एक प्रेम कहानी ऐसी भी – डॉ. नीतू भूषण तातेड

बहुत समय बाद मिश्री अपने गाँव आई।

अपने गाँव की गलियों को पार करते हुए जब वह गुज़र रही थी तो उसकी आँखों में बचपन का अल्हड़पन औऱ किशोरावस्था की मस्ती नाचने लगी।

वह अपने गाँव आना लगभग बंद कर चुकी थी क्योंकि उसके भाइयों ने उसकी शादी जबरदस्ती किसी ऐसे दूसरे आदमी से करा दी जो उससे उम्र में तीन गुना बड़ा था और जिसके बदले उन्हें मोटी रकम भी मिली ।  बस वह चुपचाप यह शादी निभाती गयी लेकिन आज बरसों  बाद जब अपने गाँव बसने आई तो अपने प्रेमी को मिले बिना  मन ही नहीं मान रहा था।

उसके पैर खुद-ब-खुद उस दिशा में बढ़ गए  जहाँ विष्णु का घर था।

” कोई है? खट- खट -खट ।”

और फिर से दरवाजा खटखटाती है। दरवाजा धक्के से खुल जाता है। भीतर एक खटिया पर बूढा-सा आदमी लेटा हुआ था।  वह  देखती है यह तो उसका विष्णु ही है ।

“क्या हालत कर दी है? विष्णु पहचाना ?मैं हूँ मिश्री !तुम्हारी मिश्री।”

आज बरसों बाद उसे देखकर विष्णु ने कुछ देर तो पहचाना ही नहीं।

“बरसों बाद गाँव तुम्हारा प्यार ही खींच लाया। मैं तुम्हारी सुध लेने ही आयी हूँ।”

वह केवल उसे ताकता रह गया।

” वर्षों तक हमने एक-दूसरे से कोई संपर्क नहीं रखा ताकि हमारी गृहस्थी में कोई आँच न आए। पर आज जब मैं बिल्कुल अकेली हूँ। मेरा दिल किया कि मरने से पहले तुम से मिल लूँ।” पलंग पर पड़ा विष्णु धीरे धीरे आँखें बन्द करता है ।उसकी हालत बेहद खराब है ।

मिश्री पूछती है,” विष्णु तुम्हारे परिवार वाले कहाँ गए? तुम्हारी हालत ऐसी क्यों है ?ऐसी गंदगी में क्यों सोए हो? क्या तुम्हारा काम करने वाला कोई नहीं है ?

“नहीं मिश्री मेरा कोई नहीं है ।माँ और बहन भी समय के साथ साथ छोड़ कर चली गई ।मैंने विवाह नहीं किया मिश्री। तुमसे वादा किया था ना कि मैं तुम्हारे अलावा किसी का हाथ नहीं थामूँगा।


” क्या कह रहे हो विष्णु ?तुमने मुझसे कहा था कि तुम अपनी गृहस्थी में खुश रहना। मैं भी खुश रहूँगा। यह कैसी खुशी है?”

विष्णु हौले से मुस्कुराते हुए उसका हाथ दबा देता है।

” क्यों तुमने पूरा जीवन अकेलेपन में काट दिया? मुझे एक बार तो मिल कर कह देते ।शायद मैं लौट आती।”

” नहीं मिश्री! मैं नहीं चाहता था कि समाज में तुम्हारी बदनामी हो।लोग तुम्हारे लिए उल्टा-सीधा कहे। मुझे पता था तुम बहुत समझदार हो ।अपना जीवन बहुत अच्छे से व्यतीत कर लोगी। मेरा क्या है? माँ ने बहुत खयाल रखा फिर बहन ने। अब आस-पास के लोगों ने खाना-पीना देकर मेरी इस हालत में भी मेरा साथ दिया । कभी -कभी लगता है वक्त आ गया है।

“नहीं! ऐसा मत कहो। हम अभी डॉ के पास जाएँगे, पूरा इलाज करेंगे।”

“हाँ! लेकिन पिछले 2 दिनों से मेरी ताकत ही नहीं है कि मैं चलकर बाहर जा सकूँ।”

“चलो विष्णु !आओ मैं तुम्हें अपने हाथों से  नहला कर तैयार करूँगी।”

यह कहकर धीरे-धीरे मिश्री,विष्णु की बाँह कर पकड़ कर उठाती है और विष्णु के घर के बाहर बने खुले बाथरूम में उसे बड़े प्रेम से नहला कर साफ करती है। दोनों की बूढ़ी ऑंखों में बचपन से लेकर जवानी के सारे दृश्य घूम जाते हैं।

जब दोनों ने बहुत सारा  समय एक साथ या इसी तरह बिताया।लड़कपन में एक दूसरे को खूब भिगोया और खेला। क्या होली !क्या दिवाली !सब साथ ही मनती थी।

गाँव वाले फुसफुसाहट करते पर विष्णु की माँ मिश्री को बड़ा पसन्द करती थी।

लेकिन मिश्री के भाइयों को मंजूर नहीं था कि मिश्री किसी दूसरी जात वाले लड़के से घुले-मिले और शादी करें। वह तो बस अपनी बिरादरी का ही वर चाहते थे जो उनको मिश्री के बदले पैसा भी दे और बिरादरी में नाक बिना कटे ये बला टले।

फिर मिश्री से तीन गुनी उम्र वाले आदमी से उसे बाँध दिया। जो दस वर्ष तक भी साथ ना निभा पाया और स्वर्ग सिधार गया।भाइयों ने कभी मुड़ कर न देखा। पिताजी तो बचपन मे ही भगवान को प्यारे हो गए थे। जब वह सोलह की हुई तो माँ भी चल बसी ।वह जीती तो शायद कभी बुलाती।।

मिश्री ने अपने दो बच्चे बड़े किए और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने लायक बना दिया।

वे उसे अपने साथ रखना चाहते थे।किंतु वह अब आज़ादी चाहती थी। उनका विवाह करने के बाद उसने तय किया कि वह अपने गाँव जाकर रहेगी लेकिन अब विष्णु से मिलने के बाद उसे एहसास हो रहा है कि अब दुनिया कुछ भी कहे ।बची हुई जिंदगी वह विष्णु के साथ ही बिताएगी।

वह पूछती है,विष्णु!अपनी मिश्री से ब्याह रचाओगे?”

उसने कहा ,”एक शर्त है।”

हाँ! मैं तो सब शर्तें  मानने को तैयार हूँ।बोलो तो?

“तुम मुझे रोज़ ऐसे ही नहलाओगी?”

दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं।

फिर क्या था ।उनका अनोखा प्यार उस मोड़ पर आ मिला जहाँ लोग जीने की उम्मीद ही छोड़ देते है।

डॉ. नीतू भूषण तातेड

 

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