एक फौजी आदमी का देश से अटूट बंधन  – मीनाक्षी सिंह

किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,

मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,

मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ,

मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ।

मेरे पापा जब बी .काँम कर रहे थे तब बस उन्होने बैंक की नौकरी करने का सपना देख रखा था ! पर भाग्य से उनके जीजा जी ने उन्हे बताया कि -अनिल ,फौज में भर्ती हो रही हैं ! दौड़ हैं परसो भोपाल में ! मन हो तो चला जा ! फौजी  आदमी तो बाद में भी बैंक की नौकरी कर सकते हैं ! पचास साल में सेवा निवृत्ति हो जाती हैं फिर कुछ भी करो ! पापा ने कहा दौड़ तो मैने लगायी ही नहीं ! नंबर आना तो मुश्किल है ! आप कह रहे है तो चला जाता हूँ ! पापा आ गए एक छोटा सा थैला लेकर ! किस्मत ने साथ दिया और वो फौज में भर्ती हो गए ! उसके एक साल बाद मेरी बहुत ही खूबसूरत सी माँ से उनका गठ बंधन हो गया ! और एक साल के बाद माँ की गोद में मैं आ गयी ! दादी ने माँ को न्यारा कर दिया था ! पापा से कहती कि मुझे अब अपने साथ ले चलो अकेले सामान लाना  बच्चे संभालना मेरे अकेले के बस का नहीं !मेरे पापा मेरी माँ को नसीराबाद ( राजस्थान ) ले आये !

पापा को अपने काम से इतना प्यार था सुबह होते ही छोटा सा सफेद नेकर पहन के ,सफेद टी -शर्ट पहन के निकल जाते दौड़ पर ! बच्चों को स्कूल जाने के लिए आर्मी गाड़ी  में छोड़ के माँ ही आती ! कुल मिलाके यहाँ आकर भी घर बाहर के सब काम माँ को ही करने पड़ते ! हर तीन साल में माँ को सामान पैक करना पड़ता और वहां के बने सम्बंधों को दुखी मन से छोड़ना पड़ता !

मुझे याद हैं जब भी 15 अगस्त य़ा 26 जनवरी होती पापा एक दिन पहले रात में ही अपने फौजी जूतों को चमकाते ,अपने बिल्ले ,बेल्ट चमकाते ,यूनीफार्म को प्रेस करके हैंगर में टांग देते ! और ये काम करते हुए उनके चेहरे पर जो ख़ुशी होती उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है ! बस मूंछे तनती रहती !

माँ कहती कभी इस तरह कभी बच्चों के स्कूल जूतें य़ा ड्रेस चमकायी हैं ! बस मुस्कुरा के इतना कहते – मेरी उषिया हैं ना इसके लिए !

और मस्त सो ज़ाते ! जब सूबेदार बन गए तो कोट पैंट पहन के जाने लगे 15 अगस्त और 26 जनवरी पर !

जब भी युनिट से आते तो उनकी भारी यूनीफार्म और जूतों से इतनी बदबू आती कि हम सब नाक बंद कर लेते ! हम से कहते अरे ये देश की वर्दी की खुशबू हैं ! नसीबों वाला हूँ जो देश की सेवा कर रहा हूँ !

अपनी सालगिराह वाले दिन पापा हमारे बगीचे से एक गुलाब का फूल तोड़ के लाये और माँ को दिया और बोले – बहारों फूल बरसाओं तेरा महबूब आया है ! माँ एकदम से देखके चिल्लायी कि ये तुम्हारे बालों और मूछों को क्या हुआ ! अधिकारी आ रहे हैं चेकिंग पर ! इसलिये कटवाने पड़े ! तुम्हारा हीरो ज़िरो लग रहा हैं ना ! माँ बस मुस्कुरा दी !



जब कारगिल का युद्ध हुआ तब मेरे पापा की ड्यूटी गन को सही करने में लगायी गयी ! जो भी लोग मैदान पर शहीद होते उनकी बन्दूकें उठाके उनकी मरम्मत करने का काम पापा का था ! यहाँ माँ का रो रोकर बुरा हाल था ! हम छोटे छोटे थे ! वहां से बात भी 15-20 दिनों में हो पाती थी वो भी तब जब पापा करते थे ! अम्मा ने माता की चौकी और रतजगे की मन्नत मांग रखी थी ! कि अनिल ठीक से घर लौट आयेगा तो करवाऊंगी ! बाबा कहते आश छोड़ दे कि  वो आयेगा वहां कारगिल में लोग भेड़ बकरियों की तरह शहीद हो रहे हैं ! संख्या गिनना मुश्किल हैं ! लोग शवों की पहचान नहीं कर पा रहे हैं ! और तू उसके आने की उम्मीद लगायी बैठी हैं ! माँ ये बात सुन के बस साड़ी का आँचल मुंह में दबाये सिस्कियां भरती रहती ! हम मस्त थे हमें कुछ नहीं पता था बस टी वी देखते तो बस इतना समझ आता कि लड़ाई हो रही हैं और पापा भी वहां गए हैं ! एक दिन माँ को पापा ने बताया कि उनका दोस्त सीमा पार घायल हो गया था और एक हफते से वायूयान से फेंके गए पारले जी बिस्कुट पर जी रहा था ! और कल वो अपने जीवन से हार गया और शहीद हो गया ! उसका चेहरा मेरे सामने से हट नहीं रहा ! और रोने लगे ! माँ कहती सुनो,तुम अब लौट आओ ! नौकरी छोड़ आओ ! नहीं चाहिए ऐसी नौकरी कि मेरा  पति मुझसे हमेशा के लिए दूर हो जाये !

पापा कहते – उषिया ,तुमसे और बच्चों से मिलने से पहले मैने देश से वादा किया था ! जब नौकरी लगी थी तब मैने कसम खायी थी कि मरते दम तक देश सेवा करूँगा ! कभी अपने पथ से विचलित नहीं होऊंगा ! तुम बस माता जी पिता जी और बच्चों का ख्याल रखो ! और हर बार जय हिन्द के साथ फ़ोन रख देते !

पापा जब भी बार्डर फिल्म आती तो माँ को बुलाते और कहते आओ देखो ! कभी ऐसी ही लड़ाई फिर होगी और मैं भी इन्ही की तरह शहीद हो जाऊँगा !

माँ हंस जाती कहती तुम ही देखो ये अब फौज पहले जैसी नहीं रही ! अब इतनी जंग नहीं होती !

और आज कारगिल युद्ध के समय माँ यही फिल्म की सी डी लगाये दिन रात यहीं फिल्म देखती और सन्देशें आतें हैं गाने की लास्ट लाइन सुन कर फफ़क कर रोती – मैं वापस आऊंगा ,फिर अपने गांव में !

ईश्वर की कृपा से मेरे पिता जी कारगिल युद्ध से सही सलामत वापस आये और पूरे गांव वालो ने उन्हे कांधो पर बैठाया और अन  गिनत मालायें पहनायी ! और घर में खूब धूम मची ! पापा ने वहां के किस्से भी सुनाये कि तेरा पसंदीदा हीरो सलमान खान भी आया था कारगिल में हमसे मिलने ! एक रात हमारे साथ रहा ! मैने उस से खूब अंग्रेजी में बात की ! ये देख उसके साथ मेरी फोटो ! मैं रोने लगी मुझे क्यू नहीं ले गए !



कुछ साल अच्छे से गुजरे और मेरे ब्याह से कुछ दिन पहले मेरे पापा का देहांत हो गया जब वो अहमेदाबाद में नौकरी पर थे ! माँ बद हवास हो गयी ! और उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपट कर घर आया ! मैं सुध बुध खो चुकी थी ! इतना जानती थी पापा शहीद हुए हैं ! और उनके पार्थिव शरीर के पैर छुने लगी ! सबने कहा क्यू अपने पिता पर पाप चढ़ा रही हैं ! जय हिन्द के नारे के साथ पापा विदा हो गए ! आज भी पापा की मूर्ति अहमेदाबाद में उनकी युनिट में बन्दूक हाथ में लिए हुए खड़ी हुई हैं ! भाई जब भी जाता हैं तो वहां घंटों बैठकर फफ़क फफ़क कर रोता है  !

और माँ फिर से अकेली घर की ज़िम्मेदारी संभाल रही है  ! और शरीर से तो बस हड्डियों का ढ़ांचा प्रतीत होती हैं ! और पापा की फोटो पर माला भी नहीं लगाती इसी उम्मीद में की मेरे अनिल आयेंगे ,नौकरी पर हैं !

सुना हैं फौजी आदमी अपनी बीवी बच्चों से बहुत प्यार करता हैं पर देश सेवा के आगे सब भूल जाता हैं ! एक सैनिक कहता हैं –

‘साथी घर जाक़र मत क़हना, संकेतों मे ब़तला देना 

यदि हाल मेरीं माता पूछें तो, ज़लता दीप बुझ़ा देना! 

इतनें पर भी न समझें तो दो आसू तुम छ़लका देना!! 

यदि हाल मेरीं बहिना पूछें तो, सूनी क़लाई दिख़ला देना! 

इतनें पर भी न समझें तो, राख़ी तोड दिख़ा देना !! 

यदि हाल मेरीं पत्नी पूछें तो, मस्तक़ तुम झ़ुका लेना! 

इतनें पर भी न  समझें तो, मांग़ का सिन्दूर मिटा देंना!! 

यदि हाल मेरें पापा पूछें तो, हाथो क़ो सहला देना! 

इतनें पर भी न समझें तो, लाठी तोड दिख़ा देना!!

यदि हाल मेरा बेंटा पूछें तो, सर उसक़ा सहला देना! 

इतनें पर भी न समझें तो, सीनें से उसको लग़ा लेना!! 

यदि हाल मेंरा भाई पूछें तो, ख़ाली राह दिख़ा देना! 

इतनें पर भी न समझें तो, सैनिक धर्म ब़ता देना!! 

जय हिन्द जय भारत  

स्वरचित

मीनाक्षी सिंह

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