जब दो दोस्तों ने दिखाई अपने ही बच्चों को उनकी औकात – स्वाति जैन : Moral stories in hindi

अखिलेश जी अपनी दुकान बंद ही कर रहे थे कि उनकी नजर सर्दी में ठिठुरते उस व्यक्ति पर जा पड़ी , जिसके पास ना ओढ़ने को शाल थी और ना ही स्वेटर , और ठंड में ठिठूर रहा था !!

अखिलेश जी दूर से उसे देखकर सोचने लगे कैसा आदमी हैं ?? इतनी ठंड में ऐसे ही घूम रहा हैं , मरना हैं क्या इसको !!

अखिलेश जी जैसे ही उसके पास गए वह उसे देखकर चौंकते हुए बोले – अरे रमाकांत तू , तू यहां कैसे और इतनी ठंड में तेरे पास ओढ़ने को कुछ भी नहीं !! क्या हुआ मेरे भाई ?? तु रुक यहीं मैं दुकान में से तेरे लिए कंबल लेकर आता हुं बोलकर वे वापस दुकान गए और जल्दी से दुकान से कंबल लाकर रमाकांत जी को ओढ़ाया !!

रमाकांत जी का अब ठंड में ठिठुरना थोड़ा कम हुआ और वे अखिलेश जी को आशावादी नजरो से देख रोने लग गए !!

रमाकांत जी और अखिलेश जी बचपन के दोस्त थे !!

दोनों एक ही मोहल्ले में साथ में पले बढ़े थे यहां तक कि दोनों का स्कूल भी एक ही था , दोनों लंगोटिया यार थे मगर बड़े होते होते सभी एक दूसरे से बिछड़ चुके थे और बिछडे भी ऐसे कि एक अरसा हो चुका था दोनों को एक दूसरे से मिले !!

आज इतने सालो बाद एक दूसरे को मिलकर दोनों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े !!

अखिलेश जी की यहां वृंदावन में भगवान के लिए चढ़ाए जाने वाले फूल और हार की दुकान थी , उनकी दुकान बहुत छोटी सी थी जो बहुत आमदनी तो नहीं देती थी मगर उनका समय व्यतीत करने का एकमात्र जरिया जरूर थी !!

 उन्हे यहां वृंदावन में बसे एक अरसा बीत चुका था मगर आज उन्हें अपने दोस्त रमाकांत को इस तरह यहां देख बहुत हैरानी हो रही थी !! रमाकांत जी रोते हुए बोले – भाई क्या बताऊं ?? मेरे साथ जो घटित हुआ हैं , भगवान किसी को ऐसा दिन ना दिखाए !!

अखिलेश जी बोले भाई क्या हुआ हैं ?? खुलकर बताओ मैं कुछ समझा नहीं !!

रमाकांत जी बोले मेरी बहू और उसके पिताजी ने चार धाम यात्रा का प्लान बनाया !! बेटे कल्पेश ने अपनी व्यस्थता के चलते यात्रा में आने से मना कर दिया इसलिए मैंने भी बहू से यात्रा में जाने मना कर दिया था मगर मेरी बहू राखी और उसके पिताजी ने मुझे यात्रा पर चलने के लिए बहुत आग्रह किया !!

बहू बोली पिताजी , आपकी चार धाम यात्रा हो जाए इसलिए तो मेरे पापा ने यह प्लान बनाया हैं और आप ही मना कर रहे हैं !!

मेरे बेटे बहू का व्यवहार मेरे लिए हमेशा खट्टा ही रहा हैं मगर बहू के पिताजी किशोर जी मुझसे हमेशा दोस्ताना व्यवहार करते थे इसलिए मैं किशोर जी के आग्रह को ठुकरा ना सका और इनके साथ यात्रा पर निकल पड़ा !!

हम लोग जब काशी पहुंचे तब तक तो सब सही चल रहा था मगर यहां वृंदावन में जब हम लोगों के दर्शन हो चुके तो मुझे बहुत थकान लग रही थी , मैं अपने पैरो से चल पाने के हालात में नहीं था जिस वजह से मैं बैठ गया !! किशोर जी और मेरी बहू बोले आप बैठिए , हम आपके लिए पानी लेकर आते हैं , फिर वह दोनों ऐसे गए कि वापस ही नहीं लौटे !!

मेरे सारे कपड़े , सारा सामान , शॉल , कंबल, पैसे यहां तक कि मोबाईल फोन भी उन्हीं के पास पड़ा हुआ हैं !!

मैं अकेला बहुत देर तक उनकी राह देखता रहा !!

मुझे मेरे बेटे का मोबाईल नम्बर याद था इसलिए मैंने एक राहगीर से फोन मांगकर मेरे बेटे को फोन किया और उसे सारी आप बीती बताई !!

बेटा बोला पापा , आप वहीं रुकिए मैं राखी और उसके पिताजी को फोन कर अभी बताता हुं , आप वहीं खड़े रहना !!

बेटे के मुंह से प्यार भरे शब्द सुनकर मेरी जान में जान आई !!

वह राहगीर भी थोड़ी देर मेरे पास खड़ा रहा कि शायद उसके मोबाईल पर मेरे किसी परिचित का फोन आए मगर ना किसी का फोन आया और ना ही कोई मुझे वापस लिवाने आया !!

मैं जान गया कि यह सब मेरे साथ जान बूझकर किया गया हैं , ताकि मैं बेबस होकर बस इन्हीं वृंदावन की गलियों में घूमता रह जाऊं और बेटे बहू का मुझसे हमेशा के लिए पीछा छूट जाए !!

यह सब सुनकर अखिलेश जी भी रो पड़े और बोले तु फिक्र मत कर , मेरा घर यहीं पास में हैं चल तू मेरे घर चल कहकर अखिलेश जी रमाकांत जी को अपने घर चलने के लिए जिद करने लगे !!

रमाकांत जी बोले अखिलेश , मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें , मैं तुम पर बोझ नहीं बनना चाहता !!

अखिलेश जी बोले जब तक तू मेरे साथ नहीं चलेगा , मैं भी यहां से नहीं जाऊंगा मगर रमाकांत जी किसी पर अपना भार नहीं डालना चाहते थे इसलिए वे अखिलेश जी के आग्रह को मान नहीं पा रहे थे !!

उतने में सामने से आती एक कार दिखी जिसमें से अखिलेश जी का बेटा करण उतरकर बोला पापा , इतनी रात गए आप यहां अपने दोस्त के साथ मिलकर गप्पे मार रहे हैं और हम लोग कब से घर में आपकी राह देख रहे हैं , कम से कम टाईम तो देख लिया कीजिए , वहां सुधा भी कब से भड़की हुई हैं , चलिए आईए मेरे साथ कार में बैठिए !!

करण इतना गुस्से में था कि अखिलेश जी चुपचाप उसके साथ जाकर उसकी कार में बैठ गए !!

रमाकांत जी अखिलेश जी की मनःस्थिति समझ सकते थे , वे जान चुके थे कि उनके दोस्त अखिलेश की हालत भी उनके जैसी ही हैं !!

अखिलेश जी जैसे ही घर पहुंचे सुधा भडककर बोली पापा , जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जा रही हैं , लगता हैं आपकी बुद्धि सठिया सी गई हैं !!

बेचारा करण ऑफिस से थका हारा घर आया और आकर भी उसे आपको ढूंढने निकलना पड़ा और मैं भी ऑफिस से आकर थक गई हुं मगर आपको तो अपनी घुमक्कड़ी से फुर्सत कहां हैं ??

बेटे बहू पर तरस खाईए जरा और परेशान करना बंद करिए !!

अखिलेश जी बिना कुछ बोले चुपचाप अपने कमरे में सोने चले गए !!

उस दिन उन्होंने खाना भी नहीं खाया , वैसे भी सुधा तो कभी उन्हें खाना पूछती भी नहीं थी , रसोई में जो भी बचा खुचा होता , अखिलेश जी उसी में पेट भर लेते !!

उनकी पत्नी के चले जाने के बाद बस जैसे तैसे जिंदगी कट रही थी , जिंदगी जीना तो वे कब से छोड़ चुके थे !!

रात के तीन बच चुके थे , अखिलेश जी को रह रहकर अपने दोस्त का ख्याल आ रहा था , उन्हें बिल्कूल भी नींद नहीं आ रही थी और उन्होंने अपने कमरे का दरवाजा खोला !!

चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , बेटा बहू अपने कमरे में सो रहे थे !!

अखिलेश जी मौका पाकर घर से बाहर निकल गए और वहीं पहुंच गए जहां वे रमाकांत जी को छोड़कर आए थे !!

वहां जाकर देखा तो रमाकांत जी कुछ लकडियों और सूखे पत्तों से आग जलाकर वहा बैठे ठंड से बचने का प्रयास कर रहे थे !!

रमाकांत जी ने जैसे ही अखिलेश को अपने पास आते देखा वह चौंक गए कि इतनी रात को अखिलेश वापस क्यों आ गया और अगर इसके बेटे बहू को यह भनक लगी तो वे लोग अखिलेश को कितना कोसेंगे ??

अखिलेश जी बोले रमाकांत , माफ करना उस समय मुझे तुम्हें यूं अकेला छोड़कर जाना पड़ा मगर मैं क्या करता ??

रमाकांत जी बोले भाई अखिलेश कोई बात नहीं मगर तुम्हें इतनी रात वापस यहां नहीं आना चाहिए था !! 

अखिलेश जी बोले बचपन का दोस्त है तू मेरा , तेरे लिए दो गालियां ओर खा लूंगा मगर तेरा साथ नहीं छोडूंगा !!

दोनों उस रात थोडी देर वहीं बैठें आग सेंकते रहे फिर अखिलेश जी ने अपनी दुकान खोली जिसमे जाकर वे लोग सो गए !!

दूसरे दिन सुबह जब करण और सुधा को अखिलेश जी घर में कहीं नजर नहीं आए तो उन्हें लगा शायद अखिलेश जी बाहर टहलने गए होंगे !!

दोनों को ड्यूटी पर जाना था इसलिए वे दोनों घर की चाबी पड़ोसी को देकर ऑफिस चले गए !!

थोड़ी देर बाद अखिलेश जी रमाकांत जी को अपने घर लाए और बोले आज मैं तुझे अपने हाथों से बनी चाय और खाना खिलाऊंगा !!

वहां दूसरी ओर सुधा का आज ऑफिस में सिर दुःखने लग गया था जिस वजह से उसने करण को फोन किया और हाफ डे लेने की बात कही !!

करण बोला सुधा तुम घर पहुंचो , मैं भी घर आ जाता हुं , आज मेरा भी ऑफिस में काम करने का मन नहीं कर रहा हैं !!

थोड़ी देर बाद दोनों घर पहुंच गए !!

जैसे ही घर में घुसे देखा अखिलेश जी रमाकांत जी और अपने लिए थाली लगा रहे हैं और उसमें खाना सर्व कर रहे हैं !!

अखिलेश जी ने सारा गर्म गर्म खाना अपने हाथों से बनाया था !!

यह देखते ही सुधा ने दोनों वृद्ध दोस्तों की थालियां छिनकर कहा – वाह पापाजी , हमारी पीठ पीछे आपने घर में यह ड्रामा लगा रखा हैं !!

हम दोनों पति पत्नी ऑफिस कमाने जाते हैं और आप घर में यहां मजे कर रहे हैं !!

करण बोला पापा , मेरा घर कोई धर्मशाला नहीं हैं जो आप रास्ते से किसी भी भिखारी को यहां ले आए और हमारे घर में खाना खिलाए !!

अखिलेश जी को यह सुनकर गुस्सा आ गया और वह बोले बचपन का दोस्त हैं यह मेरा , भिखारी नहीं हैं !!

करण भी गुस्से में बोला – हा हां होगा आपके बचपन का दोस्त , हम क्या करें ??

इसको हमारे घर तो नहीं रख सकते ना !!.

अखिलेश जी अपने दोस्त की ओर बेजजती सहन नहीं कर पाए और बोले चलो रमाकांत यहां से !!

अब मैं भी कभी यहां वापस नहीं आऊंगा !;

अब तक मेरे बेटा बहू मेरी ही बेज्जती करते थे मगर आज तुम्हारी बेज्जती कर इन्होंने सारी हदें पार कर दी हैं !!

करण और सुधा बोले हां हां चले जाईए अपने इस भिखारी दोस्त के साथ , इसके तो घर बार के ठिकाने हैं नहीं पर अब आपके भी नहीं रहेंगे !!

अखिलेश जी भी ताव में आकर बोले भले ही बाहर भीख मांग लूंगा मगर तुम्हारे घर वापस नहीं आऊंगा !! आज तुम लोगों ने हमारे मुंह से निवाला छिना हैं कल भगवान तुम्हारे मुंह से निवाला छिनेगा !!

करण बोला बुडढे कल की कल देखेंगे , तु आज की सोच !!

करण और सुधा ने आज बोलने की सारी हदें पार कर ली थी !!

अखिलेश जी रमाकांत जी को लेकर घर से बाहर आ गए !!

 

अखिलेश जी और रमाकांत जी जैसे ही घर से बाहर आए , रमाकांत जी अखिलेश जी को समझाते हुए बोला तू मेरी वजह से तेरा घर क्यों छोड़ रहा हैं ??

मैं तो बेसहारा हो ही गया हुं , तु क्यो बेसहारा हो रहा हैं ??

अखिलेश जी बोले – पत्नी नर्मदा के जाने के बाद वैसे भी बेटे बहू ने कभी पानी का ग्लास तक ना पूछा मुझे रमाकांत !! वो कहते हैं ना जोड़े में से एक भी चला जाए तो बेचारा दूसरा इंसान जिंदा रहकर भी मुर्दा के समान जिंदगी काटता हैं , कुछ ऐसी ही हालत हैं मेरी !!

ना कोई इज्जत करता हैं घर में मेरी और ना ही किसी को फिक्र हैं मेरी !!

कम से कम तेरे जैसा एक दोस्त तो हैं मेरे पास जो कभी साथ नहीं छोड़ेगा , चाहे कैसी भी परिस्थिति हो !!

रमाकांत जी भी अखिलेश जी का साथ पाकर खुश हुए और दोनों दोस्त घर से निकल पड़े !!

अखिलेश जी के पास अपनी दुकान की चाबी थी , दोनों वहीं आ गए , बेचारों को अब तक खाना भी नसीब नहीं हुआ था क्योंकि बहू तो उनकी थाली तक छिन चुकी थी !!

अखिलेश जी की जेब में दुकान से कमाई हुई आमदनी थी , दोनों ने उन्ही पैसों से खाना खाया और रात को दुकान में ही सो गए !!

दूसरे दिन एक व्यक्ति दुकान पर आकर बोला – अब यह दुकान मेरी हैं , आप लोगों को यहां से जाना होगा !!

यह सुनकर अखिलेश जी को झटका लगा !!

वह बोले तुम्हारी दुकान ……

वह आदमी बोला हां आपके बेटे ने रातों रात यह दुकान मुझे बेच दी है , आप चाहे तो एग्रीमेंट के कागज देख सकते हैं !!

एग्रीमेंट के कागज देख भड़कते हुए अखिलेश जी करण से मिलने पहुंचे और बोले तुम्हारी इतनी हिम्मत तुमने मेरी दुकान बेच दी जो एकमात्र मेरा कमाने का और रहने का जरिया थी !!

करण बोला पापा , आप जिस अकड़ से यहां से गए थे , वह अकड़ छिन ली मैंने आपसे !!

मैंने आपसे पहले ही कह दिया कि मेरा घर , मेरी दुकान धर्मशाला नहीं हैं !! अब आप भी आपके दोस्त की तरह भिखारी हो गए हो !! लो कटोरा और दोनों भीख मांगों !!

 जिस दुकान का टशन दिखाकर आप घर से निकले थे मैंने और सुधा ने सोचा क्यूं ना आपसे आपका टशन छिन लिया जाए फिर देखते हैं आप वापस यहां हाथ फैलाने कैसे नहीं आते हो ??

आज अखिलेश जी को अपने खून से नफरत हो गई थी !! वे रोते हुए बोले बेटा !! अच्छा नतीजा दिया हैं तुमने मेरी परवरिश का और वे घर से बाहर आ गए जहां रमाकांत जी सब कुछ सुन चुके थे !!

दोनों ने मिलकर फैसला किया दोनों कुछ नया काम धंधा करेंगे !!

वहीं वृंदावन में मंदीर के पास भगवान के आभूषण , हार और फूल की बहुत बड़ी दुकान थी जहां बाहर बोर्ड लगाया हुआ था कि दुकान में काम करने वाले आदमी की तलाश हैं !!

दोनों वहां काम मांगने गए तो दोनों को काम पर रख लिया गया !!

वह दुकान एक सेठ और सेठानी मिलकर चलाते थे !! 

अखिलेश जी और रमाकांत जी ने जब बताया कि उनके रहने का कोई ठिकाना नहीं हैं तो सेठ सेठानी ने उन्हें रात अपनी दुकान में सोने की इजाजत दे दी !!

सेठ – सेठानी की दुकान बहुत अच्छी चलती थी !! अखिलेश जी और रमाकांत जी दुकान में खुब मेहनत करने लगे !! सेठ सेठानी अच्छे होने के साथ साथ इतने दयालू थे की हर शनिवार वहां मंदिर के पास बैठे भिखारियों को खाना भी खिलाते !!

इतने अच्छे होने के बावजूद उनके साथ एक विडंबना यह थी कि उनकी कोई औलाद नहीं थी !!

रमाकांत जी और अखिलेश जी की मेहनत के कारण उनकी दुकान अब ओर अच्छी चल रही थी क्योंकि ग्राहकों की भीड को संभालना दोनो दोस्तों को बखूबी आता था !!

सेठ सेठानी को अब दोनों वृद्ध दोस्तो पर विश्वास हो गया था 

एक दिन सेठ उनसे खुश होकर बोले तुम दोनों के आने के बाद मेरी बहुत तरक्की हुई हैं इसलिए मैं तुम्हारा पगार बढ़ा देता हुं और एक वादा चाहता हुं कि भविष्य में कभी मैं और मेरी पत्नी अगर इस शहर में नहीं हैं तब भी तुम दोनों यह दुकान इसी तरह इमानदारी से चलाओ और हर शनिवार मंदिर के बाहर बैठे लोगों को खाना जरूर खिलाओ !!

अखिलेश जी और रमाकांत जी बोले आपने हम पर इतना विश्वास किया हैं , इन बेसहाराओं को सहारा दिया हैं , हम आपसे वादा करते हैं !!

सेठ ने आज उनकी सारी व्यथा पूछी तो दोनों वृद्ध लोगों ने अपनी सारी आप बीती बताई !!

सेठ को दोनों पर बहुत तरस आया और बोले अगर बच्चे ऐसे होते हैं तो मैं भगवान का शुक्र मनाता हुं कि उन्होंने हमें बेऔलाद रखा !!

सेठ ने घर जाकर सेठानी को सारी बात बताई तो सेठानी को भी दोनों वृद्ध पर तरस आया और वे बोली वे दोनों बुढे जब पहली बार काम मांगने आए थे तभी उनके चेहरे पर एक अलग ही पीड़ा थी , निराशा उनके चेहरे से साफ झलक रही थी , सच ऐसी औलाद से तो औलाद ना हो , हम बे औलाद ही अच्छे हैं !!

सेठ सेठानी बहुत समय से कहीं गए नहीं थे , उन्हें कभी दुकान से फुर्सत ही नहीं मिली थी और अब दोनों बुढो पर सेठ सेठानी को बहुत विश्वास हो गया था इसलिए दोनों ने विदेश यात्रा घूमने का प्लान बनाया !!

अखिलेश जी और रमाकांत जी के भरोसे दुकान छोड़ दोनों सेठ सेठानी विदेश यात्रा के लिए निकल पड़े मगर रास्ते में उनका प्लेन क्रेश हुआ और दोनों वहीं भगवान को प्यारे हो गए !!

यहां अखिलेश जी और रमाकांत जी मन लगाकर दुकान संभाल रहे थे और हर शनिवार बेसहारा लोगों को खाना भी खिला रहे थे !!

दोनों की बहुत समय से सेठ सेठानी से कोई बात नहीं हुई थी , वे सोच रहे थे विदेश से फोन करना असंभव होगा तभी तो दोनों ने एक फोन भी नहीं किया और जब भी यहां से यह लोग फोन करते तो सेठ सेठानी के नम्बर बंद बताते !!

सेठ सेठानी को गए एक महिना हो चुका था मगर वे लोग अब तक क्यूं लौटे नहीं यहीं सोचकर दोनों दोस्त पुलिस स्टेशन गए और सारी बात बताई !!

पुलिस ने पता करके बताया कि उनका प्लैन तो कब का क्रैश हो चुका हैं , वे लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे !!

दोनों दोस्त यह सुनकर बहुत रोए मगर सेठ से किया वादा भी तो पुरा करना था इसलिए दोनों ने वह दुकान इमानदारी पूर्वक चलाना नहीं छोड़ा !!

एक शनिवार जब वे लोग मंदीर के बाहर बैठे लोगों को खाना खिला रहे थे तो अखिलेश जी ने अपने बेटे – बहू को उस लाईन में बैठे देखा !!

अखिलेश जी उन्हें देख उनकी थाली में खाना डाले बिना वहां से निकल गए मगर पीछे से रमाकांत जी आए और उनकी थाली में खाना डाला !!

करण और सुधा उनके सामने रोते हुए बोले हम लोगों ने आप लोगों के साथ इतना बुरा व्यवहार किया इसलिए ही शायद भगवान ने हमारा यह हाल कर दिया हैं !!

हमें माफ कर दीजिए अंकल !!

रमाकांत जी बोले मैं तो माफ कर दूंगा मगर तुमने भगवान जैसे तुम्हारे पिता का इतना दिल दुःखाया हैं जिसे भगवान भी माफ नहीं करेगा !!

लो खाना खा लो और किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना !!

करण और सुधा हाथ जोडे एकटक उनको देखने लगे !!

आज उन्हें वह दिन याद आ रहा था जब उन्होंने अपने पापा और उनके दोस्त की खाने की थाली तक छिन ली थी और आज

वहीं वृद्ध इन्हें खाना परोस रहा था !!

रमाकांत जी आगे आकर अखिलेश जी से बोले माफ कर दें उन्हें आखिर बच्चे ही तो हैं !!

अखिलेश जी बोले तु माफ कर सकता हैं कभी तेरे बच्चों को ?? जिन्होंने तुझे यहां ठंड में मरने छोड़ दिया था !!

इस बात पर रमाकांत जी चुप हो गए !!

रमाकांत जी को जवाब मिल चुका था !!

थोडे दिनों बाद उन्हें एक फटेहाल कपड़ों में एक औरत दिखाई दी जो दिख तो उनकी बहू जैसी रही थी मगर उसकी हरकते कुछ पागल जैसी थी !!

 वह उसके पास गए तो उनकी बहू ने उन्हें पहचाना भी नहीं !!

थोड़ी देर बाद पीछे से बहू के पापा किशोर जी और बेटा कल्पेश दिखे और दोनों रमाकांत जी को अचानक सामने देख चौंक गए !!

कल्पेश अपने पापा के पैरो में गिर पडा और बोला पापा हमें अपनी करनी की सजा मिल गई हैं !! 

हमने आपको यहां अकेला छोड़ दिया था शायद इसलिए आज हमारा यह हाल हैं !!

राखी का मानसिक संतुलन खो बैठा हैं पापा इसलिए हम वापस यहां इसे दर्शन कराने और आपको ढूंढने के लिए आए !!

पापा चलिए हमारे साथ !!

भगवान शायद हमारे पापो की थोडी सजा कम कर दें !!

रमाकांत जी बोले नहीं बेटा !! मैं यहां बहुत खुश हुं !!

भगवान एक हाथ से कुछ छिनता है तो दूसरे हाथ से कुछ अच्छा जरूर देता है !!

मुझे भगवान ने यहां बहुत कुछ दिया हैं !!

उतने में अखिलेश जी भी वहां पहुंच गए !!

अखिलेश को देखकर रमाकांत जी बोले तुम लोगों ने तो मुझे मरने के लिए छोड़ दिया था मगर भगवान ने मेरे लिए यह फरिश्ता भेज दिया था !!

दोनों दोस्त एक दूसरे का हाथ पकडकर वापस अपनी दुकान संभालने चले गए !!

दोनों की बचपन की दोस्ती आज लोगों के लिए वहां मिसाल बन गई थी !!

दोस्तों , कायनात गंवा हैं मां बाप का बुरा करके आज तक कोई सुखी नहीं रह पाया हैं इसलिए तो कहते हैं माता पिता के आर्शीवाद से बरकत होती हैं !!

हो सके तो कभी माता पिता का दिल ना दुःखाए !!

आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया जरूर बताएं 

स्वाति जैन

धन्यवाद !!

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