जैसे को तैसा – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

   लाजो जी थोड़ा बहुत काम में आप भी हाथ बंटाया कीजिए बहू श्वेता के….. इससे आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा आप एक्टिव भी रहेंगी और श्वेता की काम में मदद भी हो जायेगी…! बजरंगी प्रसाद जी ने पत्नी लाजो जी को समझाने की कोशिश की…।

          देखिए जी अब मुझसे काम धाम नहीं होता… हड्डियों में दर्द रहता है….. और हर चीज की एक उम्र होती है। अपने जमाने में हमने भी बहुत काम किए हैं उस समय हमारी कौन मदद करता था…? आपकी मां को आपके पिताजी ने तो ऐसा नहीं समझाया वरना मेरी भी हेल्प हो जाती…… लाजो जी ने चुटकी ली …!और मेरा आपके पास बैठना आपको अच्छा नहीं लगता क्या…???

        अरे आप तो नाहक ही गुस्सा कर रही हैं …..मैंने तो आप के भले के लिए ही कहा था आगे आपकी मर्जी….! बजरंगी प्रसाद जी ने बात संभालने की कोशिश की।

देखिए जी साफ-साफ कह देती हूं आप मेरे भले के लिए नहीं….. बहू के सहायता के लिए मुझसे काम कराना चाहते हैं…! लाजो जी ने भी मुंह बनाते हुए जवाब देने में देरी नहीं की…।

      माँ जी..पिताजी.. आप लोगों की चाय ……टेबल पर ट्रे रखती हुई श्वेता ने कहा।

शायद सासू माँ और ससुर जी की बातें श्वेता ने सुन ली थीं सो उसने इतना ही कहा …पिताजी के साथ शाम को आप भी टहल लिया कीजिए माँ जी …लाजो जी ऐसी तिरछी निगाहों से घूरीं श्वेता को… जैसे ससुर और बहू ने मिलकर सासू माँ के खिलाफ साजिश की हो…।

      समय बीतने के साथ अचानक बजरंगी जी का हार्ट अटैक से निधन हो गया …लाजो जी अकेली हो गईं… बहुत अकेली…। बेटा बहू के साथ होते हुए भी बहुत ज्यादा अकेली… क्योंकि उनका ज्यादा समय बजरंगी प्रसाद जी के साथ ही बीतता था। रसोई के कामों से उनका कोई लेना-देना नहीं था….. हड्डियों के दर्द की वजह से ज्यादा से ज्यादा समय बैठकर ही बिता देती थीं …..जबकि डॉक्टर ने उन्हें घूमने फिरने.. टहलने व काम धाम करने की सलाह दी थी…।

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ससुर जी के ना रहने से श्वेता की सास के प्रति जिम्मेदारी और भी बढ़ गई …उनके खालीपन को दूर करने के उद्देश्य से श्वेता ने रसोई के छोटे-मोटे कामों में हाथ बटाने का आग्रह  किया… किसी दिन कहती… मम्मी सब्जी काट देंगी क्या…?? किसी दिन …मम्मी थोड़ा देख लीजिए ना चावल पक गए क्या…?? ऐसे छोटे मोटे काम बोल कर उन्हें व्यस्त रखने की कोशिश करती…! पर लाजो जी का दिमाग बिल्कुल उल्टा ही सोचता ……उन्हें लगता पति के जाते ही उन से काम करवाया जा रहा है… उनके रहते तो बहू की कभी हिम्मत ही नहीं हुई कुछ काम बोलने की …और अब… ऐसा सोचकर लाजो जी दुखी हो जाती थीं…।

माँ जी शाम को बगल वाली आंटी जी के साथ आप भी टहल आइएगा…फिर देखिएगा कुछ ही दिनों में हड्डियों का दर्द कम हो जाएगा। धीरे-धीरे आपकी आदत हो जाएगी फिर आप बिना टहले रह नहीं पाएंगी…! श्वेता ने सासू मां के भले के लिए उनकी दिनचर्या में परिवर्तन करने की सोची।

      देखो बहू मैं स्पष्ट वादी हूं मुझे जो बोलना होता है मुंह पर बोलती हूं…. पीठ पीछे चुगली करने की मेरी आदत नहीं है …मैं बोल देती हूं …तुम्हारा यह रवैया मुझे पसंद नहीं है… जब तक तुम्हारे ससुर जी जिंदा थे तुम्हारी हिम्मत ही नहीं हुई….. मुझे काम करने को बोलने की ….पर उनके जाते ही तुम्हारा शुरू…?? मुझे तो लग रहा है कहीं तुम मुझे धीरे-धीरे नौकरानी बनाकर ना छोड़ो ….हमारे जमाने में तो सास रसोई में भी नहीं आती थी..।

       और देखना जो जैसा करता है उसे सूद ब्याज के साथ वैसा ही भुगतना पड़ता है…। तुम्हारा भी बेटा है आने दो बहू को… फिर पता चलेगा जैसा मेरे साथ कर रही हो ना उससे भी बुरा तुम्हारे साथ होगा ….! लाजो जी गुस्से में खुद को असुरक्षित महसूस कर ना जाने क्या क्या बोले जा रही थीं…।

     सासू माँ की बातें सुनकर श्वेता की आंखें भर आईं…उसने सोचा मैंने तो उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उनके भले के लिए कहा था …पर उन्होंने तो कुछ और ही समझा…। आखिर सासू माँ मुझे इतना गलत कैसे समझ सकती हैं…खैर…!

       श्वेता ने झट से आंसू पोछे और एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए आज सासू माँ को उनकी ही भाषा में आईना दिखाने की सोची…।

     लाजो जी के सामने पलंग पर बैठती हुई बड़े आत्मविश्वास भरे लहजे में श्वेता ने कहा …देखिए सासू माँ …मुझे भी घुमा फिरा कर बातें करने की आदत नहीं है और मैं भी आपकी तरह ही स्पष्टवादी हूं तो प्लीज मेरी बातों का बुरा मत मानिएगा …… मैं कुछ बातें आपको स्पष्ट कर दूं …आप 30–35 साल पुरानी अपने जमाने से आज के जमाने की तुलना करती हैं ..तो माँ जी पूरा एक जेनरेशन का अंतर है… क्या उस जमाने का आज से तुलना करना उचित है…??

रही बात जब मेरी बहू आएगी तो मुझे भी मेरे कर्म का फल मिलेगा.. तो मैं आपसे पूछती हूं माँ जी आपने क्या गलत किया था अपनी सासू माँ के साथ… जो मुझ जैसी खराब बहू मिली… जो जैसा करता है उसे वैसा ही भोगना होता है….. और यदि आप मुझ पर लांछन लगा रही है.. तो आपने भी तो दादी के साथ कुछ गलत किया होगा तभी तो बहू के रूप में मैं आपके साथ गलत कर रही हूं…!

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      हकीकत बताने के चक्कर में श्वेता ने आज खुलकर सासू माँ के सामने अपने विचार रख दिए …ताकि सासू माँ के सारे पूर्वाग्रह दूर हो सके…।

अपनी बात पूरी कर श्वेता चाय बनाने रसोई में चली गई …।

      श्वेता के वहां से जाने के बाद लाजो जी को पहली बार अनुभव हुआ… स्पष्टवादी और मुंह पर बात करने का ठेका ढोए मैंने यह तो कभी सोचा ही नहीं कि …सामने वाले पर मेरी बातों का असर कैसा पड़ेगा..? आज श्वेता ने मुझे सपाट और स्पष्ट बोल कर मेरी बोलती ही बंद कर दी..।

     स्पष्टवादी बनने के चक्कर में अपने लफ्जों को इतना कठोर भी ना बनाएं कि सामने वाले का धैर्य ही टूट जाए …..सपाट और स्पष्ट बोलने की भी एक मर्यादा और कला होनी चाहिए ….. सच की अभिव्यक्ति इतनी प्रभावी होनी चाहिए कि…सामने वाले को बात भी समझ में आ जाए और बुरा भी ना लगे…।

      सासू माँ चाय पी कर तैयार हो जाइए …हड्डी वाले डॉक्टर के पास चलना है आशू आते ही होंगे.. श्वेता ने सासू मां से कहा..।

     डॉक्टर साहब यहां जोड़ जोड़ में दर्द होता है रात में दर्द बढ़ जाता है लाजो जी ने अपनी परेशानी डॉक्टर को बताई..।

     देखिए मैं दवाई तो लिख देता हूं ..पर थोड़ा टहला कीजिए.. छोटे-मोटे कामों के लिए थोड़ा चलिए… ज्यादा देर तक बैठे रहने के बाद उठने पर भी समस्या बढ़ जाती है… चलते फिरते रहेंगी तो आदत भी बनी रहेगी और दर्द भी कम होगा।

डॉक्टर की परामर्श सुनकर लाजो जी की आंखों में शर्म और पश्चाताप साफ दिखाई दे रहा था… वो समझ गई थीं… बहू मेरे फायदे के लिए ही मुझे चलने फिरने को कह रही थी ….शायद इसीलिए छोटे-मोटे काम मुझसे करवा रही थी। सासू माँ की आंखों में पश्चाताप देखकर श्वेता को समझते देर न लगी …..श्वेता ने हाथ पकड़कर लाजो जी को … “कोई बात नहीं माँ जी ” बोलते हुए गाड़ी में बैठाया…।

( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

संध्या त्रिपाठी

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