अंजलि चल जल्दी-जल्दी ,अपना लंच बॉक्स बैग में डाल ले 9: बजे से तेरी क्लास स्टार्ट हो जाती है।
चेहरा बनाते हुए अंजलि बोल पड़ी, ” मां देखो ना, मेरे सर के अंदर से कुछ अजीब सी आवाजें आ रही हैं, साथ में चक्कर भी आ रहा है।
इतना सुनते ही कावेरी झट से बेटी को गोद में बैठाते हुए बोली, छोड़ स्कूल वस्कूल पापा के साथ जाकर बगल के डॉक्टर अंकल से दिखला आ। पता नहीं क्यों सर दर्द कर रहा है। कावेरी बहुत चिंतित हो उठी । फिर अपने पतिदेव को बुलाया “अजी सुनते हो जल्दी जाकर अंजलि को दिखला आओ।
डॉन’ट वरी” सी इस फाइन “बस बच्चों में उछल कूद करने की वजह से ऐसा कभी-कभी हो जाता है । आज आराम करेगी तो कल ठीक हो जाएगी। डॉक्टर साहब मुस्कुराते हुए बोले।
“धन्यवाद डॉक्टर !
कहते हुए रामानंद जी अंजलि को घर ले आए ।
अंजलि ,आज अपने स्कूल नहीं जाने के लिए अपना बनाया प्लान सफल होता हुआ देख, मन ही मन खुश हो उठी ।
अंजलि को ‘स्कूल’ शुरुआती कक्षा से लेकर अंतिम कक्षा’ तक कभी नहीं अच्छा लगा।
पांचवी तक उसके पापा की नौकरी एक छोटे से शहर में थी रामानंद जी एक प्रोफैसर थे। पांचवी कक्षा तक तो उनको यह लगता था कि चलो बच्ची के अभी खेलने कूदने की उम्र है अभी नहीं पढती है, तो कोई बात नहीं आगे खुद-ब-खुद पढ़ना वह शुरू करेगी ।लेकिन अंजलि पढ़ाई से कोसों दूर जा चुकी थी।
जबकि उसके पिता ‘रामानंद जी खुद एक शिक्षक थे ‘उनको हमेशा यह चिंता रहती कि, इस लड़की की पढ़ाई अब कब शुरू होगी।
अंजलि जब छठी कक्षा में आई तो पापा ने उसकी पढ़ाई के लिए बड़े शहर जाने का प्लान कर लिया।
शायद स्कूल अच्छा मिलेने और माहौल अच्छा मिलने से उसका मन पढ़ाई में लग जाएगा ।
” अब वह शहर में पढ़ने लगी।” लेकिन यहां भी उसे पढ़ने में मन नहीं लगा वह सिर्फ कक्षा में पास होती चली गई जब दसवीं में आई तो उसकी स्थिति बहुत ही खराब थी।
बोर्ड पास करना उसके लिए नामुमकिन सा लग रहा था।
बोर्ड एग्जाम शुरू होने में भी केवल 6 महीने बचे थे और अंजलि अपनी अलग दुनिया में सैर कर रही थी एग्जाम के खौफ से दूर।
इस समय अंजलि के दादाजी का शहर में आना हुआ ।
उनके अपने किसी दोस्त के बेटे की शादी थी, जिसे वह अटेंड करने आए थे।
जब उन्होंने अंजलि की स्थिति देखी तो चिंता ग्रस्त हो उठे ।
कैसे कटेगा यह सफर। सारा सब्जेक्ट्स ही चौपट है इतने दिनों से तू कर क्या रहे थी ?
इस परिस्थिति में तू पास भी नहीं हो सकती अब मात्र 6 महीने बचे हैं तेरे एग्जाम को।
दादाजी ने एक गंभीर सांस ली और फिर बोले “रामानंद तूने तो अपना काम किया
अब बचे 6 महीने में मैं अपना काम करूंगा यह मेरा आखिरी फैसला है।
” ठीक है बाबूजी आप अंजलि को अपने साथ ले जाइए यह आपका फैसला है तो मैं आपके फैसले से सहमत हूं।”
बिना समय बर्बाद किया दादाजी सुबह की पहली गाड़ी से ही अंजलि को ले अपने गांव चल पड़े।
गांव आते ही दादाजी ने अंजलि को अपना अलग कमरा दे दिया।
“अंजलि आज से तुम इस कमरे में ही पढ़ाई लिखाई करोगी। अपने कमरे की सफाई अच्छी तरह से कर लो।
“मैं आज ही तुम्हारे लिए टीचर ढूंढता हूं कहते हुए वह घर से निकल पड़े और शाम तक उन्होंने दो शिक्षकों की नियुक्ति कर ली।”
साथ में दादाजी ने अंजलि को खूब मोटिवेट किया और उसे अच्छी-अच्छी बातें बताई।
अगले ही दिन सुबह 7:00 बजे से अंजलि के ‘साइंस के टीचर ‘आए उनके पढ़ाने का तरीका अंजलि को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने अंजलि को पूरा मोटिवेट कर पढाया।
“शाबाश! यू कैन डू फास्ट दादाजी बोल पड़े ।
अंजलि के हौसले दिन पर दिन बुलंद होते जा रहा था और उसकी पढ़ाई में ,मन भी लगता जा रहा था।
शाम में उसके दूसरे टीचर आते जो उसे ‘आर्ट्स का विषय पढ़ाते ।
धीरे-धीरे अंजलि अपने दोनों टीचर की चहेती बन गई।
सारे विषयों को अब वह जल्दी-जल्दी कभर करने में लग गई ।
देखते-देखते 6 महीने गुजर गए। बोर्ड का एग्जाम भी आ गया और अंजलि की तैयारी भी पूरी हो चुकी थी।
उसने दिन रात एक कर दी एग्जाम के लिए ।
एग्जाम देने वह अपने शहर गई और उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना सारा पेपर दिया।
रिजल्ट का दिन भी आ गया।
वह ‘प्रथम श्रेणी’ से पास हुई।
पूरे गांव में उसकी चर्चा शुरू हो गई ।
सभी ने अंजलि को बधाई के साथ-साथ उसकी प्रशंसा भी की ।
दादाजी भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ।
वह आज सबसे ज्यादा खुश थे क्योंकि, उनकी वजह से आज उनकी पोती “जीरो से हीरो” जो बन गई थी ।
पूरा गांव उसका ही उदाहरण पेश कर रहा था।
इस तरह दादाजी के फैसले ने एक लड़की का भविष्य बना दिया।
धन्यवाद।
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मनीषा सिंह