गृहस्थी की पंच परमेश्वर (भाग 2) – डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

आदित्य की मां सीधी साधी थी वो शोभा से अगर किसी काम को कहती तो वो उल्टे जवाब देकर उनको चुप करा देती। बेटे की नई गृहस्थी है ये सोचकर आदित्य के माता-पिता अपना दर्द दिल में छुपाकर आदित्य के सामने सामान्य बने रहते। पर बातें कितने दिन तक छुप सकती थी। एक दिन आदित्य की माताजी चक्कर खाकर गिर गई और उस दिन शोभा का अपनी दोस्तों के साथ बाहर जाने का कार्यक्रम था। आदित्य भी ऑफिस के काम से बाहर था।

माताजी को गिरने के बाद काफ़ी चोट लगी थी उनके हाथ में भी फ्रैक्चर हो गया था पर शोभा आज भी घर में रुकने को तैयार नहीं थी। उसके ससुर ने भी बहुत अनुनय किया पर उसके लिए इन सबसे ज्यादा दोस्तों के साथ घूमना था। शाम को आदित्य के आने पर भी शोभा घर नहीं पहुंची थी। वो अपना मस्ती करके घर पहुंची तब तक आदित्य ने उसको थोड़ा समझाने की कोशिश की पर उसने उल्टा आदित्य से ही झगड़ना शुरू कर दिया और अपना सामान पैक करके अपने मायके चली गई।

अब आदित्य के लिए बहुत कठिन समय था एक तरफ आदित्य की माता जी के हाथ में फ्रैक्चर,पिता की भी तबीयत भी खराब ऊपर से आदित्य की नौकरी। उसने थोड़े दिन की छुट्टी ली और शोभा को भी फोन किया। शोभा ने उससे कुछ बात भी नहीं की बल्कि पुलिस थाने में ही जाकर आदित्य के माता पिता के खिलाफ प्रताड़ना का केस कर दिया।पुलिस घर आई। पूरे मोहल्ले के सामने बहुत किरकिरी हुई।आदित्य ने अपनी तरफ से शोभा से फिर बात करने की कोशिश की, वो किसी भी तरह अपने घर को बिखरने से बचाना चाहता था।

उधर शोभा कभी झूठी रिपोर्ट और वकील के नोटिस से आदित्य की जिंदगी को बरबाद करने पर तुली थी।अब उसने ये कहलवाया कि वो आदित्य के साथ रहने को तैयार है अगर वो अपने माता-पिता को छोड़ देता है। ये बात आदित्य के लिए बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं थी।उसने इस बात को नकार दिया। इससे शोभा और भी चिढ़ गई। उसके माता-पिता भी उसको ना समझाकर आदित्य में ही कमी निकाल रहे थे। नौबत तलाक तो पहुंच ही चुकी थी।

इसी तरह कोर्ट कचहरी के चक्कर में काफ़ी समय बीत गया था। थकहार कर आदित्य ने शोभा को वकील के द्वारा कोर्ट के बाहर आपसी सहमति से तलाक के संदेश भिजवाया। शोभा को तो यही चाहिए था, उसको आदित्य से कोई दिली लगाव तो था नहीं। उसने एक बड़ी रकम उस तलाक के बदले में मांगी। आदित्य ने भी अपने माता-पिता की स्थिति देखते हुए अपनी जमा पूंजी शोभा को देते हुए उससे पीछा छुड़ाया।

आदित्य पूरी तरह टूट चुका था उसको समझ नहीं आ रहा था कि शोभा ने उससे किस जन्म का बदला लिया है। आदित्य के माता-पिता भी बेटे के गम में घुलते हुए और उसके लिए सही लड़की का चुनाव ना कर पाने के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हुए एक-एक करके स्वर्ग सिधार गए। पिछले दो सालों में आदित्य की दुनिया ही बदल गई।

जो घर सबके हंसी के ठहाके से गूंजता था वो आज वीरान हो गया था। ज़िंदगी के इतने भयावह पलों की उसने परिकल्पना भी नहीं की थी। इन सबसे घबराकर वो अपने शहर को छोड़कर कंपनी के दूसरे ऑफिस में चला गया। साथ साथ उसने कानून की भी पढ़ाई शुरू कर दी थी।

जगह तो बदल गई थी पर अब उसके दिल में लडकियों और स्त्रियों के लिए पूरी तरह कड़वाहट आ गई थी। ऑफिस में भी वो सबसे दूर रहता। इसी ऑफिस में परिधि काम करती थी। सबसे हंसती-बोलती हर किसी की मदद के लिए तैयार। उसने आदित्य से भी बात करने की कोशिश की पर आदित्य को तो अब सब लड़कियों में त्रिया चरित्र ही नज़र आता था। एक दिन ऐसे ही कम्पनी का कोई प्रोजेक्ट को लेकर कोई बड़ी समस्या आ गई।

जिन लोगों को सौंपना था उन्होंने उसमें ऐसी कमियां बताई कि वो प्रोजेक्ट हाथ से जा सकता था। उन्होंने समस्या निराकरण के लिए सिर्फ 2 घंटे का समय दिया। उस दिन आदित्य थोड़ा देर से आने वाला था क्योंकि उसकी कानून की परीक्षा थी। जहां समस्या आ रही थी वो भाग आदित्य ने ही किया था। प्रबंधन समिति काफी तनाव में थी। तब परिधि ने ही आदित्य के आने से पहले समस्या को दूर करके समय से पहले उस प्रॉजेक्ट को उपभोक्ता को सौंप दिया था।

अब प्रबंधन समिति ने आदित्य के साथ परिधि को भी उस प्रॉजेक्ट में बड़ी भूमिका दे दी थी। हालांकि परिधि ने ऐसा कुछ सोचकर ये नहीं किया था। जब आदित्य ऑफिस पहुंचा तो उसे सारी बात तो पता नहीं थी पर प्रबंधन समिति ने जब उसको परिधि के साथ काम करने के लिए सूचित किया, तब वो अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाया।

उसने बाहर आकर परिधि को सबके सामने बहुत कुछ उल्टा सीधा सुना दिया। उसने यहां तक कह दिया कि वो लड़कियों की मानसिकता को बहुत अच्छी तरह से जानता है क्योंकि उनको सिर्फ अपनी शक्ल और अदाएं दिखाकर दूसरों से काम निकलवाना आता है। उसने प्रोजेक्ट में अपनी भूमिका भी ऐसे ही उल्टे-सीधे हथकंडों को अपनाकर सुनिश्चित की है। परिधि तो कुछ कह ही नहीं पाई और बस किसी तरह अपने आंसुओं को छिपाकर वहां से निकल आई।

अगले दो दिन जब परिधि ऑफिस नहीं आई और तब तक आदित्य को सारी बात भी पता चल चुकी थी। आदित्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो परिधि के ऑफिस ना आने से थोड़ा परेशान हुआ।फिर उसने ऑफिस से परिधि का पता लिया और उसके घर पहुंच गया। वहां पर वो नहीं थी। मकान मालिक से पता चला कि वो हॉस्पिटल में है।

उनसे ही पता चला कि परिधि के माता पिता नहीं है,सिर्फ बड़ा भाई है,वो भी मानसिक रूप से असंतुलित है। उसको थैलेसीमिया जैसी दुर्लभ बीमारी भी थी जिसमें हर महीने उसके शरीर में रक्त चढ़ाया जाता था। छोटी होने के बाबजूद परिधि ही उसको संभालती थी और तो और स्वाभिमानी भी इतनी थी कि किसी से कोई मदद नहीं लेती थी।

ये सब सुनकर आदित्य के दिल में उसके लिए काफ़ी इज्ज़त बढ़ गई। उसे अपनी कही बातों का बहुत अफसोस था। वो हॉस्पिटल पहुंचा और वहां पहुंचकर उसने परिधि से माफी मांगी। इस तरह उनकी दोस्ती शुरू हुई। अब धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आ गए। परिधि भी आदित्य के बारे में सब कुछ जान गई थी। परिधि के प्यार ने बहुत हद तक आदित्य के मन से स्त्रियों के प्रति उपजी घृणा को कम कर दिया था। साथ ही साथ इधर उसकी वकालत भी पूरी हो गई थी।

अब आदित्य ने नौकरी छोड़कर वकालत करनी शुरू की जहां उसका मकसद सच्चे लोगों को न्याय दिलवाना था,उसकी किस्मत ने भी साथ दिया। आदित्य ने जितने भी मुकदमें लड़ें उनमें वो हमेशा जीता। कई बार वो कुछ नहीं सोच पाता तब परिधि भी अपने सुझावों द्वारा उसकी मदद करती। वो सही मायने में आदित्य की बर्फ जैसी जिंदगी में ऊष्मा बन कर आई थी।एक दिन आदित्य ने परिधि को शादी के लिए पूछा और खुशी खुशी वो प्यारे से बंधन में बंध गए। पिछली घटनाओं की स्याह अतीत पर परिधि ने अपने प्यार की रोशनी डाल दी थी। आदित्य को यकीन भी नहीं थी कि उसकी जिंदगी में परिधि के रूप में प्यार की वापसी भी हो सकती है। अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि उसके मोबाइल की घंटी बजी।

फोन परिधि का ही था जो उन दोनों के जुड़वा बच्चों के साथ अपने रिश्तेदार के यहां विवाह में सम्मिलित होने दो दिन के लिए गई हुई थी। परिधि को आज आदित्य की आवाज़ थकी थकी सी लगी उसने आदित्य से हल्की फुल्की बात के बाद पूछा कि आज कोई नया केस आया था क्या? आदित्य ने आश्चर्य से पूछा कि तुम्हें कैसे पता तब परिधि ने हंसते हुए कहा कि जिसका पति इतना बड़ा वकील हो तो आवाज़ से कुछ राज़ पहचानने का हुनर तो वो भी रखती है।

तब आदित्य ने उसे आज आए केस के विषय में बताया,परिधि ने आदित्य का हाल समझते हुए कहा कि कई बार हमें दिमाग के साथ साथ दिल की भी सुननी चाहिए। आपको एक बार उस लड़के के विषय में थोड़ी सी जानकारी पता लगानी चाहिए। अगर वो लड़का ठीक कह रहा हो तो फीस की चिंता ना करते हुए उस लड़के की तरफ से केस लड़ना चाहिए।

परिधि की बातों ने आदित्य को काफ़ी सहारा दिया था। अब आदित्य को नई दिशा मिल गई थी। उसने हंसते हुए परिधि को कहा कि दुनिया की नज़र में मैं कितना भी बड़ा वकील क्यों ना बन जाऊं पर मेरी सुखी गृहस्थी की पंच परमेश्वर तो तुम ही रहोगी। वैसे भी जिसकी जिंदगी तुम जैसी पत्नी हो उसे कोई समस्या हो सकती है भला। शादी का घर था पीछे से किसी ने तू मेरी जिंदगी है, तू मेरी हर खुशी है गाना भी चला दिया था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। इस कहानी के द्वारा एक बात कहना चाहती हूं कि अत्याचार सिर्फ स्त्री के साथ नहीं होता,कई बार पुरुष भी इसका शिकार बनते हैं और कानूनी कार्रवाई की लंबी प्रक्रिया भी झेलते हैं। ये इक्कीसवी सदी है,हम लोगों को निष्पक्ष होकर सभी बातों को देखना चाहिए। पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो सकते हैं। साथ ही साथ एक स्त्री अगर गलत मानसिकता की है तो बाकी वैसी ही हों ये आवश्यक नहीं है, ऐसे ही अगर कोई पुरुष बुरा है तो सारे पुरुष बुरे नहीं हो सकते।

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