एक और मौका- कविता झा’काव्य ‘अविका”: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रात का अंधेरा बढ़ता जा रहा था रीतिका बार बार बालकनी में जाती और गली के दोनों तरफ अंतिम छोर  तक देखती फिर स्याह बादलों से घिरे आसमान की तरफ देखती।

 रात के डेढ़ बज रहें हैं और रागिनी अभी तक घर नहीं आई। फोन भी उसका स्विच ऑफ आ रहा है। अगर उसके साथ कुछ ऊंँच-नीच हो गई तो सारा इल्जाम हम पर ही आएगा। नन्दा ने हम पर विश्वास करके अपनी बेटी को हमारे यहां हमारे पास छोड़ा था।

 गांँव में उसकी आगे की पढ़ाई बाधित हो रही थी जिस कारण उसने हमसे पूछा और हम दोनों ने रागिनी को सहर्ष स्वीकारा। 

शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में इसका एडमिशन करवाया। पढ़ने में अच्छी थी तो हमें भी अच्छा लग रहा था। अपनी संतान ना होने का ग़म भी कम हो गया था। 

शुरू शुरू में सब बहुत अच्छा रहा प्रथम वर्ष में उसने कॉलेज में टॉप किया जिसका पूरा श्रेय रागिनी के मामा जी यानी मेरे पति राकेश को ही मिला। 

मैंने उसकी पढ़ाई में कितनी मदद की हर तरह से वो किसी को नहीं दिखा। वो रात को जग कर पढ़ा करती तो मैं भी सो नहीं पाती थी। उसे हर आध -एक घंटे पर चाय कॉफी और कुछ खाने को देती। दिन में भी कभी उससे घर या बाहर के किसी काम में मदद नहीं ली। 

गांँव से आई सीधी-सादी लड़की को भी शहर की हवा लगते देर नहीं लगी। कुछ महीनों से उसे बिल्कुल बदला हुआ देख रहीं हूं। मैंने राकेश को समझाने की कोशिश की कि आप उससे बात करें उसे यहां कोई दिक्कत तो नहीं है।

 अब वो घर में बहुत कम समय रहती है। कॉलेज के बाद कहती हैं लाईब्रेरी जाती हूंँ पर उसे देखकर तो लगने लगा है दोस्तों के साथ नशा तो नहीं करने लगी।

 जेब खर्च के नाम पर राकेश और मैं दोनों ही उसे पैसे देते हैं पर नया आईफोन और हीरे का पैंडेंट जब पिछले हफ्ते उसके पास देखा तो पूछा भी था। उसने सिर्फ इतना कहा, ” मामी आप सिर्फ अपने काम से काम रखिए।”

मैं परेशान हो रही थी मेरी धड़कनें तेज हो रहीं थीं, रागिनी की मम्मी को क्या जवाब दूंगी कि उनकी बच्ची का ध्यान नहीं रख पाई।

” क्या कर रही हो बाहर खड़ी होकर आओ अंदर और सो जाओ। तुम बेकार परेशान हो रही हो , अपनी सहेली के साथ पढ़ने गई है।” 

राकेश ने रीतिका से कहा और करवट बदल कर सो गया।

” उठिए ना राकेश… 

मेरा मन घबरा रहा है। हमारी रागिनी किसी परेशानी में हैं, मुझे ऐसा लग रहा है।”

“तुम भी ना, बिना मतलब परेशान होती है। आ जाएगी, कहांँ जाएगी। अगले महीने से उसकी परीक्षा शुरू है उसी की तैयारी कर रही होगी। “

” अच्छा एक बार फोन कीजिए उसकी सहेली को जिसके यहांँ वो गई है।”

“मुझे नम्बर तो नहीं दिया, तुम्हारे पास है उसकी सहेली का नम्बर तो खुद फोन करके पूछ लो।”

“मुझे तो कभी उसने अपनी किसी सहेली के बारे में नहीं बताया। मैंने जब भी पूछा तुम फोन पर किससे इतनी देर बात करती हो तो उल्टा झिड़कने लगी थी मुझ पर। आप मुझ पर गलत इल्जाम लगा रही हो मामी। आपको लगता है मैं लड़कों से बातें करती हूंँ।”

“बुरा मत माना करो उसकी बातों का… बच्ची है। मां बाप से दूर है अपने मन की बातें हमसे नहीं बता पाती।”

रीतिका की आंँखों से नींद कोसों दूर थी। फिर भी पति के कहने पर वो उनके पास आ बिस्तर पर लेट गई।

भगवान बस वो सही सलामत रहे तो कल ही उसे उसके गांँव उसकी मांँ के पास छोड़ आएंगे।

रात के तीन बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज से रीतिका बिस्तर से उठी और जैसे ही दरवाजा खोला रागिनी नशे में धुत उसके कंधे पर लुढ़क गई। उसने बहुत ही छोटे कपड़े पहने हुए थे।

 यह पढ़ाई कर रही है आपकी भांजी…

मन किया राकेश पर चिल्लाऊं लेकिन इसमें उनकी क्या ग़लती है रागिनी की इस हालत की जिम्मेदार मैं ही ठहराई जाऊंगी।

रीतिका ने पहले खुद को संभाला और फिर रागिनी को उसके कमरे तक ले गई।

“क्या हुआ मेरी बच्ची। तू ठीक तो है।”

रागिनी सुबक रही थी और रीतिका से माफी मांँग रही थी।

“मुझे माफ़ कर दो मामी, मैं बहक गई थी। आज के बाद कभी उन लोगों से दोस्ती नहीं करूंगी। वो बहुत गंदे हैं मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे थे। वो तो ऐन मौके पर पुलिस पहुंच गई। उन्हें पकड़ कर ले गई और मुझे यहांँ तक छोड़ दिया।”

“तुमने मौका दिया था उन्हें इस बात को मत भूलो। दूसरों पर इल्ज़ाम लगाना आसान होता है पर खुद की ग़लती ढूंढना मुश्किल।”

अगले दिन नन्दा ने फोन किया और रीतिका से रागिनी के बारे में पूछा कि उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है और वो आप लोगों को परेशान तो नहीं कर रही।

रीतिका ने रात की घटना का ज़िक्र नहीं किया और एक मौका रागिनी को देने का सोच अपनी ननद से सब ठीक है कह कर फ़ोन रख दिया।

रागिनी अब फिर से पढ़ाई पर ध्यान देने लगी और रीतिका की हर बात मानती क्योंकि अब उसे समझ आ गया था कि उसकी एक गलती की सजा उसके मामा मामी को जीवन भर भुगतनी पड़ेगी इस इल्ज़ाम के साथ कि हमारी बेटी को बिगाड़ने में आपका हाथ है।

कविता झा’काव्य ‘अविका”

#इल्ज़ाम

 

 

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