हां मैंने एक पिता गोद लिया है – मुकेश कुमार

मेरा नाम राकेश कुमार है मैं बचपन से ही मेरे पिता नहीं हैं । मैं हर सप्ताह रविवार के दिन  एक वृद्ध आश्रम में जाता हूं और वहां पर अपने घर से अच्छा खाना बना कर वृद्ध आश्रम में रह रहे बुजुर्गों को खिलाता हूं।  उन बुजुर्गों में ही मैं अपनी मां बाप को महसूस करता हूं। 

 एक रविवार मैं अपने घर से बनाए हुए  खाने को  वृद्ध आश्रम में रह रहे बुजुर्गों  को खिला रहा था। तभी मेरी नजर अकेले में एक बेंच पर बैठे बुजुर्ग पर पड़ी. मैंने उन्हें खाना खाने के लिए आवाज दी लेकिन ऐसा लगा कि उन्होंने मेरी आवाज सुना ही नहीं। तभी  मेरे बगल में खड़े एक बुजुर्ग नहीं बताया कि ये आज ही वृद्ध आश्रम में सुबह-सुबह आए हैं,  इनका बेटा कह कर गया है कि वह कुछ महीनों के लिए अमेरिका जा रहा है अमेरिका से वापस आते ही अपने पिता को अपने साथ रख लेगा। 



 बुजुर्ग की बातें सुन मैंने मन में  सोचा लोग कितना झूठ बोलते हैं जब अपने पिता को अपने साथ नहीं रखना है तो साफ-साफ क्यों नहीं कह देते झूठा दिलासा देकर क्यों जाते हैं।  बेचारे  बूढ़े मां-बाप अपने बेटों के इंतजार में अपनी जिंदगी गुजार देते हैं लेकिन बेटे कभी सुध लेने नहीं आते हैं।  हां सही है कि इनके गुजारा के लिए पैसे जरूर भेज देते हैं।  कई तो ऐसे हैं जो शुरू के कुछ महीने तो पैसे भेजते हैं उसके बाद ना तो वह अपने मां-बाप की खोज खबर लेते हैं और ना ही पैसे ही भेजते हैं। आज की दुनिया में ऐसा लगता है कि बुजुर्गों होना  सबसे बड़ा अपराध हो गया है।  

सब को खाना खिलाने के बाद मैं बेंच पर अकेले बैठे बुजुर्ग के पास गया। मैं जाकर उनके बगल में बैठ गया मैंने महसूस किया कि वह बुजुर्ग रो रहे हैं।  मैंने आखिर उन बुजुर्ग से पूछ ही लिया, “अंकल आप क्यों रो रहे हैं।” 

 अंकल ने जवाब दिया, “कुछ नहीं बेटा बस ऐसे ही अपनी किस्मत पर रो रहा हूं जिस बेटे को पढ़ा लिखा कर आज डॉक्टर बनाया।  उसके पास  सैकड़ों मरीजों को रखने के लिए बेड तो है लेकिन एक बाप को रखने के लिए बेड नहीं है क्योंकि वह मरीज उसे उस बेड के लिए पैसा देते हैं लेकिन एक बूढ़ा बाप कहां से पैसे देगा इसलिए बेटे ने वृद्धाश्रम  पहुंचा दिया। 



आज मेरे बेट- बहू ने मुझे घर से बाहर कर दिया, कहां जाऊंगा मैं अब, किसी रिश्तेदार के पास  भी अगर जाऊं तो कितने दिन रह सकता हूं आज के समय में कोई भी अपना नहीं होता लोग जब अपने मां बाप को साथ नहीं रखते तो दूसरे के मां-बाप को क्या रखेंगे।”  यह कहकर अंकल फूट-फूट कर रोने लगे। 

 रोते-रोते कहने लगे, “यह सब मेरी ही कर्मों की सजा है सच्च ही  कहा गया है जैसा इंसान करता है उसको अपने कर्मों की सजा इसी पृथ्वी पर भुगतनी पड़ती है स्वर्ग नर्क कहीं और नहीं इसी पृथ्वी पर होता है और मेरे कर्मों की सजा मुझे मिल रही है। 

मैंने अंकल से कहा, “अंकल आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है आप मुझे अपना बेटा समझ कर सब कुछ चाहे तो बता सकते हैं शायद मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊँ ।” 

“बेटा बात उन दिनों की है जब मैं कोलकाता में रहा करता था मेरा पुश्तैनी घर कोलकाता में ही था कॉलेज में पढ़ते पढ़ते मुझे गलत लड़कों से दोस्ती हो गई उनके संग ही शराब पीने की भी लत लग गई और उनके साथ ही कोलकाता के प्रसिद्ध वेश्याओं का मोहल्ला सोनागाछी भी मैं जाने लगा।  वहीं पर एक वेश्या से जाते जाते मुझे प्यार हो गया। धीरे-धीरे वह भी मुझसे प्यार करने लगी। मैंने उसे वेश्यागिरी  का धंधा करने से मना कर दिया। मैंने उसे बोल दिया था कि तुम पैसों की चिंता मत करना हर महीने तुम्हारे खर्चे के पैसे मैं भेज दिया करूंगा। 

मुझे कुछ दिनों बाद पता चला कि वह मां बनने वाली है।  अब मुझसे शादी करने की जिद करने लगी।  उसका कहना यह था कि भले ही मैं वेश्या हूँ  लेकिन बिना शादी के मैं मां नहीं बनूंगी। मैंने अपने घर में जैसे ही उससे शादी की बात की।  मेरे पिता तो लगा कि मुझे मार ही डालेंगे।  वह कहने लगे मुझे पता था कि तुम रात को कहां जाते हो लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि तुम वहां की गंदगी को घर में लाने की के बारे में सोचोगे।  मेरे जीते जी ऐसा कभी नहीं हो सकता। 

मेरे पिताजी को लग गया कि मैं उस वेश्या से शादी कर लूंगा उन्होंने कोलकाता की अपनी सारी जमीन जायदाद बेचकर हमेशा-हमेशा के लिए दिल्ली आकर बस गए। 



दिल्ली लाकर कुछ दिनों के लिए मुझे नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कर दिया गया। वहां से निकलने के बाद मैंने बहुत कोशिश की उससे संपर्क करने की लेकिन उससे संपर्क नहीं हो पाया मैंने अपने दोस्त से भी पता करने की कोशिश की लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला सबने यही कहा कि अचानक से वह सोनागाछी एरिया से गायब हो गई और हमेशा हमेशा के लिए कहां चली गई आज तक पता नहीं चला। फिर मेरी भी शादी हो गई और उसके बाद मैं भी अपनी दुनिया में गुम हो गया। 

 लेकिन आज मुझे यह एहसास हो रहा है कि जब कोई अपना आपको छोड़कर जाता है तो आपको कैसा एहसास होता है। 

अंकल की कहानी सुनने के बाद मैंने अंकल से कहा अंकल एक बात कहूं क्या आप हमारे साथ हमारे घर चलेंगे। 

अंकल ने कहा नहीं बेटा मैं अब किसी के घर नहीं जाऊंगा जो मेरी किस्मत में है वह तो मुझे बर्दाश्त करना ही होगा मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता बेटा फिर तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे। 

अंकल मेरे घर में भी कोई नहीं है कहूं तो एक तरह  से मैं भी अनाथ ही हूं।  मेरे पिताजी सेना में नौकरी करते थे मैं जब 5 साल का था तभी पिताजी शहीद हो गए।  मुझे तो अब पिताजी की ठीक से शक्ल भी याद नहीं है।  हम एक भाई और बहन हैं  मेरी मां ने बहुत मुश्किल हालात से हमें पाला।  वह भी पिछले साल कोरोना मे भगवान को प्यारी हो गई। 

बस मेरे घर में मेरे दो बच्चे और मेरी पत्नी रहती है और मेरी पत्नी कभी भी मेरे लिए हुए फैसलों का विरोध नहीं करती है क्योंकि उसे पता है कि मैं कभी भी कोई गलत फैसला नहीं करता।  अंकल अगर आप हमारे साथ रहेंगे मुझे भी एक बाप का प्यार मिल जाएगा और मेरे बच्चों का दादा का प्यार जिसके लिए मैं  बचपन से  तरसता रहा हूं। अंकल सच कहूं तो हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है।  यह जरूरी नहीं है कि जब दो मनुष्यों के बीच खून का रिश्ता हो तभी वह रिश्ता सच्चा होता है कई बार दिन के रिश्ते भी खून के रिश्ते से बड़े हो जाते हैं। 



अंकल जिसके पास बेटा नहीं होता है वह अनाथालय जाकर बच्चों को गोद लेता है और अपनी सुनी गोद उस बच्चे से भर लेता है तो क्या जिनके पास मां-बाप नहीं हो वह बृद्धाश्रम जाकर मां-बाप गोद नहीं ले सकते। 

मेरी बातें सुन अंकल की आंखों से आंसू झर झर बहने लगे।  वह आकर मेरे गले लग गए और उन्होंने गले लग कर कहा।  एक मेरा सगा बेटा था जिसने मुझे बोझ समझकर वृद्ध आश्रम पहुंचा दिया और एक तुम हो जिससे मेरा कोई रिश्ता नहीं है फिर भी तुम अपने परिवार के साथ मुझे रखना चाहते हो। 

 अंकल मैंने आपसे कहा ना मुझे मां का प्यार तो मिला लेकिन मैं अपने पिता के प्यार से बचपन से मरहूम रहा।    लेकिन मैं आपको अपना पिता बनाकर अपने साथ रखना चाहता हूं अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं आज से आपको बाबूजी कह सकता हूं।  यह सुन अंकल के आंखों से आंसू के झरने बहने लगे। 

 उन्होंने कहा रुको  बेटा, अभी मैं अंदर से आता हूं अंकल अंदर गए और वहां से अपना बैग लेकर मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो गए। 

आज अंकल मेरे साथ ही रहते हैं  लेकिन अंकल की तरह नहीं बल्कि  मेरे पिता की तरह।  वह भी मेरे बच्चों के साथ दादा की तरह रहते हैं और बच्चे भी उनको अपने दादा से बिल्कुल भी कम नहीं समझते हैं। 

 दोस्तों वैसे तो यह कहानी काल्पनिक है लेकिन मेरा मानना यह है कि धीरे-धीरे हमारे समाज में यह बदलाव भी होना जरूरी है जब हमारे पास कोई बेटा -बेटी नहीं होता है तो हम अनाथालय जाकर बेटा-बेटी गोद लेते हैं तो क्या हम माता-पिता गोद नहीं ले सकते हैं यह पहल करने की जरूरत है आपकी इस कहानी को पढ़ने के बाद क्या राय है कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा ।

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