्मृति बेटे आर्यन की माँ बन गई और दो साल बाद इशिता भी उसकी गोद में खेलने लगी।दोनों बच्चे दादी की गोद में पलने लगे।घर को नौकरों ने संभाल रखा था…स्मृति का समय क्लबों-पार्टियों में बीतने लगा।

        समय का पहिया घूमता गया….स्मृति के दोनों बच्चे बड़े हो गये थें।एक दिन अचानक अंबिका बाबू को दिल का दौरा पड़ा और वे ईश्वर को प्यारे हो गये।उसके बाद से स्मृति को अपनी सास आँखों में खटकने लगी।

     स्मृति ने बेटी की शादी तय की…विवाह के कुछ दिनों पहले ही उसकी सास बाथरूम में फिसल गई थी…उन्हें पूरा आराम करना था लेकिन पोती की शादी तो सिर पर थी।उन्होंने सुशांत से कहा कि मैं तो बीमार हूँ… शादी की तारीख आगे बढ़ा दे तो मैं भी इशिता के विवाह में…।

   ” हर्गिज़ नहीं…आप चल नहीं सकती हैं तो ये आपकी प्राब्लम है।” स्मृति तपाक-से बोली तो उसकी सास की आँखें भर आईं।उन्होंने जूही से पूछा,’ क्या मेरे बीमार रहने से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता है?”

 ” क्यों फ़र्क पड़ेगा.. हकर भी पत्नी के खिलाफ़ नहीं जा सका। बीमार हालत में ही अपनी सास को अकेला छोड़कर स्मृति ने मुंबई जाकर अपनी बेटी की शादी कर दिया।

      पोती की शादी न देख पाने और ‘मेरे बीमार होने से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता’…..का दुख स्मृति की सास सह नहीं सकी और एक दिन वो ऐसे सोईं कि फिर कभी नहीं उठीं।

        अच्छी लड़की देखकर स्मृति जी ने आर्यन का भी विवाह कर दिया।बहू जूही उनके जैसी ही सुंदर और स्मार्ट थी।मार्केट हो या पार्टी..सास-बहू एक साथ ही जातीं थीं।दो साल बाद वो भी एक पोते अंश की दादी बन गई।अंश की तोतली बोली सुनकर तो वो निहाल हो जातीं थीं।

       एक दिन सास-बहू को किटी पार्टी में जाना था।सुबह से ही स्मृति जी के सिर में दर्द होने लगा तो उन्होंने बहू से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है…पार्टी में जाना कैंसिल कर दो।अब जूही भड़क गई,” आपकी तबीयत खराब है तो मैं क्या करुँ…किसने कहा था…।” वो अनाप-शनाप बक कर अकेले पर्स हिलाती पार्टी में चली गई।इस बात का स्मृति जी को गहरा धक्का लगा।

       स्मृति जी का स्वास्थ्य दिनोंदिन गिरने लगा।उन्हें खाँसी आती तो आर्यन टोक देता,” क्या मम्मी!…आप हर वक्त खाँयें- खाँयें करती रहतीं हैं..।” उधर जूही को भी सास के खाँसने और कराहने के कारण अपनी सहेलियों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता था।उनके पोते ने भी एक दिन कह दिया,” दादी…आप पूरे घर में इंफेंक्शन फ़ैलाती हैं।” सुनकर उनकी आँखें बरसने लगी थी।बस उसी दिन से स्मृति जी को अपने घर से निकाल कर एक अंधेरी कोठरी में शिफ़्ट कर दिया गया था।

      स्मृति जी पिछले चार दिनों से बुखार-बदन-दर्द का दंश झेल रहीं थीं लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली।पोते का अठारहवाँ जन्मदिन मनाया जा रहा था….मेहमानों से हाॅल भरा हुआ था…बस वो ही अकेली…।काश! वो अपनी बीमार सास की पीड़ा को समझ लेती…सास की तकलीफ़ से उन्हें भी फ़र्क पड़ता तो आज उनकी बीमारी में सभी उनके साथ होते…उन्हें यूँ अकेले बैठकर आँसू न बहाना पड़ता… जैसी करनी वैसी भरनी…,सोचते ही दो मोटे आँसू उनके झुर्रीदार गालों पर आकर लुढ़क गये।

                       विभा गुप्ता

                        स्वरचित 

# मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता

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