गायत्रीजी शाम को होने वाली अपनी किटी पार्टी की तैयारी में लगी हुई थीं।आज की किटी पार्टी ज़्यादा खास होने वाली थी क्योंकि उनकी चहेती बहन मालती जी भी थोड़ी ही देर में दो तीन दिन के लिए आने वाली थीं। गायत्री जी के साथ उनकी बहू मीता भी बराबर हाथ बंटा रही थी। बहुत सारी चीज़ें बन चुकी थीं बस प्रस्तुत करने का प्रारूप बाकी था।
आपको बता दूँ कि गायत्री जी यूँ तो बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाली सर्वगुणसम्पन्न महिला थीं बस एक कमी कह ली जाए या फिर आदत कि कम बोलने वाले इंसान को वो अच्छा नहीं समझती थीं और अगर ये आदत अपनी ही बहू में हो तो फिर क्या कहना है…।
मीता अपनी सास के एक दम विपरीत,अंतर्मुखी स्वभाव वाली,अपनी बात को मुश्किल से व्यक्त कर पाती थी और इसी वजह से कभी कभी चिड़चिड़ा जाती थी जो उसके शरीर की भावभंगिमा से प्रकट होता था,शब्दों से कभी नहीं..।
मीता के पति विपुल ने कई बार समझाया कि अपनी बात को स्पष्ट कहना सीखो,पर मीता इसको बहस करना मानती थी और तर्कों कुतर्कों से अपने को दूर रखती थी पर कभी कभी उसका ये मौन बहुत फलदायी होता था और कभी कभी कष्टप्रद।
खैर किटी पार्टी की तरफ वापस चलते हैं। मीता ने खाने पीने का सब सामान मेज पर लगा दिया था और तभी मालती मौसी ने प्रवेश किया। मीता ने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और उनको मीठा और पानी दिया।मालती जी का शुरू से मीता से बड़ा स्नेह रहा है,उन्होंने मीता के सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया तभी गायत्री जी की और भी सहेलियां आने लगीं और पार्टी शुरू हो गयी। सब औरतें खाने पीने के साथ गप्पें लड़ा रही थीं और मीता एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सबके बीच में हाँ हूँ में प्रत्युत्तर दे रही थी। तभी गायत्री जी की एक सहेली बोलीं,”क्या गायत्री तुम्हारी बहू तो बिल्कुल तुमसे उल्टी है। बहुत कम बोलती है, इसको कुछ बोलना ,बात करना सिखाओ।”
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इस पर गायत्री जी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा,”अब क्या बताएं भाभीजी,बहुत समझाया इनको कि, बोला करो सबसे बात किया करो पर ये बिल्कुल भी व्यवहारकुशल नहीं है। अब जैसी मर्ज़ी हो वैसा करें आजकल की बहुओं को कुछ कहने वाला भी तो नहीं है।”
ये सुनकर मीता बहुत उदास हो गयी क्योंकि आज सुबह से बड़े मन से गायत्री जी के साथ काम में लगी हुई थी।
मीता के मनोभावों को पढ़कर मालती जी से रहा न गया क्योंकि वो अपनी बहन की आदतों से भली भांति परिचित थीं। वो गायत्री जी से मज़ाक के लहजे में बोलीं,”तुम सब कुछ तो कह लेती हो फिर साथ में यह भी कह देती हो कि आजकल किसी से कुछ कहने वाला नहीं है। और व्यवहार कुशलता की परिभाषा ज़रा मुझको भी सिखा दो शायद बुढ़ापे में कुछ मैं भी सीख लूं।”
फिर मालती जी ने उनकी तरफ निशाना साधा जिन्होंने मीता पर कम बोलने की टिप्पणी की थी और बोलीं,”मांफ कीजियेगा भाभीजी पिछली बार मैं भी गायत्री के साथ आपके घर आई थी और आपके घर हमारी बड़ी आवभगत हुई थी आपकी बहू बहुत हंसमुख, बातूनी और होशियार लगी थी मुझे, पर साथ ही मैं यह भी देख रही थी कि वो आपकी कई बातों को अनसुना कर रही थी,कई बातों को बीच मे काट रही थी और दो तीन बार उसने आपको पलट कर जवाब भी दिया था। पर शायद आपने ध्यान नहीं दिया होगा क्योंकि आप अभ्यस्त हो गयी होंगी उस व्यवहार की।
और आज आपने हमारी मीता के स्वभाव पर टिप्पणी की, आपके साथ उसकी सास ने सुर में सुर मिलाया फिर भी वो उसी मुस्कान के साथ स्थिरचित्त खड़ी है क्या व्यवहारकुशलता का इससे बड़ा कोई उदाहरण हो सकता है?? कम बोलना और ज़्यादा बोलना ये आपके बाह्य व्यक्तित्व के पहलू हैं जिनसे व्यवहार कुशलता को नहीं आंका जा सकता क्योंकि व्यवहारकुशलता सिर्फ वाणी से नहीं परिभाषित होती है बल्कि आपके आचरण और भाव भंगिमाओं से भी परिलक्षित होती है।”
मालती जी के तर्कों से सभी महिलाएं संतुष्ट हुईं क्योंकि लगभग सभी लोग इस पड़ाव से गुज़र चुकी थीं।
मीता ने हृदय से मालती मौसी को धन्यवाद दिया और गायत्री जी मन ही मन सोचने लगीं कि इन सबके जाने के बाद आज बहन बहुत सुनाएगी तभी मालती जी बोल पड़ीं,”गायत्री तुझसे तो मैं बाद में बात करूंगी चल अभी थोड़ी मस्ती करते हैं वैसे भी मेरा लेक्चर लम्बा हो गया पर यकीन मानो तुम सब लोग यही खुशियों की चाभी है कि जो जैसा है उसको वैसा ही अपनाओ,सबको अपने मुताबिक बदलना चाहोगे तो एक दिन बिल्कुल अकेले रह जाओगे। मेरी इसी सोच से मेरी बहू और मेरा रिश्ता बहुत स्नेहयुक्त है और मैं चाहती हूं आप सब लोग भी खुशी से रहें। जीवन छणभंगुर है इसके हर पल को भरपूर जियो।
मालती जी की बात सुनकर कमरे में तालियाँ गूंज उठीं
vd