एक वेश्या की जुबानी !! – मृदुला कुशवाहा

अमर रोज ऑफिस आते-जाते एक बूढ़ी भिखारन औरत को रेलवे स्टेशन पर भीख माँगते देखता था।

वह रोज देखता कि शाम को दो व्यक्ति आकर पैसे ले लेते थे उस औरत से।

वह बूढ़ी औरत उन दोनों व्यक्तियों को देखते ही डरने लगती थी।

अमर ने सोचा- ‘हो सकता है इनका भीख मांगना ही इनका पेशा हो।’

अमर को कभी उस भिखारन औरत को देखकर ऐसा महसूस हुआ था कि शायद वह औरत उससे कुछ कहना चाह रही हो।

अमर के मन में उस औरत की दुर्दशा देखकर दया उठी और उसके तथा उन दो व्यक्तियों, जो रोज उससे पैसा लेकर चले जाते थे, के बारे में विस्तार से जानने की जिज्ञासा हुई।

और एक दिन वह भिखारन औरत के पीछे पीछे चल पड़ा। लेकिन यह क्या?

अमर चौक गया। औरत रेड एरिया वाले इलाके में प्रवेश की और वहां एक कोठे पर चढ़ गई। उसने सोचा क्या औरत वेश्या है? आखिर वह यहाँ क्यों आयी हैं? उसे अब उस औरत से घृणा होने लगी। लेकिन वह ठहरने वाला कहां था।

दूसरे दिन वह एक फर्जी कस्टमर बनकर उस औरत के पास पहुँचने में सफल हो गया। जो दृश्य वहां का देखा, इसे खुद से नफरत होने लगी…वह क्यों आया ऐसी गन्दी जगह पर! उसे क्या पड़ी थी! बदबूदार कमरे, कहीं ढोल की थाप और घुंघरुओं की मधुर ताल पर अश्लील नर्तन करती वेश्याएं, मुंह में पान की गिलौरी दबाए और मसनद पर लेटे ललचाई नजरों से उन वेश्याओं के अंग अंग को निहारते ग्राहक। पर वहां वह बूढ़ी औरत नहीं थी। उसने दूसरी तरफ नजर घुमाई, तो उस औरत को एक कालकोठरी में बन्द पाया। उसकी तरह वहाँ और भी औरतें थी। घुप्प अंधेरा, नीचे दरी पर बैठी घुटनों को उठाए और उसपर सिर झुकाए कुछ औरतें बैठी थीं। अमर ने वहां से लौट जाना ही उचित समझा। यहां की स्थिति में सुधार अमर के वश की बात नहीं थीं। लेकिन आज उसे उस बूढ़ी औरत की सच्चाई का पता चल गया था।

अगले दिन अमर ने छुट्टी ले थी और आज वह फिर स्टेशन गया था। स्टेशन पर वह बूढ़ी औरत पहले दिन की तरह ही भीख मांगने के लिए बैठी थी और जमीन पर अपने एल्युमिनियम का कटोरा पिट पिटकर लोगों का ध्यान आकृष्ट कर रही थी।



अमर पहले तो उसके करीब जाकर बैठा और उसे “माँ” के संबोधन से पुकारा। वह अचंभित हो गई और बेचारी फूट फूट कर रोने लगी।

अमर ने उसका परिचय पूछा, आप कौन हो, कहां से आयी हो, बच्चे और पति कहां हैं?

वह रोती रही और रो रोकर उसने जो दास्तान सुनाई, अमर के रोंगटे खड़े हो गए और इस समाज से उसे घृणा होने लगी।

उस बूढ़ी भिखारन ने कहा कि –

“बेटा हमें धोखे से कोठे पर लाकर बेच दिया जाता है। फिर हमें मजबूर किया जाता है वेश्या बनने के लिए। ना चाहते हुए भी ग्राहकों को खुश करना पड़ता है। सब नोचते हैं मुझे भेड़िए की तरह मानो कितने दिनों से उनकी प्यास बुझी ना हो। कभी कभी तो एक साथ दो तीन ग्राहकों की भूख मिटानी पड़ती है।

जब तक जवानी रहती है बेटा, तब तक हम कोठे की शान रहते हैं।

और जब शरीर के अंग साथ देना छोड़ने कहते हैं और ग्राहक मिलने बन्द हो जाते हैं, तब मालिक हमें पागल घोषित कर देता है और सड़कों पर, रेलवे स्टेशन पर भीख माँगने के लिए बैठा देते है। हम बस जिंदा लाश बन उसके इशारे पर सारा काम करते रहते हैं। 

जब हम भीख माँगने के लायक भी नहीं बचते, तो हमें ये लावारिश सड़क पर ले जाकर फेंक जाते हैं।

यही है हम वेश्याओ की कहानी।

हम भी सोचते हैं हमारा घर-परिवार होता ।

हर मोड़ पर हमारी आंखें तलाशती हैं कि कहीं किसी मोड़ पर कोई अपना मिल जाए, जो इस जिल्लत भरी जिंदगी से छुटकारा दिलाए।

अफसोस हमारे बारे में ना समाज और ना ही सरकार कोई मुद्दा उठाती है…हम बस जी रहे हैं हर रोज कतरा कतरा मरते हुए कल फिर जीने की आश में!!

 

    स्वरचित 

मृदुला कुशवाहा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!