फैसला – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

सीमा ने हिस्ट्री एम ए में यूनिवर्सिटी में टॉप किया था।दिखने में खूबसूरत सीमा कविता पाठ भी करती थी। रवीन्द्र नाथ टैगोर की कविताएं अपने पिता के मुंह से सुन-सुनकर कंठस्थ हो गई थी उसे। सीमा के पिता एम आर थे।सीमा और उसकी छोटी बहन पिंकी ने बचपन से अपने पिता और मां को संघर्ष करते ही देखा था।

दरअसल जिस दवाई कंपनी में पिता नौकरी करते थे, वह किसी कानूनी दांवपेंच में उलझकर बंद हो गई थी।सीमा के पिता एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे,और मां घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी।सीमा ने देखा था अपनी मां को घर के कामकाज निपटाकर ट्यूशन पढ़ाते हुए,साथ ही बेटियों को भी पढ़ाती थीं वह।बचपन से ही सीमा ने सोच लिया था कि वह जल्दी से पढ़ाई खत्म करके नौकरी करेगी,ताकि घर खर्च में कुछ सहूलियत हो जाए।

यूनिवर्सिटी का रिजल्ट निकलते ही,उसके लिए रिश्ते आने लगे।हर दिन सुबह अपने माता-पिता की बात सुनती।पिता कहते”गहने तो हैं तुम्हारे अपने,पर शादी का बाकी खर्च करने लायक पैसे जोड़ नहीं पाए हम अब तक।”मां जवाब में ढांढ़स बंधाते कहतीं”सब हो जाएगा,ईश्वर बंदोबस्त करेंगे देखना।”

सीमा रोज़ सुबह अपने माता-पिता का चिंताग्रस्त चेहरा देखती,और दुखी हो जाती।एक दिन पिता से कहा भी उसने”बाबा,लोग ठीक ही कहतें हैं।बेटा होना ही मां-बाप के लिए शुभ होता है।मेरी पढ़ाई का खर्च अभी छूटा भी नहीं कि शादी के खर्च की चिंता पड़ गई आप लोगों को।बेटियों की शादी ज़रूरी है क्या जल्दी?मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।दूसरों से पैसे मांगकर अगर आपने मेरी शादी की तो मैं जिंदा नहीं रहूंगी।बाबा आप मुझे वचन दीजिए,सर पर हांथ रखकर।शादी के लिए किसी रिश्तेदार के सामने हांथ नहीं फैलाएंगे आप लोग।बिना दान-दहेज के अगर कोई ब्याहना चाहे,तो मैं शादी करूंगी,वह भी नौकरी करने की शर्त पर।बुढ़ापे में आप लोगों का सहारा तो कोई और नहीं है।”सीमा की बात सुनकर पिता उसे सीने से लगाकर रोते और अपनी किस्मत को कोसते,कि जब कमाने का समय आया तभी कंपनी को बंद होना था।

एक दिन सुबह-सुबह यूनिवर्सिटी से रजिस्टर्ड पोस्ट आया।सीमा ने ही खोला।उसे गोल्ड मैडल मिलने वाला था। यूनिवर्सिटी में बुलाया गया था,उसे इसी सिलसिले में।अपने पिता के साथ बस में बैठकर जब यूनिवर्सिटी पंहुंची,खुशी के मारे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। यूनिवर्सिटी से उसे एडहॉक में पढ़ाने का ऑफर मिला।अब उसकी सारी चिंता खत्म हो गई।

बाहर निकलकर कुछ हल्का नाश्ता करने बैठे जब बाप-बेटी तो,एक भद्र महिला और पुरुष ने आकर अपना परिचय दिया।दोनों पति-पत्नी फूड कॉर्पोरेशन में‌ नौकरी करते थे।उसी बस में आए थे,वर्धमान तक। उन्होंने सीमा को बस से कॉलेज आते-जाते देखा था ,पिछले चार -पांच सालों से।सीधे मुद्दे पर आते हुए सभ्य पुरुष ने सीमा के पिता से कहा-हम भी यहीं नौकरी करते हैं।कायस्थ हैं।हमारे एक बेटी और एक बेटा है।बेटी की शादी हो चुकी है।अपने बेटे के लिए हमने आपकी बेटी को पसंद किया है।हम इंतज़ार कर रहे थे इसकी पढ़ाई खत्म होने का।”

सीमा के पिता को तो आज स्वर्ग मिल गया मानो,थोड़े असमंजस में अपनी आर्थिक परिस्थितियों के बारे में जैसे ही बताना चाहा,महोदय ने रोकते हुए कहा”हां ,हमें मालूम है,आप लोग कुलीन ब्राह्मण हैं और हम कायस्थ।यकीन मानिए,आपकी बेटी रानी बनकर रहेगी हमारे घर।मैं‌ दहेज के खिलाफ हूं। सिर्फ दो जोड़ी साड़ी में विदा करवाना चाहतें‌ हैं आपकी बेटी को।बहुत सुशील और बुद्धिमती है।मां अगर बुद्धि मति हो,तो होने वाली संतान भी बुद्धिमान होती है।हमें आपकी बेटी बहुत पसंद है,कब आएं हम रिश्ता पक्का करने?”

सीमा के पिता कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे।केवल कहा”सीमा की मां का मत जानना भी जरूरी है।हम घर जाकर बातचीत करके आपको खबर कर देंगे।दोनों पक्षों में‌ फोन नंबर का आदान-प्रदान हुआ और सीमा ,पिता के साथ घर आ गई।

सीमा के पिता की आंखों में आशा और‌ निराशा के मिश्रित ज्वार उठा रहे थे।खानदान में किसी की कायस्थ से शादी नहीं हुई थी,अब तक। रिश्तेदार क्या कहेंगे?यही सोचते हुए पत्नी की तरफ देखा तो, उन्होंने हकीकत दिखा दी अपने पति को”।ना तो मोटी रकम जमा है शादी के लिए,और ना ही ताम झाम कर पाने की कूवत है।ये अच्छे सभ्य लोग हैं,आगे बढ़कर‌ हमारी बेटी मांग रहें‌हैं।”

एक हफ्ते तक इसी विषय पर वाद-विवाद होता रहा।सीमा की बहन पिंकी ज्यादा छोटी नहीं थी उससे।सीमा की असहमति जानकर बोली”दीदी,कायस्थ हैं तो क्या हुआ।संपन्न लोग हैं।लड़का दिखने में सुंदर और शालीन है।तुम मेरी फिकर मत करना।तुम्हारी शादी से मेरी शादी में‌ कोई अड़चन‌ नहीं‌  आएगी।”सीमा की मां और बहन ने पिता और सीमा को मना लिया शादी के लिए।

यथासंभव तैयारियां शुरू कर दी गई।लड़के की मां का अक्सर फोन आता,”सीमा ,तुम आ जाओ बेटा,हम शाॅपिंग करने चलेंगे।तुम्हारी पसंद का ही सब लेना है।”सीमा ने धीमी आवाज में‌ कहने की कोशिश की मां‌ को‌ ले चलने के लिए,तो उन्होंने साफ मना कर दिया टालते हुए”अरे सीमा,अब तुम बड़ी हो गई हो।कपड़े , ज्वैलरी अपनी पसंद की ही खरीदोगी कि मां की पसंद की।”हारकर गई सीमा उनके साथ शाॉपिंग।मंहगी चीजों की प्रदर्शनी लेकर आईं‌ वें।

अगले दिन मां-बाबा को बुलवाया गया।उसके अगले दिन पिंकी को बुलवाया गया।एक हफ्ते में‌ मोटा मोटी सारा सामान खरीदा जा चुका था,उन्हीं के पैसों से।मां ने साफ कह  दिया था कि हम जो भी अपनी हैसियत से देंगें,अपने पैसों से देंगें।बाबा के अंदर का आत्मबल कमजोर हो रहा था दिन प्रतिदिन।शादी का हॉल बुक करने के लिए भी पूरे परिवार को बुलवाया उन लोगों ने।साथ में उनके निकटतम संबंधी भी थे।

सीमा ने नोटिस किया कि ,होने वाली सासू मां बात-बात पर तंज कसती मां पर,और मां हंसकर चुप हो जाती।सब व्क्षवस्था फाइनल हो जाने पर साथ में सब खाने बैठे तो,सीमा के पिता ने बिल‌ देना चाहा तो होनेवाली सास फिर कूद पड़ी”अरे भाई साहब ये एक दो हजार का बिल नहीं‌, चौदह हजार‌ का बिल है।दामाद  की मां के मुंह से‌ निकले चौदह हजार‌ के बिल की बात बाबा ने अपने‌ दिल पर ले‌ ली। उन्होंने पैसों का इंतजाम किया किसी तरह।

रात को थके हारे सोफे पर पड़े पापा मां को समझा रहे थे”देखो ,गायत्री,हमारी बेटी हीरा है हीरा। जल्दबाजी में जिस रिश्ते को‌ लेकर तुम उछल रही हो,उनके लिए‌तो यह रिश्ता एक सहानुभूति से कुछ ज्यादा नहीं।ये हमारे ऊपर दया दिखाकर हमारी बेटी को अपनी बहू बनाना चाहतें हैं।

सीमा को भी साड़ियों की कीमत,गहनों की कीमत बता-बता कर यह अहसास करवा रहीं थीं होने वाली सास,कि हम उनके दया के पात्र हैं।अगला कदम था लड़के से मिलने का। लड़का साफ्टवेयर इंजीनियर था।शांत और सुंदर।गंभीर स्वभाव था‌ उसका।दिखावे की आदत उसमें‌ नहीं‌ थी,पर जैसे ही सीमा ने कॉलेज में‌ नौकरी करने की‌ बात बताई तो भड़क गया,कहने लगा”जितना तुम्हें नौकरी में मिलेगा ना,उतना हम लोग नौकरौं को‌ दे देते हैं।देखो ,तुम इन सबके बीच में मत पड़ो।

ये बड़े सारे मसले हल कर लेंगे।तुम बस अपनी पसंद, ख्वाहिश, ख़्वाब बताओ शादी के,बंदा पूरा करेगा मिनटों में।अरे पापा‌ -मम्मी ने पसंद‌ किया था तुम्हें।तुम हो‌ ही‌ इतनी सुंदर।घर‌ वाले‌ सब संभाल‌ लेंगे।”होने वाले पति की बातों से सांत्वना मिली सीमा को।जैसे -जैसे शादी की तारीख पास आ रही थी,उसने देखा बाबा के अंदर कुछ मर रहा है धीरे-धीरे। शारीरिक अस्वस्थता से ज्यादा मानसिक कमजोरी दिख रही थी चेहरे पर।समधी के साथ उनके घर‌में बैठना भी अहसान लग रहा था। रिश्तेदारों के सामने मां को‌ जानबूझकर सुनाना सास का कि”हमने‌ तो बोल‌ दिया है,दो जोड़ी कपड़े में‌ ही‌ ले‌ जायेंगें।इनको कुछ खर्च करने की जरूरत ही नहीं।हमारी भी जिम्मेदारी है कि‌ इनके बोझ‌‌ को‌ कम करें।बेटी राज करेगी  राज।”

सीमा ने जब मां से कहा कि”आपका‌और बाबा काअपमान हो‌रहा। उन्होंने सच्चाई की बिसात पर‌अपने‌ सारे  अरमान‌ कुचल‌ दिए।”मां अपनी असुरक्षा की भावना से प्रेरित होकर कुछ कह नहीं पा रहीं थीं।शादी यदि की सीमा ने,कालेज की नौकरी छोड़नी पड़ेगी।मां-,बाबा की कोई मदद नहीं कर पाएगी।अभी जो हालत है,हम मखमली  गलीचे में टाट का पैबंद हैं।लड़का समझदार तो है पर अपने माता-पिता के सम्मान के प्रति सजग है,मेरे मां-बाबा के लिए नहीं।

यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।हर अवसर अनुष्ठान में अप्रत्यक्ष रूप से मेरे मां-बाबा की आर्थिक स्थिति की कमियों का हिसाब लगाया जाएगा।

मैं तो रानी बनकर रहूंगी,पर मां-बाबा के आत्मसम्मान का पल -पल कत्ल होगा।सीमा ने आज फैसला ले लिया,कि वह अपने माता-पिता को याचक की तरह,लड़के पक्ष के सामने हीन होते नहीं देख सकती।

अगले दिन बाबा को भेजकर शादी का प्रस्ताव मना करवा दिया।एक  दिन अगर सीमा ने अपने आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को दबाया,तो ज़िंदगी भर रोज़ तिल-तिल कर मरना होगा।

सीमा की मां दुखी होकर रो रहीं  थीं,बाबा अपनी बेटी के फैसले के आगे नतमस्तक होकर बोले”किसने कहा ,तू हमारा बेटा नहीं।तू हमारा अभिमान है।

शुभ्रा बैनर्जी

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